<figure> <img alt="रघुबर दास ने राज्यपाल को इस्तीफ़ा सौंपा" src="https://c.files.bbci.co.uk/3BFE/production/_110285351_0876591d-7559-49f2-8eec-5ad32426d709.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Ravi Prakash</footer> </figure><p>झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने देर शाम राजभवन जाकर राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया. </p><p>देर शाम उन्होंने अपनी हार स्वीकार की और जनता से मिले जनादेश का सम्मान करने की बात कही. </p><p>सुबह से ही चुनावी परिणामों को लेकर रांची के लोग टीवी चैनलों पर नज़रें गड़ाए हुए थे. मतगणना सुबह 8 बजे जब शुरू हुई तो सबसे पहले ‘पोस्टल बैलट’ की गिनती शुरू हुई और रुझान भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दिखने लगे. </p><p>मगर एक ही घंटे के भीतर पासा पलट गया और झारखंड मुक्ति मोर्चा की अगुवाई वाले गठबंधन को बढ़त मिलने के रुझानों का सिलसिला शुरू हुआ. </p><p>इसके बाद एक बार फिर ऐसा मौक़ा आया जब रुझान भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में दिखने लगे.</p><p>कुछ देर के बाद ख़बर मिली कि रघुबर दास ख़ुद जमशेदपुर (पूर्वी) सीट पर पीछे चल रहे हैं. जबकि निर्दलीय सरयू राय उनसे आगे हैं.</p><p>जब उनसे पूछा गया कि रुझान अब महागठबंधन की तरफ जा रहे हैं तो उन्होंने कहा कि ये सिर्फ़ रुझान हैं और उन्हें सौ प्रतिशत भरोसा है कि उनकी पार्टी की ही सरकार बनेगी.</p><p>फिर एक क्षण ऐसा आया जब रघुबर दास आगे चलने लगे. लेकिन कुछ ही देर बाद उनके पिछड़ने का सिलसिला दिखने लगा. </p><p>भारतीय जनता पार्टी से बग़ावत कर निर्दलीय लड़ने वाले सरयू राय अपनी बढ़त बनाते चले गए और देर शाम तक 15 हज़ार से अधिक वोटों से आगे हो गए.</p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50892454?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">वो पाँच कारण, जिनसे झारखंड में चित हुई बीजेपी </a></p><p><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-50888974?xtor=AL-73-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">आडवाणी के रघुबर मोदी-शाह के होते ही कैसे बदले</a></p><figure> <img alt="बीजेपी के दफ्तर के बाहर का नज़ारा" src="https://c.files.bbci.co.uk/132E8/production/_110286587_14bd8b98-9eb5-49ca-8a93-9d439fff6674.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Salman Ravi</footer> </figure><p>पिछले विधानसभा के चुनाव हों या इस साल हुए आम चुनाव, रांची में भारतीय जनता पार्टी के कार्यालय में इतनी वीरानगी पहले कभी नहीं दिखी. </p><p>पिछले दोनों चुनावों में दफ़्तर की रौनक देखते ही बनती थी जब पार्टी के कार्यकर्ता झंडे लेकर बाहर सड़क पर होते थे और अन्दर बड़े नेता पत्रकारों से बात करते थे.</p><p>मगर सोमवार को माहौल ही अलग था. जहां सभी बड़े नेता नदारद रहे वहीं बहुत ही कम संख्या में कार्यकर्ता मौजूद थे. ऐसा लग रहा था जैसे ये मान कर चल रहे हैं कि अब हार होने वाली है.</p><p>शुरू में तो मीडिया वाले ही कार्यकर्ताओं से ज़्यादा नज़र आ रहे थे. मगर जैसे-जैसे दिन चढ़ता गया टीवी चैनेलों की ओबी वैन और पत्रकार एक एक कर जाते नज़र आये. </p><p>अब उनका पड़ाव झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हेमंत सोरेन का आवास था.</p><figure> <img alt="हेमंत सोरेन का आवास" src="https://c.files.bbci.co.uk/D83E/production/_110285355_86dee175-ffb6-409e-8cd9-1168058149e3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Ravi Prakash</footer> </figure><p>कार्यालय के बाहर मौजूद पार्टी के कार्यकर्ता बातचीत में खुलने लगे. फिर उनके ‘मन की बात’ जुबां पर आ ही गयी. </p><p>एक कार्यकर्ता ने नाम नहीं लिखने की शर्त पर कहा, "ये संगठन नहीं बल्कि नेताओं की हार है". </p><p>उनका कहना था कि पिछले पांच सालों में कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच काफी दूरियां बढ़ गयीं. नेता कार्यकर्ताओं को तरजीह नहीं देते थे. कुछ पुराने नेताओं की उपेक्षा भी साफ़ दिखने लगी.