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कहीं आपसी तू-तू में दम न तोड़ दे रिश्ता
एक दंपती मैरेज काउंसेलिंग के लिए मेरे पास आये. उनकी शादी को मात्र चार साल हुए थे, लेकिन उनमें एक-दूजे के लिए नफरत इतनी भरी थी, मानो जन्म-जन्म के दुश्मन हों. पति को शिकायत थी कि पत्नी मेरे परिवारवालों की बात नहीं मानती, न इसमें अच्छी बहू के गुण हैं, न ही अच्छी पत्नी है. […]
एक दंपती मैरेज काउंसेलिंग के लिए मेरे पास आये. उनकी शादी को मात्र चार साल हुए थे, लेकिन उनमें एक-दूजे के लिए नफरत इतनी भरी थी, मानो जन्म-जन्म के दुश्मन हों. पति को शिकायत थी कि पत्नी मेरे परिवारवालों की बात नहीं मानती, न इसमें अच्छी बहू के गुण हैं, न ही अच्छी पत्नी है.
दो साल के बेटे को भी मेरी मां ही देखभाल करती है. मैं रिश्ते को इसलिए निभा रहा हूं कि ताकि जग हंसाई न हो. पत्नी ने भी शिकायतों की झड़ी लगा दी. उसके अनुसार जब से वह ससुराल में आयी है, कामवाली बन कर रह गयी है. दिन-रात सबकी खिदमत करो, लेकिन प्यार के दो शब्द ना पति के मुंह से निलकता है, न घरवालों से. ससुरालवालों के लिए इतनी नफरत से वह भरी थी कि कुछ सुनने को तैयार नहीं थी.
आज हर घर में यह कहानी आम हो गयी है. वैसे पति-पत्नी के बीच वाद-विवाद तथा लड़ाई-झगड़ा कोई अस्वाभाविक बात नहीं है, लेकिन लड़ाई में जब मर्यादाएं टूटने लगें, तो रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है. आपस की छोटी-मोटी समस्याओं को तूल देने पर वह विकराल रूप ले लेती है.
पति-पत्नी दोनों का रिश्ता बराबरी का होता है. यह दोनों को सोचना होगा. लेकिन दोनों समझना नहीं चाहते. यह समस्या केवल इन दंपती की नहीं, ऐसे कई केसज आते रहते हैं, जिनमें धैर्य की कमी रहती है और एक-दूसरे की बात को सुनना तक पसंद नहीं करते. यही वजह है कि आपसी झगड़ा तूल पकड़ने लगता है. झगड़े की शुरुआत भी तभी होती है जब पति-पत्नी दोनों एक दूसरे की बात ध्यान से नहीं सुनते. आमतौर पर पुरुष इसे अपनी अवहेलना समझते हैं. उनके अहं को ठेस पहुंचता है. अगर पत्नी भी पढ़ी-लिखी है, तो उसका भी अहं तुरंत आहत हो जाता है. अपने झगड़े में एक-दूसरे के परिवार के लोगों को भी अपशब्द बोलने में परहेज नहीं करते, जिससे दोनों के बीच नफरत की दीवार और भी चौड़ी हो जाती है.
सॉरी बोलने में कभी खुद को छोटा न समझें
यह सच है कि ऐसे कोई स्त्री-पुरुष नहीं होते, जो सर्वगुण संपन्न हों. अत: गलतियों के लिए एक-दूसरे से क्षमा मांगने में कोई छोटा नहीं हो जाता, बल्कि दूसरे की नजर में और इज्जत के पात्र बन जाते हैं. किसी भी रिश्तों को बनाने में समय लगता है, लेकिन तोड़ना चंद मिनटों का काम है. इसका दुष्परिणाम बच्चों एवं परिवार के अन्य सदस्यों को भी भोगना पड़ जाता है. नोंक-झोंक करें, लेकिन पति-पत्नी बात को इतना तूल न दें कि रिश्ते बिगड़ जायें. दोनों के बीच परस्पर संतुलन बनाये रखना जरूरी होता है.
झगड़े को खत्म करने की आप करें पहल
जहां तक संभव हो, दूसरे की बात समझने-मानने का प्रयास करें. न कि जबरन अपनी बात मनवाने की कोशिश करें. पति-पत्नी के आपसी लड़ाई में दूसरों को शामिल न करें. जिस तरह पुरुष दूसरों की दखलंदाजी पसंद नहीं करते, उसी तरह स्त्री भी दूसरे के द्वारा अपनी कमियां नहीं बरदाश्त करती है.
परिवारवाले जाने-अनजाने पति-पत्नी की लड़ाई में आग में घी डालने से परहेज करें, तो बात बढ़ेगी नहीं. अगर वाकई झगड़े को खत्म करना है, तो पति-पत्नी झगड़े को खींचे नहीं, बाद में इश्यू न बनाएं. न ही बात-बात पर एक-दूसरे को ताना मारें. अच्छी पहल तो यही है कि कोई एक माफी मांगे, चाहे गलती किसी की हो. यही कारगर उपाय है. इस तरह सामनेवाला भी अंदर-ही-अंदर अपनी भूल स्वीकार करने लगता है.
इन सबके अलावा कुछ तकनीकी बातें हैं, जो झगड़े को बढ़ने से रोकती हैं. कभी भी आपसी झगड़ों में आवाज को ऊंची न करें, ना ही सभ्यता का दामन छोड़ें. ऐसी नौबत ना आये कि एक-दूसरे से आंख मिलाने में शर्म हो कुछ ऐसा व्यवहार करें जिससे बाद में आंख मिलाने में शर्म आये. विवाद की स्थिति में थोड़ी देर के लिए उस माहौल से बाहर निकल जाना ही अच्छा है.
जिस तरह लड़की को शादी से पहले एवं बाद में यह सीख दी जाती है कि कैसे वह एक अच्छी बहू, अच्छी पत्नी एवं अच्छी मां बने, वैसे ही लड़कों को भी शादी के पहले एवं बाद में अच्छा दामाद, अच्छा पति, अच्छा बाप बनने की सीख हर मां-बाप दें, ताकि भविष्य में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति कम हो और रिश्ते दम न तोड़ें.
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