अशोक भौमिक
चित्रकार
पूरी दुनिया में चित्रकला एक ऐसा कला माध्यम रहा है, जहां प्रायः चित्रकारों ने गंभीर विषयों पर ही चित्र बनाने को ही कला की सार्थकता माना है.लेकिन, हमें ऐसे कुछ नायाब चित्र भी मिलते हैं, जो व्यंग्य चित्र या कार्टून न होकर भी हमें आनंद दे जाते हैं. ऐसा ही एक चित्र है- ‘घोस्ट ऑफ ए जीनियस’ (प्रतिभाशाली का भूत). इसे विख्यात चित्रकार पौल क्ली ने बनाया है.
पौल क्ली (18 दिसंबर 1879- 29 जून 1940) के इस सरल-सहज संरचना वाले चित्र में उनकी रेखाओं की विशेषता पर गौर करने से पहले तो लगता है कि चित्रकार ने किसी और विषय पर सोचते हुए एक लक्ष्यहीन चित्रकारी (डूडल) की है, पर जल्द ही हम समझ पाते हैं कि इन बारीक रेखाओं ने वास्तव में इस चित्र की संरचना को एक अभिनव आधार दिया हैं.
इन रेखाओं ने चित्र में बने आदमी के दैहिक गठन (एनाटॉमी) का एक निश्चित स्वरूप दिया है, साथ ही इन रेखाओं के बीच में बने रिक्त स्थानों में (स्पेस), रंगों की सीमित विविधता के जरिये, चित्र में आदमी का चेहरा, गर्दन, हाथ आदि को उसके पहनावे से भिन्न भी किया है.
इस चित्र की पृष्ठभूमि सपाट है, जो चित्र के केंद्र में खड़े आदमी को और भी निःसंग बनता है. यहां गौर करने पर हम इस आदमी की आंखों के विशेष रंग को देख सकते हैं, जिसे पौल क्ली ने इस चित्र में अन्य कहीं भी प्रयोग नहीं किया है.
पौल क्ली के चित्रों में दृश्य-जगत के पार जाकर अनदेखे लोगों, अनदेखी दुनिया और अपरिचित परिस्थितियों की एक जांच-पड़ताल दिखती है. कई चित्रों में वे व्यंग्यात्मक भी लगते हैं, पर पौल क्ली की सबसे बड़ी विशेषता, चित्रों की सरल संरचना और अभिनव विषय चयन में हैं.
पौल क्ली के चित्रों को सतही तौर पर देखने से हमें चित्रों में छोटे बच्चों के चित्रों जैसी सरलता दिखायी देती है, पर इस सरलता को हासिल करने के लिए उन्होंने कितनी सजगता के साथ श्रम किया था, इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है. उन्होंने अपने समय के सिर्फ यूरोप में कई चित्रकारों को ही नहीं, बल्कि अपने बाद की पीढ़ी के विश्वभर के तमाम अन्य चित्रकारों को भी प्रभावित किया. वास्तव में वे उन विरले चित्रकारों में हैं, जिनके चित्रों का अपना एक स्वतंत्र ‘दर्शन’ है.
संगीत से अपने विशेष लगाव के चलते पौल क्ली ने चित्र में संगीत के तत्वों को जोड़ने की कोशिश की, पर उनकी हर ऐसी कोशिशों का उद्देश्य एक ऐसी सरलता को हासिल करना था, जहां इनके चित्र कोई गूढ़ बात नहीं ‘कहते’ दिखते हैं.
‘बच्चे, यानी आमतौर से किसी को देखकर चित्र नहीं बनाते हैं, बल्कि कल्पना से ही वे चरित्रों को अपने चित्र में गढ़ते हैं’, इस बात ने पौल क्ली को बहुत प्रभावित किया था. उन्होंने सरलता और सहजता प्रहसन की नाटकीय मुहूर्तों और मुद्राओं को अपने चित्रों का मूल आधार बनाया, जिसके कारण दुनिया के विशाल चित्रकला जगत में उनकी अपनी एक विशिष्ट पहचान बनी.