</p><p>पास की दुकान पर मौजूद एक और कार्यकर्ता का कहना था कि इस बार उन्होंने वोट नहीं दिया. उनका कहना था कि ये पहला चुनाव है जब उन्होंने लोगों से कहा कि वो किसी को भी वोट डाल सकते हैं.</p><figure> <img alt="जेएमएम का कार्यालय के सामने जश्न मनाते कार्यकर्ता" src="https://c.files.bbci.co.uk/8A1E/production/_110285353_fcf171a3-f812-4445-8c7b-86f4bad824b4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Ravi Prakash</footer> <figcaption>जेएमएम का कार्यालय के सामने जश्न मनाते कार्यकर्ता</figcaption> </figure><p>कोल्हान हो या संथाल परगना या फिर पलामू, हर जगह कार्यकर्ताओं में चुनावों को लेकर दिलचस्पी उतनी नहीं थी जितना जोश भाजपा के चुनावी नारे में था – अब की बार 65 पार. </p><p>मगर इस बार भारतीय जनता पार्टी तीस का आंकड़ा भी नहीं छू पाई. तो क्या कार्यकर्ताओं की उदासीनता भाजपा को महंगी पड़ी ? ये बड़ा सवाल है.</p><p>हालांकि पार्टी के प्रवक्ता दीपक प्रकाश का कहना था कि चुनाव में हार जीत तो लगी रहती है और जनता का जो फ़ैसला है उसका सम्मान होना चाहिए.</p><p><a href="https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/1537732556377482/">https://www.facebook.com/BBCnewsHindi/videos/1537732556377482/</a></p><p>वरिष्ठ पत्रकार मधुकर ने बीबीसी से कहा कि "इस बार भारतीय जनता पार्टी अति आत्मविश्वास में नज़र आई. इसलिए पार्टी ने सभी 81 सीटों पर अकेले चुनाव लड़ा और किसी भी क्षेत्रीय दल के साथ कोई गठबंधन नहीं किया."</p><p>दूसरी बात उन्होंने कही, "भारतीय जनता पार्टी राष्ट्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव जीतना चाहती थी जिनसे झारखंड की जनता का ज़्यादा सरोकार नहीं था. लोग स्थानीय मुद्दों को ही देख रहे थे." </p><p>लेकिन मधुकर का ये भी कहना है कि इस बार किसी भी राजनीतिक दल ने स्थानीय मुद्दों पर ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया. </p><p>वो कहते हैं, "पिछले 19 सालों में सिर्फ नेताओं का ही भला हुआ जबकि जनता की हालत जस की तस रही. किसी ने भी राहत पहुंचने की कोशिश नहीं की. चाहे वो भूख से हो रहीं मौतों का सवाल हो या भीड़ द्वारा की गई लिंचिंग के मामले हों या फिर पत्थलगड़ी जैसे मुद्दे हों." </p><p>"किसी राजनीतिक दल ने इन मुद्दों को लेकर कोई आन्दोलन नहीं चलाया."</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम</a><strong> और </strong><a href="https://www.youtube.com/bbchindi/">यूट्यूब</a><strong> पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>
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झारखंड: बीजेपी दफ़्तर का सन्नाटा काफ़ी कुछ कहता रहा
<figure> <img alt="रघुबर दास ने राज्यपाल को इस्तीफ़ा सौंपा" src="https://c.files.bbci.co.uk/3BFE/production/_110285351_0876591d-7559-49f2-8eec-5ad32426d709.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Ravi Prakash</footer> </figure><p>झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने देर शाम राजभवन जाकर राज्यपाल को अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया. </p><p>देर शाम उन्होंने अपनी हार स्वीकार की और जनता से मिले जनादेश का सम्मान करने की बात कही. </p><p>सुबह से ही चुनावी परिणामों को […]
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