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चर्चा में बलूचिस्तान: सेना के दमन से मुक्ति के लिए छटपटा रहा प्रदेश

पाक ने छीन ली थी बलूचिस्तान की आजादी पाकिस्तान का सबसे उपेक्षित प्रांत बलूचिस्तान बगावत के लंबे इतिहास के लिए भी जाना जाता है. खनिज संपदा से परिपूर्ण इस प्रांत के बलोच राष्ट्रवादी अपने आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों के लिए 1948 से ही संघर्ष कर रहे हैं, जब पाकिस्तान ने इस प्रांत पर छल से […]

पाक ने छीन ली थी बलूचिस्तान की आजादी

पाकिस्तान का सबसे उपेक्षित प्रांत बलूचिस्तान बगावत के लंबे इतिहास के लिए भी जाना जाता है. खनिज संपदा से परिपूर्ण इस प्रांत के बलोच राष्ट्रवादी अपने आर्थिक एवं राजनीतिक अधिकारों के लिए 1948 से ही संघर्ष कर रहे हैं, जब पाकिस्तान ने इस प्रांत पर छल से कब्जा कर लिया था, और तब से ही पाकिस्तानी सेना और सुरक्षा एजेंसियों की दमनात्मक कार्रवाइयां भी जारी हैं.

इस दौरान हजारों लोगों के अपहरण और हत्या की खबरें आ चुकी हैं, बावजूद इसके अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने भी बलोच राष्ट्रवादियों के संघर्ष को पर्याप्त जगह नहीं दी है. ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन में बलूचिस्तान के लोगोें का जिक्र करने से बलोच राष्ट्रवादियों में खुशी की लहर दौड़ गयी है. बलूचिस्तान के इतिहास, पाकिस्तान में इसके विलय और राष्ट्रवादियों के मौजूदा संघर्ष की जानकारी के साथ पेश है ‘इन डेप्थ’.

1948 में ही शुरू हुआ संघर्ष

वर्ष 1948 में अब्दुल करीब खान ने पाक सरकार के खिलाफ अलगाव का बिगुल फूंका और अफगानिस्तान से पाक सैनिकों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया. 1958 में इस सशस्त्र संघर्ष का नेतृत्व कर रहे नवाब नवरोज खान को उनके सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया और उनके बेटों व भतीजों को फांसी दे दी गयी. जेल में नवरोज खान की भी मौत हो गयी. 1970 के दशक में बलोच राष्ट्रवाद का उदय हुआ, जिसमें बलूचिस्तान को पाकिस्तान से आजाद करने की मांग उठी. 1973-74 के दौरान वहां मार्शल लाॅ लागू कर सरकार को बरखास्त कर दिया गया और आंदोलनकारियों का दमन किया गया. बताया जाता है कि इसमें करीब आठ हजार लाेगों की मौत हो चुकी है.

सरकार से 15 सूत्री मांग

आंदोलन को दबाने के लिए उसके नेताओं को गिरफ्तार करने और उन्हें खत्म करने का सिलसिला जारी रहा. आंदोलनकारियों ने हार नहीं मानी. 2005 में बलूच नेता नवाब अकबर खान बुगती और मीर बलाच मार्री ने पाक सरकार के सामने 15 सूत्री मांग रखी. इनमें प्रांत के संसाधनों पर ज्यादा नियंत्रण और सैनिक ठिकानों के निर्माण पर रोक जैसे मुद्दे शामिल थे. इन्हें नकार दिया गया और संघर्ष जारी रहा.

पाक सेना द्वारा हत्या और दमन

बलूचों के सबसे बड़े नेता सरदार अकबर बुगती की 2006 में सैन्य कार्रवाई में मौत के बाद आंदाेलन बढ़ता गया. विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के दस्तावेजों से यह पता चलता है कि सेना और खुफिया एजेंसियां किस तरह से अपना दमन चक्र चला रही हैं. बड़ी संख्या में लोगों को बंदी बनाया जा रहा है और अकारण यातनाएं दी जा रही हैं.

