अगर नियम और कानून में बदलाव हों, तो बहुत जल्द भारत में भी स्टेथोस्कोप (आला) की जगह स्मार्ट फोन की तर्ज पर बनी अल्ट्रासाउंड मशीन डॉक्टरों के हाथों में होगी. यह स्मार्ट फोन डिवाइस डॉक्टरों के साथ-साथ मरीजों के लिए भी फायदेमंद साबित होगा. हालांकि, भारत में इसे रिप्लेस करना आसान नहीं होगा.
छात्र ले रहे इसकी ट्रेनिंग
भारतीय मूल के अमेरिकी डॉक्टर न सिर्फ इस स्मार्ट डिवाइस का इस्तेमाल कर रहे हैं, बल्कि मेडिकल के छात्रों को भी इसका प्रशिक्षण दे रहे हैं.
इस संबंध में न्यू यॉर्क के माउंट सिनाई स्कूल ऑफ मेडिसिन के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ जगत नरूला ने एक आर्टिकल भी लिखा है, जो अभी हाल ही में वर्ल्डहार्ट फेडरेशन के ग्लोबल हार्ट जर्नल में प्रकाशित हुआ है. डॉ नरूला का कहना है कि भारत जैसे देश में जब तक नियम-कानून में बदलाव नहीं लाया जाता, तब तक इस डिवाइस का उपयोग मुश्किल है, क्योंकि इस तकनीक के इस्तेमाल से प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (पीएनडीटी) एक्ट का उल्लंघन हो सकता है.
दिखेंगी हृदय-फेफड़े की भीतरी दिक्कतें भी
डॉ नरूला बताते हैं कि स्टेथोस्कोप से हृदय और फेफड़ों की जांच करना एक पुरानी विधि है. उन्होंने बताया कि स्मार्ट फोन की तरह एक छोटी डिवाइस से न सिर्फ हृदय और फेफड़ों की आवाज को सुना जा सकता है, बल्कि हृदय और फेफड़े के अंदर की दिक्कतों को आसानी से देखा जा सकता है. इस तकनीक का उपयोग करने से मरीजों को अल्ट्रासाउंड कराने के लिए नहीं भेजना होगा. डॉक्टर इस डिवाइस से ही सब कुछ देख लेंगे. उन्होंने कहा कि इस डिवाइस का इस्तेमाल करने का अधिकार सभी डॉक्टरों को तो नहीं दिया जा सकता, लेकिन प्रशिक्षण देना अनिवार्य है. स्टेथोस्कोप की तुलना में इस डिवाइस की कीमत काफी ज्यादा है, लिहाजा सभी चिकित्सकों के लिए यह जरूरी भी नहीं है.