– चंदन कुमार –
कैंसर को दुनियाभर में एक असाध्य बीमारी के रूप में जाना जाता है. इसके सौ से अधिक प्रकार हैं, जिनमें से कुछ का शुरुआती स्तर पर पता चलने पर इलाज मुमकिन है, जबकि ज्यादातर मामलों में ऐसा हो नहीं पाता है.
हालांकि हाल के वर्षो में कुछ नयी तकनीकों और दवाओं के इजाद से भविष्य में कैंसर के कारगर इलाज की उम्मीदें बढ़ी हैं. कैंसर पर विजय के लिए दुनियाभर में जारी कुछ कोशिशों पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..
कैंसर दुनिया की उन चंद बीमारियों में एक है, जिसे लाइलाज माना जाता है. इस बीमारी के बारे में अकसर कहा जाता है कि एक बार कैंसर होने का मतलब मौत है. हालांकि, यह सौ फीसदी सच नहीं है. कैंसर के बारे में अगर शुरुआती दौर में ही पता चल जाये, तो 90 फीसदी मामलों में इसके मरीज पूरी तरह ठीक हो जाते हैं.
प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी युवराज सिंह और अभिनेत्री मनीषा कोइराला इसकी मिसाल बन चुके हैं. इन दोनों ने इस खतरनाक बीमारी को मात दी और आज ये उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्नेत बन चुके हैं, जो इस बीमारी से जूझ रहे हैं. इन्होंने इस धारणा को गलत साबित किया कि कैंसर लाइलाज है.
दरअसल, कैंसर की चार स्टेज होती है. इनमें से पहले दो यानी स्टेज एक और दो को शुरुआती स्टेज माना जाता है. तीसरे स्टेज को इंटरमीडिएट और चौथे को एडवांस स्टेज कहा जाता है. पहले दोनों स्टेज के दौरान कैंसर के ठीक होने की संभावना अधिक होती है. विभिन्न प्रकार के कैंसर पर विजय यानी इसके मुकम्मल के लिए हाल के वर्षो में दुनियाभर में शोध चल रहे हैं. इनमें कुछ हद तक सफलता भी मिली है.
सौ से अधिक प्रकार के कैंसर
अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च, अमेरिकन कैंसर सोसायटी, ऑस्ट्रेलियन कैंसर रिसर्च फाउंडेशन, कनाडा कैंसर सोसायटी, कैंसर रिसर्च, इजरायल कैंसर रिसर्च फंड, इंटरनेशनल कैंसर जीनोम कंसोर्टियम जैसी संस्थाएं कैंसर के इलाज के लिए दवाओं के विकसित करने पर लगातार काम कर रही हैं. वैसे तो 100 से भी अधिक प्रकार के कैंसर होते हैं, लेकिन इनमें चार कॉमन कैंसर होते हैं. इनका नाम है, ब्रेस्ट कैंसर, कोलोन कैंसर, लंग कैंसर और प्रोस्टेट कैंसर. इसके अलावा भी ब्लड कैंसर, अग्नाशय कैंसर, त्वचा कैंसर आदि होते हैं. इनमें से अधिकांश के इलाज के लिए पूरी दुनिया में शोध चल रहे हैं.
ट्रेल प्रोटीन से ट्यूमर का इलाज
कैंसर के इलाज के लिए तमाम शोधों में यह सबसे हालिया शोध है. अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने यह शोध किया है. वैज्ञानिकों ने ऐसे अति सूक्ष्म अणु बनाये हैं, जो रक्त प्रवाह में बने रहते हैं और बाहर से आनेवाली कैंसर की कोशिकाओं के संपर्क में आने पर उन्हें खत्म कर देते हैं. इन वैज्ञानिकों ने अपने शोध के दौरान कैंसर खत्म करनेवाला एक प्रोटीन (ट्रेल नामक) और अन्य चिपकने वाले प्रोटीनों को एक सूक्ष्म गोले से चिपकाया. जब इन गोलों को रक्त में डाला गया, तो वे सफेद रक्त कोशिकाओं से चिपक गये.