सेना और सरकारी नौकरियों में बलूचियों के लिए रास्ते बंद किये जा चुके हैं. लोकतंत्र समर्थक बलूच नेताओं की हत्या कराने के साथ पाकिस्तान सरकार कट्टरपंथी ताकतों को आर्थिक मदद मुहैया कराती रही है. दूसरी ओर, बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी और लश्कर-ए-बलूचिस्तान जैसे अलगाववादी समूहों की आेर से आजादी की लड़ाई जारी है. इन्हें रोकने के लिए पाक सरकार कई बार सैन्य अभियान भी चला चुकी है.

बलूचिस्तान विधानसभा में पूर्व में विपक्ष के नेता रह चुके अली बलोच का दावा है कि यहां चार हजार से ज्यादा लोग लापता हैं, जिनमें से हजार से ज्यादा छात्र और राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई, 2010 से मई, 2011 के बीच यहां से लापता 140 लोगों की लाशें मिली हैं. हाल में सुरक्षा बलों ने बलोच आंदोलनकारियों पर तेजी से शिकंजा कसना शुरू कर दिया, जिससे इस प्रांत में तनाव बढ़ गया है.

बलूचिस्तान : विविध तथ्य

भाैगोलिक रूप से बलूचिस्तान शुष्क इलाका है. यह ईरानी प्लेट के आखिरी व पूर्वी छोर पर स्थित है, जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत और ईरान के सिस्तान-बलूचिस्तान प्रांत (इसमें अफगानिस्तान के दक्षिणी हिस्से में स्थित नीमरज, हेलमंड और कंधार प्रांत के कुछ हिस्से आते हैं) को विभाजित करता है. इसके दक्षिण में अरब सागर है.

क्षेत्रफल – 3,47,190 वर्ग किमी

आबादी – 1,32,00,000 (2011 की जनगणना)

मुख्य भाषा – बलोची, पश्तो, सिंधी, ब्रहुई

राजधानी – क्वेटा (पाक का नौवां सबसे बड़ा शहर)

प्रमुख जनजातियां : बलोची, पश्तून और ब्राहवी

प्रोविंसियल असेंबली सीट : 65

जिलों की संख्या : 32

प्रमुख खनिज पदार्थ : – कोयला – क्रोमाइट – बेराइट्स – सल्फर – मार्बल – आयरन – लाइमस्टोन

संसाधनों पर पाक और चीन की नजर

प्राकृतिक संसाधनों से भरे इस इलाके में लोगों की आर्थिक दशा बहुत ही खराब है. आज भी यहां लोग बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं. इसकी गिनती पाकिस्तान के सबसे पिछड़े प्रांतों में होती है.

इस रेतीले इलाके में यूरेनियम, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, तांबा, सोना और अन्य धातुओं का बेशकीमती भंडार मौजूद है. पाकिस्तान इसे अपने विकास और खुशहाली के लिए इस्तेमाल में लाना चाहता है. ग्वादर पोर्ट डेवलपमेंट के नाम पर इस भरपूर संपदा पर चीन की नजर भी गड़ी हुई है.

1952 में इस प्रांत के डेरा बुगती में गैस भंडार का पता चला और दो वर्ष बाद उत्पादन शुरू हो गया. हालांकि, उसका फायदा समूचे पाकिस्तान को हुआ, लेकिन बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा को इस पाइपलाइन से 1985 में जोड़ा गया. इसी क्षेत्र के चगाई मरुस्थल में 2002 में एक सड़क परियोजना शुरू की गयी, जो चीन के साथ तांबा, सोना और चांदी उत्पादन करने की पाकिस्तान की योजना है. इससे हासिल मुनाफे में 75 फीसदी हिस्सेदारी चीन की है और 25 फीसदी पाकिस्तान की. इस 25 फीसदी में से इस क्षेत्र को महज दो फीसदी हिस्सेदारी ही दी गयी है.

