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इसरो के भावी मिशन

।। शशांक द्विवेदी।।(विज्ञान मामलों के लेखक)चंद्रयान-1 की सफलता के बाद महत्वाकांक्षी मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगा चुका है. इसके साथ ही इसरो ने पांच और महत्वपूर्ण मिशनों पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. पहला कदम है ‘जीएसएलवी डी5’ का दिसंबर में प्रक्षेपण. दूसरा […]

।। शशांक द्विवेदी।।
(विज्ञान मामलों के लेखक)
चंद्रयान-1 की सफलता के बाद महत्वाकांक्षी मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगा चुका है. इसके साथ ही इसरो ने पांच और महत्वपूर्ण मिशनों पर तेजी से काम करना शुरू कर दिया है. पहला कदम है ‘जीएसएलवी डी5’ का दिसंबर में प्रक्षेपण. दूसरा है, अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना. चंद्रमा की सतह पर एक रोवर उतारना, सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण करना और रीयूजेबल लांच व्हीकल का प्रक्षेपण मिल कर ‘परफेक्ट फाइव’ बना रहे हैं. इन सभी महत्वपूर्ण मिशनों को अगले चार सालों के भीतर अंजाम दिया जायेगा. मंगलयान की शुरुआती सफलता के बाद इसरो के वैज्ञानिक भविष्य को लेकर काफी आश्वस्त हैं. हालांकि, जब तक मंगलयान मंगल की कक्षा में स्थापित नहीं हो जाता, तब तक वैज्ञानिक इस मिशन से जूझते रहेंगे, लेकिन इसरो की रणनीति के तहत मिशन की सफलता या विफलता का आगामी कार्यक्रमों पर कोई असर नहीं पड़ेगा. इसरो के भविष्य के इरादों पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..

भा रतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अपने मंगल मिशन को सफलतापूर्वक लांच करने के बाद नये लक्ष्यों के साथ अन्य मिशनों को पूरा करने की तैयारी में जुट गया है. हाल में इसरो ने अपने पांच मिशनों का काम तेज कर दिया है. आइए डालते हैं एक नजर इसरो के इन अभियानों पर..

जीएसएलवी डी 5

यह प्रक्षेपण दिसंबर, 2013 में प्रस्तावित है. जीएसएलवी ऐसा मल्टीस्टेज रॉकेट है, जो दो टन से अधिक वजनी उपग्रह को पृथ्वी से 36,000 किमी की ऊंचाई पर भू स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है, जो विषुवत वृत्त या भूमध्य रेखा के ऊपर होता है. यह अपना कार्य तीन चरण में पूरा करता है. इसके आखिरी यानी तीसरे चरण में सबसे अधिक बल की जरूरत पड़ती है. रॉकेट की यह जरूरत केवल क्रायोजेनिक इंजन ही पूरा कर सकता है. इसलिए बगैर क्रायोजेनिक इंजन के जीएसएलवी रॉकेट बना पाना मुश्किल होता है. दो टन से अधिक वजनी उपग्रह ही हमारे लिए ज्यादा काम के होते हैं, इसलिए दुनिया भर में छोड़े जानेवाले 50 प्रतिशत उपग्रह इसी वर्ग में आते हैं. जीएसएलवी रॉकेट इस भार वर्ग के दो तीन उपग्रहों को एक साथ अंतरिक्ष में ले जाकर 36,000 किमी की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में स्थापित कर देता है. यही जीएसएलवी रॉकेट की प्रमुख विशेषता है.

