महाराष्ट्र की कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार ने राज्य की सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में मराठों के लिए 16 फ़ीसदी और पिछड़े मुसलमानों के लिए पाँच फ़ीसदी आरक्षण देने का फ़ैसला किया है.
बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में ये निर्णय लिया गया.
इस बारे में जानकारी देते हुए मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा, ”मराठा समुदाय को शैक्षणिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा तबक़ा माना जा रहा है. मुसलमानों का कोटा धर्म आधारित नहीं बल्कि सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन पर आधारित है.”
उन्होंने कहा कि ये फ़ैसला तत्काल प्रभाव से लागू होगा.
बताया जा रहा है कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार और इसी साल के अंत में होने वाले विधान सभा चुनाव के मद्देनज़र सरकार ने ये फ़ैसला किया है.
प्रतिक्रिया
विपक्षी दल भाजपा और शिवसेना ने सरकार के फ़ैसले को राजनीति से प्रेरित क़रार देते हुए कहा कि ये फ़ैसला अदालत में नहीं टिक पाएगा.
महाराष्ट्र में पहले से ही 52 फ़ीसदी आरक्षण है और सरकार के इस फ़ैसले के बाद राज्य में कुल 73 फ़ीसदी आरक्षण हो जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 प्रतिशत तय कर रखी है, इस बारे में सवाल पूछे जाने पर मुख्यमंत्री ने कहा, ”यदि कोई अदालत पहुंचता है तो अपना पक्ष रखेंगे.”
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