<figure> <img alt="निशा" src="https://c.files.bbci.co.uk/F33D/production/_109896226_copyofnisha-disabilityandadoption.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>19 साल पहले अलोमा लोबो पहली बार निशा से बेंगलुरु में मिली थीं.</p><p>अलोमा एक डॉक्टर हैं और अक्सर उस अनाथालय में जाया करती थीं, जहां निशा को उनके जन्म देने वाले माता-पिता ने छोड़ दिया था.</p><p>निशा अनाथालय में रहने वाले दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग दिखती थीं. एक दुर्लभ अनुवांशिक बीमारी के चलते उनकी पलकें नहीं थीं और त्वचा बहुत ज्यादा रूखी-सूखी थी.</p><p>जब भी कोई बच्चा गोद लेने अनाथालय आता था तो वो निशा को नहीं चुनता था. </p><p>अलोमा कहती हैं, "वो पहला क्षण, जब मेरी नज़र निशा पर गई थी, मेरे लिए एक झटके की तरह था. एक बच्चे को इतने विकृत रूप में देखना बहुत मुश्किल था."</p><p>लेकिन अलोमा और उनके पति डेविड ने इससे परे भी निशा में कुछ देखा और वो था कि उन्हें प्यार की सख़्त ज़रूरत थी.</p><p>अलोमा कहती हैं, "वो बहुत छोटी थी, घायल और त्याग दी गई बच्ची. उस समय उन्हें परिवार की सख़्त जरूरत थी. उसे किसी की ज़रूरत थी, जो उन्हें गले लगा सके."</p><p>"हमारी दूसरी बेटी ने उसे उठा लिया, उसे गले लगाया और कहा- ‘मां… चलो इसे घर ले चलते हैं’, और हमने ऐसा ही किया."</p><figure> <img alt="निशा" src="https://c.files.bbci.co.uk/40C2/production/_109887561_babycover.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>वो बीमारी जो निशा को है</h1><p>निशा को लैमेलर इचथ्योसिस नाम की बीमारी है. इस बीमारी में इंसान की त्वचा मछली की त्वचा की तरह हो जाती है और यह शरीर से लगातार अलग होती रहती है.</p><p>निशा दूसरों से अलग ज़रूर दिखती हैं लेकिन वो आज एक खूबसूरत और खुशहाल ज़िंदगी जी रही हैं. इसकी वजह यह है कि उनके भाइयों और बहनों ने उनके साथ कभी भी भेदभाव नहीं किया और संभवतः उन्हें इससे उबरने में मदद मिली.</p><p>"जब मैं छोटी थी तो मैं अपने छोटे भाई से लड़ा करती थी. वो मुझे कारपेट में लपेट दिया करता था और फिर उसे कोने में रख देता था ताकि मैं हिल न सकूं."</p><p>लेकिन जब स्कूल शुरू करने की बात आई तो निशा को अलग-अलग प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा. लोग उन्हें अजीब तरह से घूरते थे और उनसे कहा जाता था कि वो कुछ चीजें नहीं कर सकती हैं, जैसे कि खेलना.</p><p>निशा कहती हैं, "जब भी मेरी त्वचा टूटती है तो मुझे काफी दर्द होता है लेकिन मैंने ऐसे ही पूरी ज़िंदगी जी है और इसलिए यह कुछ ऐसा है जिसकी आपको थोड़े वक़्त बाद आदत हो जाती है."</p><figure> <img alt="निशा" src="https://c.files.bbci.co.uk/E8BA/production/_109887595_dsc_0419s.jpg" height="1936" width="1296" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>शिक्षक बनना चाहती हैं निशा</h1><p>निशा 20 साल की होने वाली है और अभी वो बेंगलुरु के एक कॉलेज से बिज़नेस स्टडीज की पढ़ाई कर रही हैं. वो एक शिक्षक बनना चाहती हैं. वो खुद को दूसरों से अलग नहीं देखती हैं.</p><p>निशा याद करती हैं कि एक दफ़ा जब वो अपनी मां के साथ हवाई जहाज से यात्रा कर रही थीं तब उनके बगल के एक यात्री ने उनके साथ बैठने से इनकार कर दिया था और उन्हें विमान से उतारने की मांग करने लगा.</p><p>वो कहती हैं, "उन्होंने (एयरलाइन ने) माफ़ी के तौर पर मुझे बिज़नेस क्लास में जाने का अनुरोध किया."</p><p>निशा बताती हैं कि जब भी कोई उनके साथ अजीब या ग़लत व्यवहार करता है तो वो भिड़ने की बजाय उससे दूरी बना लेती हैं.</p><p>"मैं परेशान नहीं होती हूं. मैं परेशान तभी होती हूं जब मैं ऐसा होना चाहती हूं."</p><p>निशा जब चार साल की थीं, तब एक चर्च में उनसे एक महिला मिली थी.</p><p>अलोमा बताती हैं, "उसने उसका चेहरा छुआ और कहा, ‘मैं आपको नहीं जानती लेकिन आपके पूर्वजों ने ज़रूर कुछ ऐसा ग़लत किया होगा कि आपकी बेटी ऐसी है. मुझे उसे लात मारने का मन किया."