हाल में ही भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने स्वदेश निर्मित क्रायोजनिक इंजनवाले जीएसएलवी डी 5 की प्रस्तावित लांचिंग ऐन मौके पर रोक दी थी. इसरो प्रमुख के राधाकृष्णनन के अनुसार, जीएसएलवी डी5 में ईंधन रिसाव होने के कारण प्रक्षेपण टाला गया था. 49 मीटर लंबे और 414 टन वजनी जीएसएलवी प्रक्षेपण यान के तीसरे चरण यानी देश में ही विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज में प्रणोदक भरने का काम चल रहा था, तभी वैज्ञानिकों को रॉकेट के दूसरे चरण में ईंधन रिसाव के संकेत मिले. रिसाव का संकेत मिलने के बाद इसरो अधिकारियों ने उलटी गिनती रोकने का निर्णय किया. रिसाव की समस्या जिस वक्त सामने आयी उस वक्त प्रक्षेपण में सिर्फ 74 मिनट का वक्त बचा था. जीएसएलवी डी5 प्रक्षेपण यान के निर्माण पर लगभग 160 करोड़ रुपये तथा उपग्रह के निर्माण पर लगभग 45 करोड़ रुपये की लागत आयी है. अब जीएसएलवी डी5 का प्रक्षेपण दिसंबर में प्रस्तावित है. क्रायोजेनिक तकनीकी के परिप्रेक्ष्य में पूर्ण सफलता नहीं मिलने के कारण भारत इस मामलें में आत्मनिर्भर नहीं हो पाया है, जबकि प्रयोगशाला स्तर पर क्रायोजेनिक इंजन का सफलता पूर्वक परीक्षण किया जा चुका है. लेकिन स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन की सहायता से लांच किये गये प्रक्षेपण यान ‘जीएसएलवी’ की असफलता के बाद इस पर सवालिया निशान लगा हुआ है. इससे पहले 2010 में भी भारत के दो महत्वाकांक्षी अभियान तकनीकी और संचालन संबंधी दिक्कतों के कारण असफल हो गये थे. जीएसएलवी का प्रक्षेपण इसरो के लिए बेहद अहम है क्योंकि दूर संचार उपग्रहों, मानव युक्त अंतरिक्ष अभियानों या दूसरा चंद्र मिशन जीएसएलवी के विकास के बिना संभव नहीं है. इस प्रक्षेपण में सफलता इसरो के लिए संभावनाओं के नये द्वार खोलनेवाली है लेकिन अब इसके लिए देश को थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा.

इसरो का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम

चंद्रयान-1 मंगलयान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब आउटर स्पेस पर हैं. इसरो ग्रहों की तलाश के लिए मिशन भेजने की योजना बना रहा है. खास बात यह है कि इसमें एक मानव मिशन भी शामिल है. मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए दो में से एक चालक दल को ले जाने और पृथ्वी पर एक पूर्वनिर्धारित गंतव्य के लिए सुरक्षित रूप से उन्हें वापस जाने के लिए एक मानव अंतरिक्ष मिशन शुरू करने की है. कार्यक्रम इसरो द्वारा तय चरणों में लागू करने का प्रस्ताव है. वर्तमान में, पूर्व परियोजना गतिविधियों क्रू मॉड्यूल, पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम (इसीएलएसएस), क्रू एस्केप सिस्टम, आदि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर इसरो ध्यान दे रहा है. पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए मनुष्य को ले जाने और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने के लिए एक अध्ययन इसरो द्वारा किया गया है.

देश की क्षमता का निर्माण और प्रदर्शन करने के उद्देश्य के साथ इसरो मानव मिशन उपक्रम से संबंधित तकनीकी और प्रबंधकीय मुद्दों का अध्ययन कर रहा है. कार्यक्रम के बारे में 300 किलोमीटर पृथ्वी की निचली कक्षा और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए दो या तीन चालक दल के सदस्यों को ले जाने के लिए एक पूरी तरह से स्वायत्त कक्षीय वाहन के विकास की परिकल्पना की गयी है. इसरो ने 2015 में अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने के लिए आरंभिक तैयारियां पूरी कर दी हैं. इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य करीब-करीब पूरा कर लिया गया है. कुछ आवश्यक मंजूरियां मिलने के बाद अंतरिक्ष यान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जायेगी. अंतरिक्ष में जानेवाली इसरो की पहली मानव फ्लाइट में दो यात्री होंगे. यह फ्लाइट अंतरिक्ष में सौ से नौ सौ किलोमीटर ऊपर तक जायेगी.