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस की कार्यवाही में शामिल रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेल प्रोटीन के संपर्क में आने से ट्यूमर कोशिकाएं खत्म हो गयीं. हालांकि, इससे संबंधित अभी काफी प्रयोग किये जाने की जरूरत है. इनसानों पर इसकी जांच से पहले चूहों और अन्य जानवरों पर जांच किया जाना भी बाकी है.
एक्सोसोम डीएनए विश्लेषण
कैंसर को खतरनाक बीमारियों में इसलिए माना जाता है, क्योंकि शुरुआती दौर में इसके बारे में बहुत ही कम पता चल पाता है. जब तक पता चलता है, तब तक काफी देर हो चुकी होती है. हालांकि, कुछ महीने पहले अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के कैंसर बायोलॉजी विभाग में भारतीय मूल के प्रोफेसर रघु कल्लुरी के शोध से पता चला कि खून की सामान्य जांच की मदद से अग्नाशय कैंसर के बारे में पता लगाया जा सकता है.
इस जांच में कहा गया कि खून के नमूने से लिये गये एक्सोसोम डीएनए के विेषण से कैंसर ट्यूमर के बारे में पता लगाया जा सकता है. इससे शरीर में होनेवाले बदलाव के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए ट्यूमर के सैंपल की जरूरत नहीं पड़ेगी. इससे प्रारंभिक चरण में कैंसर का पता लगाने में मदद तो मिलेगी ही, अग्नाशय कैंसर के प्रभावी इलाज की संभावना भी बढ़ जायेगी. फिलहाल, खून की वैसी कोई जांच उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर कैंसर संबंधी डीएनए विकृति का पता लगाया जा सके.
टेमोक्सिफेन और रेलोक्सिफेन
महिलाओं में इस तरह के कैंसर का खतरा काफी अधिक होता है. हालांकि, हालिया अध्ययन में कहा गया है कि पुरुषों को भी यह कैंसर हो सकता है. लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने दिसंबर, 2013 में एनस्ट्रोजल नामक दवा विकसित की. शोधकर्ताओं के मुताबिक, यह स्तन कैंसर को रोकनेवाली ज्यादा कारगर, सस्ती और कम साइड इफेक्ट वाली दवा है. इस दवा का पता लगने के बाद अब डॉक्टर पीड़ित महिलाओं को यह दवा देने की वकालत कर रहे हैं.
कुछ देशों में स्तन कैंसर रोकने के लिए पहले से ही टेमोक्सिफेन और रेलोक्सिफेन दवाओं का इस्तेमाल हो रहा है. वहीं, जिनोम इंस्टीट्यूट ऑफ सिंगापुर और नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर के वैज्ञानिकों ने एंजाइम इजेडएम-2 को निशाना बनाने का तरीका खोजा है. यही वह एंजाइम है, जो स्तन कैंसर के लिए उत्तरदायी माना जाता है. दरअसल, एंजाइम इजेडएम-2 से लोगों में ओस्ट्रोजेन रिसेप्टर निगेटिव ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. इस तरह का ब्रेस्ट कैंसर सबसे आक्रामक होता है, जिस पर इलाज का असर प्रभावी नहीं होता है.
स्टेम सेल थेरेपी
ब्लड कैंसर के इलाज को लेकर पूरी दुनिया में कई तरह के शोध कार्य चल रहे हैं. 2012 में इससे संबंधित एक शोध में कहा गया कि स्टेम सेल के जरिये रक्त कैंसर का इलाज किया जा सकता है. गौरतलब है कि ब्लड में भी कई तरह के कैंसर, मसलन ल्यूकीमिया, माइलोमा, लिम्फोमा जैसी बीमारी होती है. शोध के मुताबिक, वैसे रोगी जिनकी कैंसर के इलाज के लिए कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी हो चुकी है और जिनका बोन मैरो नष्ट हो चुका है या रोगप्रतिरोधक तंत्र समाप्त हो चुका है, उन्हें स्टेम सेल थेरेपी की जरिये कैंसर से मुक्त किया जा सकता है.
