सर्वोच्च न्यायालय ने दहेज विरोधी क़ानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा है कि ऐसे मामलों में पुलिस स्वत: ही अभियुक्त को गिरफ़्तार नहीं कर सकती.
समाचार एजेंसी पीटीआई के मुताबिक़ शीर्ष अदालत ने कहा अगर पुलिस किसी को ऐसे मामलों में गिरफ़्तार करती है तो उसे इसकी वजह बतानी होगी जिसकी न्यायिक समीक्षा की जाएगी.
ससुराल पक्ष के हाथों महिलाओं के शोषण को रोकने के लिए ही साल 1983 में भारतीय दंड संहिता में धारा 498ए जोड़ी गई थी.
दहेज उत्पीड़न के अधिकतर मामलों में पुलिस आरोपों की सत्यता की जाँच के बिना ही महिला की ओर से नामज़द अभियुक्तों को सबसे पहले गिरफ़्तार करती है और बाद में आगे की कार्यवाही करती है.
चिंता
जस्टिस चंद्रमौली कुमार और जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष की खंडपीठ ने कहा, "संज्ञेय और ग़ैर ज़मानती धारा होने के कारण असंतुष्ट पत्नियाँ इसका इस्तेमाल रक्षा कवच के बजाय हथियार के तौर पर कर रही हैं."
अदालत ने इस तथ्य की तरफ इशारा किया कि साल 2012 में इस धारा के तहत गिरफ़्तार होने वाले लोगों में एक चौथाई महिलाएं थीं जिनमें से अधिकतर आरोपी पतियों की बहनें और माएं थीं.
अदालत ने कहा, "हम मानते हैं कि कोई भी गिरफ़्तारी सिर्फ़ इसलिए नहीं की जानी चाहिए कि यह धारा संज्ञेए और ग़ैर ज़मानती हैं. पुलिस को भी अपनी रूढ़ मानसिकता से निकलना होगा."
न्यायालय ने यह फ़ैसला बिहार के एक व्यक्ति की ओर से दायर याचिका पर दिया जिसने पत्नी की ओर से दायर दहेज उत्पीड़न के मामले में अग्रिम ज़मानत माँगी थी.
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए यहां क्लिक करें. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर भी फ़ॉलो कर सकते हैं.)