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कुलपति के चयन में बाहरी-भीतरी न करें

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। झारखंड के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति (वीसी) के पद रिक्त हैं. हाइकोर्ट के जज की अध्यक्षता में कमेटी बनी है, जिसने संभावित कुलपति की सूची (गोपनीय) राज्यपाल को भेजी है. निर्णय तो राज्यपाल को लेना है. राज्य में अब नया विवाद खड़ा किया जा रहा है कि कमेटी में दो […]

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

झारखंड के कई विश्वविद्यालयों में कुलपति (वीसी) के पद रिक्त हैं. हाइकोर्ट के जज की अध्यक्षता में कमेटी बनी है, जिसने संभावित कुलपति की सूची (गोपनीय) राज्यपाल को भेजी है. निर्णय तो राज्यपाल को लेना है. राज्य में अब नया विवाद खड़ा किया जा रहा है कि कमेटी में दो स्थानीय लोगों को होना चाहिए था, स्थानीय को कुलपति बनाना चाहिए. कुलपति की नियुक्ति कैसे होगी, इसके लिए विश्वविद्यालय अधिनियम में प्रावधान है.

कानूनी बात अलग है. लेकिन सच तो यह है कि विश्वविद्यालय ही वह संस्था है, जो छात्रों को गढ़ती है. देश के भविष्य वहीं तैयार होते हैं. अगर इसी संस्था के शीर्ष यानी कुलपति की नियुक्ति जाति-धर्म और समुदाय के आधार पर होने लगे, तो विश्वविद्यालय और वहां से निकलनेवाले छात्रों का भविष्य क्या होगा. शीर्ष पदों पर नियुक्ति प्रतिभा (टैलेंट) के आधार पर होनी चाहिए न कि पैरवी-जाति-धर्म के आधार पर.

अब वह प्रतिभाशाली व्यक्ति राज्य के भीतर का हो या राज्य के बाहर का, क्या फर्क पड़ता है. राज्य के भीतर अगर श्रेष्ठ व्यक्ति मिल जाये, तो सबसे बढ़िया (लेकिन आधार योग्यता हो). अगर दूसरे राज्य से आकर कोई शिक्षाविद झारखंड के विश्वविद्यालयों को राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर का बना दे, तो यह राज्य के लिए गौरव की बात होगी.

याद कीजिए, इसी झारखंड में (तब राज्य नहीं बना था) डॉ केके नाग, डॉ रामदयाल मुंडा जैसे प्रतिभाशाली शिक्षाविद कुलपति बने. इसलिए नहीं कि वे स्थानीय थे, बल्कि इसलिए कि उनमें प्रतिभा थी. ऐसे व्यक्ति अगर आज भी मिले, तो हर कोई स्वागत करेगा. लेकिन यह कहां का न्याय है या कहां तक जायज है कि प्रतिभाशाली लोगों को दरकिनार कर ऐसे लोगों को भर दिया जाये, जो मामूली योग्यता रखते हैं.

अगर पैरवी या दबाव पर बहाली होने लगे, तो राज्य के विश्वविद्यालयों का बंटाधार तय है. राज्य के सामने सबसे बड़ी चुनौती उच्च शिक्षा में सुधार लाना है. नया वर्क कल्चर विकसित करना है. छात्र चार से छह साल अगर विश्वविद्यालय में गुजारते हैं, तो इस उम्मीद से कि उसके बाद उनका भविष्य बेहतर होगा.

पढ़ाई की गुणवत्ता में सुधार न हो, तो डिग्री किस काम की. उस डिग्री (गुणवत्ताविहीन) को लेकर हमारे झारखंड के छात्र देश भर में घूमते रहें, कैसे वे अच्छे विश्वविद्यालय के छात्रों से मुकाबला करेंगे. अगर नहीं कर पाते, तो इस पढ़ाई का मतलब क्या है? यह छात्रों के साथ मजाक होगा. उनका समय खराब करना होगा. यह क्वालिटी एजुकेशन तभी संभव है, जब दूरदृष्टि रखनेवाले, श्रेष्ठ शिक्षाविद विश्वविद्यालय की कमान संभाले. देश-दुनिया से अलग नहीं है झारखंड. हाल ही में बिहार में कुलपति की बहाली हुई. इसमें आंध्रप्रदेश के भी शिक्षाविद हैं. उनका चयन इसलिए हुआ, क्योंकि अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले वह ज्यादा योग्य दिखें.

जाति-धर्म, समुदाय-प्रांतवाद इसमें आड़े नहीं आया. देखिए, चीन कम्युनिस्ट देश है, पर वहां के विश्वविद्यालयों में अमेरिका से प्रोफेसर आते हैं. चीन दुनिया के नोबेल विजेताओं को अपने यहां आमंत्रित करता है. नालंदा विवि की जिम्मेवारी प्रो अब्दुल कलाम (पूर्व राष्ट्रपति और प्रसिद्ध वैज्ञानिक) संभालते हैं.

ऐसा इसलिए किया जाता है, ताकि छात्रों का भविष्य बेहतर हो. टैलेंट से ही समाज बनता है. इसलिए देश के किसी हिस्से के टैलेंट को मौका दीजिए. यह छात्रों के भविष्य का सवाल है. योग्य से योग्य व्यक्ति को वीसी-प्रोफेसर बनायें, ताकि यहां के छात्र बुद्धि में इतने समृद्ध हों कि देश-दुनिया में कहीं भी होनेवाले मुकाबले में अव्वल आयें.

अभी हालात यह है कि विश्वविद्यालयों में अधिकतर सीनियर और अनुभवी शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं, पढ़ाने जाते नहीं हैं. कोई बोल नहीं पाता. ऐसी अराजकता को दूर करने के लिए श्रेष्ठ वीसी आने चाहिए. वैसे भी कमेटी हाइकोर्ट के जज की अगुवाई में बनी है, इसलिए इसमें गड़बड़ी की आशंका नहीं रहती. कमेटी को घेरे में लेना अनुचित है. राज्य के भविष्य के लिए इसमें राजनीति बंद होनी चाहिए.

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