येरुशलम के वैज्ञानिकों ने इस विधि का प्रयोग एक महिला और सात साल की बच्ची पर भी किया. इन दोनों को लगभग सारी चिकित्सा दी जा चुकी थी. बाद में जब इनका उपचार स्टेम सेल से किया गया, तो कुछ ही हफ्तों में उनमें जबरदस्त सुधार देखा गया.
अमेरिका के भयावह आंकड़े
कैंसर के प्रमुख प्रकारों में मुख कैंसर भी शामिल है. कैंसर के इस प्रारूप से मरनेवालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अमेरिका में 2013 में मुख कैंसर के 41,380 मामले सामने आये, जिनमें से 7,890 लोगों की मौत हुई. अमेरिका स्थित नेशनल कैंसर इंस्टीट्यूट इस पर लगातार शोध कर रहा है.
कलर डॉप्लर थ्री डी मैपिंग से बायोप्सी
प्रोस्टेट कैंसर का इलाज दो तरह से किया जाता है. पहला रोबोटिक व सामान्य सर्जरी के द्वारा. दूसरा, आइएमआरटी और आइजीआरटी के जरिये. इसमें बिना सर्जरी रेडिएशन के जरिये इलाज किया जाता है. मेडिकल डायग्नोसिस के क्षेत्र में हुई प्रगति से इस कैंसर के इलाज की प्रक्रिया पहले से ज्यादा कारगर हुई है. बायोप्सी ऐसी ही एक नयी तकनीक है.
बायोप्सी से पहले प्रोस्टेट कैंसर के रोगी को पीएसए (प्रोस्टेट स्पेसिफिक एंटीजेन) रक्त जांच करवानी पड़ती है. इस जांच के बाद ही प्रोस्टेट कैंसर का पता लगाया जा सकता है. अगर पीएसए का स्तर अधिक है, तो प्रोस्टेट कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. प्रारंभिक स्तर में इस बीमारी के बारे में पता करने के लिए यह जांच कारगर है, क्योंकि इसके द्वारा बीमारी के लक्षणों से पहले ही उसका पता चल जाता है.
इस प्रक्रिया में प्रोस्टेट ग्रंथि से टिश्यू निकाल कर उसकी जांच करने के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है. प्रोस्टेट कैंसर के इलाज के लिए जरूरी है कि बायोप्सी ठीक से हो. बायोप्सी में खामी रह गयी तो इलाज में गड़बड़ी हो सकती है. कलर डॉप्लर थ्री डी मैपिंग (विद कंट्रास्ट) की तकनीक इस क्षेत्र में सबसे आधुनिक मानी जाती है. अगर इस विधि से बायोप्सी होती है, तो सटीक इलाज की संभावना बढ़ जाती है.
क्रिजोतिनिब नामक दवा
लंग कैंसर के इलाज के लिए अमेरिकी इंस्टीट्यूट ने क्रिजोतिनिब नामक दवा का ट्रायल किया. यह ऐसी दवा है, जो लंग कैंसर के मामले में बीमारी के तीसरे स्टेज में होने के बाद इलाज किया जा सकता है. अभी इसे लेकर वैज्ञानिक शोध की प्रक्रिया में हैं. इसके प्रयोग में अभी डॉक्टरों को आंशिक सफलता मिली है. अगर इसका ट्रायल पूरी तरह सफल रहता है, तो लंग कैंसर के इलाज के क्षेत्र में यह दवा बेहद महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.
स्वस्थ जीवनशैली से बचाव
लाइलाज मानी जाने वाली बीमारी कैंसर के 100 से अधिक प्रकार हैं और शरीर का कोई भी अंग उससे प्रभावित हो सकता है. लेकिन चिकित्सकों का मानना है कि स्वस्थ जीवनशैली को अपनाते हुए 30 फीसदी से अधिक कैंसर को रोका जा सकता है.