चंद्रयान-2 मिशन

चंद्रयान-2 भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) तथा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस (आरकेए) का एक प्रस्तावित चन्द्र अंवेषण अभियान है, जिसकी लागत लगभग 425 करोड़ है. जीएसएलवी प्रक्षेपण यान द्वारा प्रस्तावित इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चन्द्र यान) तथा एक रोवर एवं रूस द्वारा निर्मित एक लैंडर शामिल होंगे. इसरो के अनुसार, यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ नये प्रयोगों को भी अंजाम देगा. पहिएदार रोवर चंद्रमा की सतह पर चलेगा तथा ऑन-साइट विेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा. आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा. मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देनेवाली टीम चंद्रयान-2 पर भी काम कर रही है. इस अभियान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल एमके के द्वारा भेजे जाने की योजना है. उड़ान के समय इसका वजन लगभग 2,650 किलो होगा.

ऑर्बिटर को इसरो द्वारा डिजाइन किया जायेगा और यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चंद्रमा की परिक्रमा करेगा. इस अभियान में ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया है. तीन पेलोड नये हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जानेवाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं. चन्द्रमा की सतह से टकरानेवाले चंद्रयान-1 के लूनर प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा. लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो होगा. रोवर सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा. रोवर चंद्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा, उनका रासायनिक विश्लेषण करेगा और डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेज दिया जायेगा.

भारत सरकार ने 18 सितंबर, 2008 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में आयोजित केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस अभियान को स्वीकृति दी थी. 12 नवंबर, 2007 को इसरो और रूसी अंतरिक्ष एजेंसी (रोसकोसमोस) के प्रतिनिधियों ने चंद्रयान-2 परियोजना पर साथ काम करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे. इसमें तय किया गया था कि ऑर्बिटर तथा रोवर की मुख्य जिम्मेदारी इसरो की होगी तथा रोसकोसमोस लैंडर के लिए जिम्मेदार होगा. अंतरिक्ष यान के डिजाइन को अगस्त, 2009 में पूर्ण कर लिया गया, जिसमे दोनों देशों के वैज्ञानिकों ने अपना संयुक्त योगदान दिया.

मिशन में देरी

भारत के दूसरे चंद्र मिशन के अपनी मंजिल तक पहुंचने में काफी देर लग सकती है. इसरो के प्रमुख के राधाकृष्णन का कहना है कि हम समयसीमा को लेकर कुछ नहीं कह सकेंगे, क्योंकि रूस से लैंडर की उपलब्धता को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. वहीं, भारत के जीएसएलवी रॉकेट के परिचालन लायक होने में अभी समय है. फिलहाल चंद्रयान-2 मिशन को लेकर इसरो और रोसकोमोस के बीच बातचीत चल रही है, लेकिन बीते एक साल से इसमें कुछ खास प्रगति नहीं दिखायी दी है.