</p><p>अलोमा कहती हैं कि उनका गुस्सा उनकी छोटी बेटी की वजह से शांत हो गया.</p><p>"उसने मुझे मासूमियत भरे चेहरे से देखा और इसलिए मैंने उस महिला को ‘थैंक यू सो मच’ कहा और आगे बढ़ गई."</p><figure> <img alt="निशा" src="https://c.files.bbci.co.uk/C1AA/production/_109887594_dsc_0013s.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><h1>पूर्वाग्रह से लड़ना चाहती हैं निशा</h1><p>एक अनुमान के मुताबिक देश की 2.1 फ़ीसदी आबादी यानी करीब 2.6 करोड़ लोग किसी न किसी रूप से विकलांग हैं.</p><p>वर्षों तक कई इसके दायरे से बाहर रहें लेकिन विकलांगता अधिकार कार्यकर्ताओं की मांग के बाद साल 2016 में विकलांग होने की परिभाषा को विस्तार दिया गया.</p><p>मोदी सरकार ने विकलांग को ‘दिव्यांग’ शब्द से संबोधित किया. वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने इसी साल अक्टूबर में एक कार्यक्रम में कहा था कि "विकलांग को दिव्यांग कहना मोदी सरकार का उन्हें दिया गया सबसे बड़ा तोहफा है."</p><p>सरकार का उद्देश्य है कि इससे विकलांग या अपंग लोगों के बारे में लोगों के पूर्वाग्रह मिटेंगे और उन्हें सम्मान भरी दृष्टि से देखा जाएगा.</p><p>हालांकि आज भी देश में विकलांग लोगों को भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.</p><p>निशा इस पूर्वाग्रह से लड़ना चाहती हैं. वो एक टीवी चैट शो और टेडएक्स में बोल चुकी हैं.</p><p>वो कहती हैं, "भारत में अनुवांशिक बीमारियों को एक कलंक की तरह समझा जाता है. परिवारवाले त्याग दिए जाते हैं. मांएं दोषी करार दी जाती हैं और बच्चों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है."</p><p>"अगर एक डॉक्टर को पता चलता है कि गर्भावस्था में पल रहे बच्चे को अनुवांशिक बीमारी है तो वो गर्भपात की सलाह देता है जैसे कि इन बच्चों को इस दुनिया में आने का हक़ ही नहीं है."</p><p>"मुझे जन्म देने वाले माता-पिता ने मुझे तब त्याग दिया था जब मैं महज एक सप्ताह की थी. तीन हफ़्ते बाद मुझे किसी ने अपनाया और अपने घर और अपने दिलों में जगह दी."</p><p>निशा आज एक खुशहाल युवती है और कॉलेज में पढ़ाई कर रही हैं. वो शिक्षक बनना चाहती हैं, हालांकि उसके पिता डेविड उन्हें पहले से ही एक शिक्षक मानते हैं.</p><p>डेविड कहते हैं, "मुझे लगता है कि उसने मेरे जीवन पर सबसे बड़ी छाप छोड़ी है. वो एक ऐसी शख़्स है जो प्रतिक्रिया नहीं देती है. वो हमेशा अपनी स्थितियों को संभालती है. हमलोग मौसम, ट्रैफिक और ज़्यादा ठंड होने पर प्रतिक्रिया देते हैं लेकिन वो ऐसा नहीं करती है. वो हमेशा खुश रहती हैं."</p><p>"अगर आप उसकी तस्वीरों के देखेंगे तो वो उसे हमेशा मुस्कुराता पाएंगे. उसकी मुस्कान में जीवन भर की खुशी होती है. मुझे लगता है कि वो एक अद्भुत शिक्षक है- मैंने उससे बहुत कुछ सीखा है."</p><p>"मुझे लगता है कि खुशी मन की एक अवस्था है, यह सिर्फ एक भावना नहीं है. मेरी त्वचा मेरे शरीर का एक हिस्सा है और यह सबकुछ नहीं है. मैं खुद खुश रहने का फैसला कर सकता हूं या फिर दुखी होने का."</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां 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लैमेलर इचथ्योसिस: ‘वो बीमारी जिससे मेरी त्वचा शरीर से अलग होती रहती है’
<figure> <img alt="निशा" src="https://c.files.bbci.co.uk/F33D/production/_109896226_copyofnisha-disabilityandadoption.jpg" height="549" width="976" /> <footer>BBC</footer> </figure><p>19 साल पहले अलोमा लोबो पहली बार निशा से बेंगलुरु में मिली थीं.</p><p>अलोमा एक डॉक्टर हैं और अक्सर उस अनाथालय में जाया करती थीं, जहां निशा को उनके जन्म देने वाले माता-पिता ने छोड़ दिया था.</p><p>निशा अनाथालय में रहने वाले दूसरे बच्चों से बिल्कुल अलग दिखती थीं. […]
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