नहीं पता चल पाता कारण
कैंसर एक तरह का ट्यूमर होता है. वैज्ञानिकों ने ट्यूमर के अधिकतर मामलों में होने वाले 21 आनुवंशिक बदलावों (विशिष्ट प्रकार के जेनेटिक कोड) का पता अब तक लगाया है. आनुवंशिक कोड में अचानक बदलाव सामान्य तौर पर होनेवाले 30 प्रकार के कैंसर के तकरीबन 97 फीसदी मामलों में उत्तरदायी होते हैं. इन परिवर्तनों की वजह पता लगा लेने के बाद ही कैंसर के नये इलाज ढूंढ़े जा सकेंगे. सिगरेट पीना इन कारणों में से एक है, लेकिन ऐसे अन्य तमाम कारण हो सकते हैं जिनका पता नहीं है.
कैंसर के जन्म की वजहें
साल 2013 के अगस्त महीने में ब्रिटेन के ‘वेलकम ट्रस्ट सैंगर इंस्टीट्यूट’ में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों के एक दल ने कहा था कि अल्ट्रा वायलेट रेडियेशन और धूम्रपान डीएनए में बदलाव पैदा करते हैं जो कैंसर का जोखिम बढ़ाता है. उनके मुताबिक, कैंसर जिनोम के भीतर ही वे निशान या चिह्न् छिपे हैं जो हमें बता सकते हैं कि किस वजह से कैंसर हुआ है. कैंसर संबंधी शोध के लिए इसे बहुत अहम उपलब्धि माना गया है.
अनसुलझे सवाल
जब भी शरीर में वायरस का हमला होता है तो कोशिकाएं एंजाइम को सक्रिय कर देती हैं. ये वायरस से तब तक लड़ते रहते हैं, जब तक वे निष्क्रिय न हो जाएं. शरीर के अंदर इस क्रिया से कोशिकाएं खुद भी अपने स्वरूप में तब्दीली लाती हैं और इस प्रक्रिया में वे इतनी बदल जाती हैं कि एक कैंसर कोशिका बनने की पूरी आशंका होती है.
कैंसर के इलाज की मौजूदा तकनीक सर्जरी
कैंसर के शुरुआती स्टेज में डॉक्टर सर्जरी की सलाह देते हैं. सर्जरी में जोखिम भी काफी कम, लगभग 0.001 प्रतिशत तक ही होता है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसके साइड इफेक्ट बहुत कम होते हैं.
कीमोथेरेपी
शुरूआती दोनों स्टेज के पार होने के बाद कैंसर अगर तीसरी या चौथी स्टेज में हैं, तो इसके इलाज की तीन तकनीकों में से दो की मदद ली जाती है. हालांकि, इसका जोखिम अधिक है. कीमोथेरेपी से कैंसर कोशिकाएं तो खत्म होते ही हैं, इसके साथ-साथ सामान्य कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचता है. कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट भी अधिक होते हैं. जैसे- उल्टी होना, बालों का गिरना.
इसके अलावा टारगेटेड थेरेपी के तहत भी इसका इलाज किया जाता है. यह एक नयी तरह की थेरेपी है. यह ऐसी दवा है, जो सामान्य कोशिकाओं को नहीं मारते, बल्कि कैंसर कोशिकाओं को ही अपना लक्ष्य बनाते हैं और उसे खत्म करते हैं.
रेडियोथेरेपी
कैंसर की तीसरी और चौथी स्टेज के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है. इसके लिए खास तरह की पद्धति को इस्तेमाल में लाया जाता है. इसमें मशीन की मदद से कंट्रोल्ड रेडिएशन ट्यूमर पर डाले जाते हैं और इनसे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है. इस तकनीक के भी साइड इफेक्ट होते हैं. हालांकि, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शरीर के किस हिस्से के कैंसर का इलाज किया जा रहा है.