रीयूजेबल लांच वेहिकल

पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण प्रणाली, रीयूजेबल लांच वेहिकल (या पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, आरएलवी) एक से अधिक बार अंतरिक्ष में एक प्रक्षेपण यान लांच करने में सक्षम है. यह एक प्रक्षेपण प्रणाली है. पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आरएलवी-टीडी) पूरी तरह से पुन: उपयोग के योग्य प्रक्षेपण वाहन को साकार करने की दिशा में पहला कदम है. इस उद्देश्य के लिए एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन पंखोंवाला प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आरएलवी-टीडी) कांफिगर किया गया है. आरएलवी-टीडी विभिन्न प्रौद्योगिकियों मसलन हाइपरसॉनिक उड़ान, स्वायत्त लैंडिंग, संचालित क्रूज की उड़ान और जीटीओहाइपरसॉनिक उड़ान के लिए एक टेस्ट बेड की तरह काम करेगा, जो हवा में प्रणोदन का उपयोग कर सकेगा. अंतरिक्ष के लिए उपयोग की लागत अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष उपयोग में बड़ी बाधा है. एक रीयूजेबल प्रक्षेपण यान कम लागत, विश्वसनीय और जरूरत के समय अंतरिक्ष तक पहुंच रखने के लिए एक अच्छा विकल्प है. पहली बार प्रदर्शन परीक्षणों की श्रृंखला में हाइपरसॉनिक उड़ान प्रयोग हेक्स (एचइएक्स) है. इसके बाद इन प्रौद्योगिकियों प्रायोगिक उड़ानों को एक श्रृंखला के माध्यम से चरणों में विकसित किया जायेगा. प्रायोगिक उड़ानों की श्रृंखला में पहली लैंडिंग प्रयोग लेक्स (एलक्ष्एक्स), वापसी की उड़ान के प्रयोग रेक्स (आरइएक्स) और प्रणोदन प्रयोग स्पेक्स (एचपीइएक्स) के बाद आवाज से जल्द उड़ान प्रयोग (हेक्स) है. राष्ट्रीय समीक्षा समिति द्वारा अक्तूबर, 2012 में एकीकृत तकनीकी समीक्षा (आइटीआर) के बाद आरएलवी-टीडी हेक्स के-01 मिशन सितंबर, 2013 में होना निर्धारित किया था, लेकिन इसमें विलंब होने की वजह से अब यह मिशन 2014-2015 में प्रस्तावित है.

इसरो का ‘आदित्य’मार्स मिशन के बाद सन मिशन मंगलयान और चंद्रयान-1 की सफलता से उत्साहित इसरो के वैज्ञानिको ने ‘आदित्य’ नामक मिशन की योजना तैयार की है. अंतरिक्ष संबंधी वृहद योजना से जुड़े इस आदित्य मिशन को 2015-16 में प्रारंभ किये जाने की योजना है. आदित्य एक उपग्रह है, जो सोलर ‘कोरोनाग्राफ’ यंत्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्यन करेगा. इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी और विकिरण के अध्यन में मदद मिलेगी. अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के भारी भाग कोरोना का अध्ययन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे.

इस मिशन की मदद से सौर वलयों और सौर हवाओं के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है. इससे सूर्य के कोरोना से धरती के भू चुंबकीय क्षेत्र में होनेवाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा. इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अंतरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा. इस उपग्रह का वजन 100 किग्रा होगा. ये उपग्रह सूर्य कोरोना का अध्ययन कृत्रिम ग्रहण द्वारा करेगा. इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा. ये नासा द्वारा सन 1995 में प्रक्षेपित ‘सोहो’ के बाद सूर्य के अध्ययन में सबसे उन्नत उपग्रह होगा. आदित्य सूर्य के कोरोना की गर्मी और उससे होनेवाले उत्सर्जन के रहस्य को भी सुलझाने में मदद करेगा. सूर्य कोरोना का टेंपरेचर लाखों डिग्री है. पृथ्वी से कोरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखायी देता है. यह भारतीय वैज्ञानिकों की इस तरह की पहली कोशिश होगी. कोरोना के अध्ययन से सोलर एक्टिविटी कंडीशंस के बारे में अहम जानकारियां मिल सकेंगी. अब तक सिर्फ अमेरिका, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और जापान ने सूरज के अध्ययन की लिए स्पेसक्राफ्ट भेजे हैं. ‘आदित्य’ के प्रक्षेपण के बाद निसंदेह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की दखल और बढ़ जायेगी. सूर्य मिशन बहुत महत्वपूर्ण है और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी तरह का एक विशिष्ट मिशन है, इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों को इस मिशन से भारी उम्मीदें हैं.

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