अर्थव्यवस्था : प्राकृतिक गैस, काेयला और अन्य खनिज पदार्थ यहां की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा हैं. इसके अलावा कृषि और पशुपालन का यहां की अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान है.

यह भी जानें

काफी पुराना है बलूचिस्तान का इतिहास

पाकिस्तान के पश्चिमी हिस्से में स्थित इसके सबसे बड़े प्रांत बलूचिस्तान का इतिहास काफी पुराना है. इतिहासकार पाषाण काल में यहां इनसानी बस्तियां होने की संभावना जता चुके हैं.

फ्रांसीसी ऑर्कियोलॉजिस्ट प्रोफेसर जैरिग के हवाले से पाकिस्तान टूरिज्म डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि ईसा पूर्व (बीसी) 6,000 में यहां बोलन नदी क्षेत्र में किसानों द्वारा गेहूं, जौ और खजूर की खेती करने के प्रमाण मिले हैं. बाढ़ के पानी को संचित करने के लिए किसानों ने बड़े-बड़े गड्ढे बना रखे थे. बाढ़ खत्म होने पर वे कपास की खेती करते और मिट्टी के बरतन बनाते थे.

ईसा के जन्म से पहले यह इलाका ईरान और टिगरिस व यूफ्रेट्स के रास्ते बेबीलोन की प्राचीन सभ्यता से व्यापार और वाणिज्य के जरिये जुड़ चुका था. बलूचिस्तान के सिबिया आदिवासियों से ईसा पूर्व 326 में विश्व विजयी अभियान पर निकले सिकंदर से भिड़ंत हुई थी.

वर्ष 711 में मुहम्मद-बिन-कासिम और फिर 11वीं सदी में महमूद गजनवी ने भी बलूचिस्तान पर आक्रमण किया था, लिहाजा यहां इसलाम का उभार हुआ. इस प्रांत के ज्यादातर आदिवासियों की शारीरिक बनावट अरबों से मिलती-जुलती है. 15वीं सदी में बलोच सरदार मीर चकर ने बिखरे हुए बलोची समुदायों को एकत्रित किया और दक्षिणी अफगानिस्तान, पंजाब और सिंध के कुछ हिस्सों पर आधिपत्य जमा लिया था. इसके बाद अगले 300 सालों तक यहां मुगलों और गिलजियों का शासन रहा.

अकबर का आधिपत्य

भारतीय साम्राज्य पर शासनकाल के दौरान अकबर की सेना ने बलूचिस्तान इलाके को भी नियंत्रण में ले लिया था. इस क्षेत्र का शासन पर्शिया को हस्तांतरित करने से पूर्व वर्ष 1638 तक मुगलों ने इसे अपने अधीन बनाये रखा. ‘आइन-ए-अकबरी’ के मुताबिक, 1590 में यहां के ऊपरी इलाकों पर कंधार के सरदार का कब्जा था, जबकि कच्ची इलाका मुल्तान के भक्कड़ सरदार के अधीन था. केवल मकारान इलाके पर मलिकों व अन्य समुदायों का स्वतंत्र रूप से नियंत्रण था.

नादिर शाह की मदद से ब्रहुई हुए एकत्रित

ईरान के नादिर शाह की मदद से कलात के खानों ने ब्रहुई आदिवासियों को एकत्रित किया और सत्ता पर काबिज हो गये. ब्रिटिश सैनिकों से 1839-42 के दौरान हुए ‘प्रथम अफगान युद्ध’ के बाद अंगरेजों ने इस क्षेत्र पर अधिकार जमा लिया. वर्ष 1876 में रॉबर्ट सैंडमेन को बलूचिस्तान का ब्रिटिश एजेंट नियुक्त किया गया और 1887 तक इसके ज्यादातर इलाके ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन आ गये. वर्ष 1944 में जनरल मनी को बलूचिस्तान की स्वतंत्रता का विचार आया था, लेकिन भारत के विभाजन के बाद ब्रिटिश इशारे पर इसे पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया.

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