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पेट की चरबी कम करना है तो करें ये आसन
धर्मेंद्र सिंह एमए योग मनोविज्ञान बिहार योग विद्यालय, मुंगेर पूर्व हलासन का अभ्यास वास्तव में हलासन करना ही है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि जब हलासन का अभ्यास किया जाये, तो इसे आराम से पूर्ण दक्षता के साथ करने में काफी आराम हो. यह आसन भी सिर के बल किया जानेवाले आसनों के समूह का […]
धर्मेंद्र सिंह
एमए योग मनोविज्ञान
बिहार योग विद्यालय, मुंगेर
पूर्व हलासन का अभ्यास वास्तव में हलासन करना ही है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है ताकि जब हलासन का अभ्यास किया जाये, तो इसे आराम से पूर्ण दक्षता के साथ करने में काफी आराम हो. यह आसन भी सिर के बल किया जानेवाले आसनों के समूह का अभ्यास है.
अभ्यास की विधि
सर्व प्रथम जमीन के ऊपर कंबल या योग मैट को बिछा लें तथा उसके ऊपर पीठ के बल लेट जाएं तथा अपने दोनों पैरों और उनके पंजों को एक-दूसरे के नजदीक एक साथ रखने का प्रयास करें. दोनों भुजाओं को अपने शरीर के बगल में रखें. अपने दोनों हाथ की हथेलियों को या तो नीचे की ओर खोल कर रखें या मुट्ठी बांध कर नितंबों के नीचे रखें. यह अभ्यास की प्रारंभिक अवस्था है.
अब आप अपने दोनों पैरों को सीधा रखते हुए ऊपर की तरफ उठाएं इस दौरान आपके नितंब का स्पर्श जमीन पर होगा या अपनी मुिट्ठयों पर उसे टिकाने का प्रयास करें. अब अपने दोनों पैर के पंजों काे सिर की ओर लाते हुए उन्हें सिर की तरफ झुकाएं. इस क्रम में आप अपने पैरों को एक-दूसरे से अधिक-से-अधिक अलग करें और पुन: उन्हें एक साथ मिला दें. आप पैरों और धड़ के बीच 45 अंश का कोण बनाये रखें. इस अवस्था में सुविधानुसार रुकने का प्रयास करें. अब आप दोनों पैरों को सीधा रखते हुए उन्हें धीरे-धीरे नीचे जमीन पर ले जाएं. यह अभ्यास का एक चक्र हुआ.
श्वसन का अभ्यास
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इस अभ्यास के दौरान जब आप अभ्यास की प्रारंभिक अवस्था में रहते हैं, उस समय सांस लें. पैरों को ऊपर उठाते समय पैरों को अलग करते हुए और पैरों को नीचे लाते समय सांस को अंदर ही राेके रखें. जब आप प्रारंभिक स्थिति में लौटेंगे उस समय सांस को बाहर छोड़ें. ध्यान रहे यदि आप अभ्यास के अंतिम अवस्था में ज्यादा देर तक रुकेंगे उस समय सामान्य तरीके से सांस भी लिया जा सकता है.
अवधि और सजगता
इसे आरंभ में एक चक्र करना उचित है किंतु आगे चल कर इस अभ्यास को पांच से 10 चक्र तक किया जा सकता है.सजगता : इस अभ्यास के दौरान शारीरिक स्तर पर आपकी सजगता सांस के साथ शारीरिक गति एवं थायराॅयड ग्लैंड पर होनी चाहिए तथा अाध्यात्मिक स्तर पर सजगता मणिपुर या विशुद्धि चक्र पर होनी चाहिए.
क्रम व सीमाएं
इस अभ्यास को करने के बाद पीछे की तरफ मुड़नेवाले आसनों को करना चाहिए, जैसे- भुजंगासन, शलभासन या धनुरासन आदि.
सीमाएं : इस आसन को वैसे लोगों को नहीं करना चाहिए जो वृद्ध, दुर्बल सायटिका या स्लिप डिस्क से पीड़ित हों तथा जिन्हें उच्च रक्तचाप की शिकायत हो. इससे परेशानी हो सकती है
क्या हैं इस आसन के लाभ
इस अभ्यास से हमारे श्रोणि प्रदेश में एक विशेष प्रकार का खिंचाव पैदा होता है. यह अभ्यास गुरदों को व्यवस्थित करता है तथा हमारी आंतों को पर्याप्त मात्रा में रक्त को पहुंचाता है एवं उन्हें सकारात्मक तरीके से क्रियाशील बनाता है और पेट की बढ़ी हुई चरबी को कम करने में काफी सहायक होता है. यह अभ्यास उदर की पेशियों को सुदृढ़ बनाता है एवं पीठ की मांसपेशियों की ऐंठन को भी दूर करता है. यह अभ्यास थायरॉयड ग्रंथि के कार्य को नियमित करता हैं.
नोट : प्रारंभिक अभ्यासियों को यह आसन करने का परामर्श दिया जाता है. हलासन को करने के पहले इस आसन में दक्षता प्राप्त कर लेना अति आवश्यक है.
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