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पौष्टिक खाएं फिट रहें

भारत में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. कई रिपोर्टों में यह बात सामने आयी है कि यह समस्या सिर्फ गरीबों में नहीं, बल्कि अच्छी आयवाले परिवारों में भी है. प्रमुख कारण गलत खान-पान और इससे होनेवाले रोग हैं. अत: खुद को फिट रखने के लिए इनके बारे में जानना जरूरी है. पौष्टिक आहार पर संपूर्ण […]

भारत में कुपोषण एक बड़ी समस्या है. कई रिपोर्टों में यह बात सामने आयी है कि यह समस्या सिर्फ गरीबों में नहीं, बल्कि अच्छी आयवाले परिवारों में भी है. प्रमुख कारण गलत खान-पान और इससे होनेवाले रोग हैं. अत: खुद को फिट रखने के लिए इनके बारे में जानना जरूरी है. पौष्टिक आहार पर संपूर्ण जानकारी दे रहे हैं दिल्ली और पटना के हमारे एक्सपर्ट.
डॉ नीलम सिंह
डायटीशियन, मैक्स अस्पताल, दिल्ली
कुपोषण को लेकर लोगों के बीच कई तरह की भ्रांतियां होती हैं. कुपोषण सिर्फ कम आयवाले लोगों की ही समस्या नहीं होती है. यह भी देखा गया है कि शिक्षित और अच्छी आयवाले घरों में भी लोग कुपोषण के शिकार होते हैं. ऐसा लोगों के खान-पान की गलत आदतों और पोषक तत्वों के प्रति जागरूकता की कमी के कारण होता है. अत: इस बारे में जानना जरूरी है, ताकि स्वस्थ रहा जा सके.
क्या है कुपोषण
कुपोषण वह स्थिति है, जिसमें शरीर की मांग के अनुरूप पोषक तत्व नहीं मिल पाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप शरीर पोषण के अभाव में कुपोषित हो जाता है. यह स्थिति नवजात शिशु से लेकर किसी भी उम्र में हो सकती है.
यह भी कह सकते हैं कि कुपोषण का अर्थ है आयु और शरीर के अनुरूप पर्याप्त शारीरिक विकास न होना. एक स्तर के बाद यह मानसिक विकास की प्रक्रिया को भी अवरुद्ध करने लगता है. बहुत छोटे बच्चों खास तौर पर जन्म से लेकर पांच वर्ष की आयु तक के बच्चों को भोजन के जरिये पर्याप्त पोषण आहार न मिलने के कारण उनमें कुपोषण की समस्या जन्म ले लेती है. इसके परिणामस्वरूप बच्चों में इम्युनिटी पावर कमजोर होती है, जिसकी वजह से वह विभिन्न संक्रमणों की चपेट में आसानी से आने लगते हैं.
बच्चों में गंभीर है यह समस्या
भारत में बच्चों में कुपोषण बहुतायत में देखने को मिलता है. हालांकि बच्चों में कुपोषण पांच-छह साल की उम्र के बाद नजर आता है, लेकिन डॉक्टर मानते हैं कि बच्चों में कुपोषण की शुरुआत मां के गर्भ से ही शुरू हो जाती है. गर्भधारण के समय मां के खान-पान का असर गर्भ में पल रहे शिशु की सेहत पर पड़ता है.
जन्म के पहले साल में भी बच्चा लापरवाही की वजह से कुपोषण की चपेट में पहुंच जाता है, क्योंकि इस उम्र में वह भूख लगने पर अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करने में असमर्थ होता है. इसलिए मां को ही बच्चे को पर्याप्त मात्रा में स्तनपान कराना बेहद आवश्यक है. आमतौर पर इस समय अपर्याप्त स्तनपान, नवजात में संक्रमण, निमोनिया आदि रोगों के कारण कुपोषण की समस्या सबसे ज्यादा होती है.
इन तरीकों से बच्चा रहेगा फिट
जन्म के समय : जन्म के बाद छह माह तक शिशु को केवल स्तनपान कराएं और बच्चे को भूखा न रखें. उसके स्वास्थ्य का भी पूरा ख्याल रखें.
छह महीने से दो साल तक : स्तनपान के साथ पर्याप्त मात्रा में घर का बना ठोस आहार देना शुरू कर दें.
दो साल से छह साल तक : दूध, दही की मात्रा भोजन में ज्यादा रखें. इस समय बच्चे की ग्रोथ अच्छी तरह होती है और इसके लिए ये चीजें जरूरी हैं. साथ ही मानसिक विकास का भी ख्याल रखना चाहिए. इन उपायों को अपना कर बच्चे को कुपोषण से बचाया जा सकता है.
जीरो फिगर का चस्का बना सकता है कुपोषित
कुछ महिलाएं जीरो फिगर के लिए खान-पान में लापरवाही बरतती हैं. ऐसा सेहत के लिहाज से बिल्कुल गलत है. शरीर को जरूरत के हिसाब से पोषक तत्व देना बहुत जरूरी है, लेकिन जीरो फिगर के चक्कर में खाना-पीना छोड़ देनेवाली महिलाएं जीरो फिगर तो हासिल कर लेती हैं, लेकिन इसके कारण या तो वजन सामान्य से कम हो जाता है या हीमोग्लोबिन की कमी हो जाती है और वे कुपोषण का शिकार हो जाती हैं. डायटिंग में पड़ कर शरीर को पोषक तत्व से वंचित न करें. आप उचित पोषक तत्वों को ग्रहण करके एवं वर्कआउट से भी जीरो फिगर हासिल कर सकती हैं.

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