बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल यूनाइटेड मिलकर सरकार चला रहे हैं और इसी सरकार के पुलिस विभाग ने भाजपा के संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समेत 19 संगठनों के ख़ुफ़िया जांच के आदेश दे दिए.
इस मुद्दे पर बुधवार को उच्च सदन में भारी हंगामे के साथ राज्य का राजनीतिक तापमान भी गरम हो गया.
इससे भाजपा और जदयू के बीच संबंध फिर से तनावपूर्ण से हो गए हैं. भाजपा का एक ख़ेमा जदयू से संबंध तोड़ने की वकालत कर रहा है, जबकि बिहार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने मौन साध रखा है.
विधान परिषद सदस्य संजय मयूख इस प्रकरण को चौंकाने वाला बताते हैं तो सच्चिदानंद राय अंतिम फ़ैसला लेने की बात कर रहे हैं.
पार्टी के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल इस मामले की जांच करवाने की मांग करते हैं और कहते हैं कि "आरएसएस एक राष्ट्रवादी संगठन है और वह कोई प्रतिबंधित संस्था नहीं है. समूचे प्रकरण की जांच कराई जानी चाहिये."
दरअसल, बिहार पुलिस की ख़ुफ़िया शाखा ने लोकसभा चुनाव परिणाम आने के पांच दिनों के बाद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ताजपोशी के दो दिन पहले आरएसएस और उससे जुड़े अलग-अलग संगठनों से जुड़े लोगों के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी उपलब्ध करने के संबंध में 28 मई को एक आदेश पत्र जारी किया था.
पुलिस अधीक्षक द्वारा जारी पत्र के माध्यम से सभी संगठनों से जुड़े लोगों की विस्तृत जानकारी एक सप्ताह के भीतर मुख्यालय को भेजने को कहा गया था.
इस मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड के राष्ट्रीय महासचिव पवन वर्मा ने कोई प्रतिक्रिया तक देने से इंकार कर दिया.
उधर मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीक़ी इसपर चुटकी लेते हैं और कहते हैं कि "जदयू का भाजपा से पुराना रिश्ता है, लेकिन इन संगठनों से वे रिश्ता ठीक ढंग से नहीं जोड़ पाए होंगे. मुख्यमंत्री ने उन संगठनों से अच्छा रिश्ता बनाने के लिए ही ऐसी जानकारी जुटाने का निर्देश दिया होगा."
प्रदेश में बढ़ती राजनीतिक तनातनी के बीच विशेष शाखा के अपर पुलिस महानिदेशक जेएस गंगवार ने सरकार का पक्ष रखा और कहा कि "आरएसएस के नेताओं को ख़तरा था और इससे संबंधित कुछ विशिष्ट इनपुट हमारे पास थे. उसी आलोक में यह पत्र निर्गत किया गया. लेकिन, पुलिस अधीक्षक ने इस संबंध में जो पत्र जारी किया वह विधि सम्मत नहीं था."
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जिस पत्र के संबंध में बात की जा रही है उसकी जांच की गयी है और पाया गया है कि पुलिस अधीक्षक ने अपने ही स्तर से निर्गत कर दिया है. इसकी जानकारी किसी अन्य अधिकारी को नहीं है. जानकारी मांगने का तरीक़ा भी प्रथम दृष्टया सही नहीं पाया गया है.
एडीजी गंगवार ने कहा कि "जारी पत्र के संदर्भ में किसी भी वरीय अधिकारी से अनुमोदन प्राप्त नहीं किया गया है. तत्कालीन पुलिस अधीक्षक से उनका पक्ष जानकर उनसे स्पष्टीकरण लिया जाएगा और उसी आधार पर कारवाई होगी ".
मामले पर वरिष्ठ पत्रकार नचिकेता नारायण कहते हैं कि "यह कहना कि वरीय अधिकारियों को दो महीने पुराने पत्र के संबंध में जानकारी नहीं थी यह अविश्वसनीय है. दो सत्ताधारी दलों के बीच की खटपट को देखते हुए अधिकारी द्वारा जल्दबाज़ी में ऐसी प्रतिक्रिया दी गयी है ".
वहीँ वरिष्ठ पत्रकार एसए शाद कहते हैं कि "इस पूरे मामले में दो चीज़ें ग़ौर करने लायक़ हैं. पहला पत्र जारी करने का समय और उसके उद्देश्य से जुड़ा है. हो सकता है कि संघ समेत अन्य संगठनों के डाटा बेस तैयार करना इसका उद्देश्य रहा होगा, लेकिन मुझे नहीं लगता कि कोई भी अधिकारी इतने संवेदनशील मामले पर बिना किसी उपरी आदेश के ऐसा पत्र जारी करेगा."
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