आइआइटी पास मेधावी छात्रों का नया रूझान
बड़े-बड़े कॉरपोरेट घरानों की नौकरियों का मोह छोड़ बहुत से मेधावी छात्र अब कोचिंग संस्थानों में अपना कैरियर बना कर दौलत और शोहरत कमा रहे हैं. देश में सबसे ज्यादा आइआइटी छात्र देनेवाले अकेले कोटा (राजस्थान) में ऐसे मेधावी लोग कोचिंग संस्थानों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और मोटी पगार ले रहे हैं. कोटा में 580 से अधिक आइआइटी पास छात्र कोचिंग सेंटरों में अध्यापन कर रहे हैं. पढ़ें इसी पर आधारित एक रिपोर्ट.
बहुत दिन पहले की बात नहीं है, जब देश का हर मेधावी छात्र सरकारी अफसर बनने या कॉरपोरेट कंपनी ज्वाइन करने का सपना देखता था. सरकारी आरक्षण नीति ने सरकारी अधिकारी बनने का सपना तोड़ दिया. कॉरपोरेट कंपनियों में नौकरी पाना भी आसान नहीं रह गया. लेकिन, अब माहौल बदल गया है. उच्च शिक्षण संस्थानों से पढ़े-लिखे लोगों को कॉरपोरेट कंपनियों का आकर्षण भी अब नहीं लुभाता. खास कर आइआइटी से पास करनेवाले लोगों को. आइआइटी से पासआउट लोगों को इन दिनों जो क्षेत्र सबसे ज्यादा लुभा रहा है, वह है कोचिंग.
इनमें बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जो मोटी तनख्वाह की नौकरी छोड़ कर कोचिंग में पढ़ाने लगे हैं. जी हां, कॉरपोरेट कंपनियों की नीरस कार्यशैली से ऊब कर बड़ी संख्या में लोग नौकरी छोड़ने लगे हैं. ये दूसरी नौकरी तलाशने के बजाय कोचिंग सेंटर में फैकल्टी (शिक्षक) बनना ज्यादा पसंद कर रहे हैं. और तो और, देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) से पढ़े लोग भी कोचिंग संस्थानों में शिक्षण कार्य से जुड़ रहे हैं.
एक अंगरेजी समाचार पत्र के मुताबिक, आइआइटी से पास आउट 580 से अधिक लोग हैं, जो सिर्फ राजस्थान के कोटा में पढ़ा रहे हैं. इनमें से कुछ को सालाना दो करोड़ रुपये का पैकेज मिलता है. बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग हैं, जिनकी बड़े कोचिंग संस्थानों में अच्छी-खासी हिस्सेदारी है. कोटा देश का एकमात्र थ्री टियर शहर है, जहां इतनी संख्या में आइआइटी से पास कर चुके लोग रहते हैं.
आइआइटी खड़गपुर से अपनी शिक्षा पूरी करनेवाले वैभव झवर ने कोचिंग में पढ़ाने के लिए रिलायंस रिफाइनरी की नौकरी छोड़ दी. रिलायंस की नौकरी छोड़ना वैभव के लिए इतना आसान नहीं था. लेकिन, उन्हें नौकरी छोड़ने का मलाल भी नहीं है. वैभव कहते हैं, ‘कॉरपोरेट जगत में नौकरी करते समय आप एक कंपनी का मुनाफा बढ़ाने में योगदान करते हैं. लेकिन कोचिंग संस्थान में आप एक विद्यार्थी ही नहीं, देश का भी भविष्य गढ़ते हैं.’
फोर्ब्स-500 की सूची में शामिल कंपनी में ढाई साल तक काम करने के बाद वैभव ने वर्ष 2012 में एलन कैरियर इंस्टीटय़ूट ज्वाइन किया. और आज उन कंपनियों में मिलनेवाले वेतन से कहीं ज्यादा कमाते हैं. कई लोगों ने कॉरपोरेट जगत की नीरस कार्यशैली के कारण नौकरी छोड़ दी, तो कई लोगों को मोटा पैकेज कोचिंग के क्षेत्र में खींच लाया. एक बड़े कोचिंग सेंटर में आठ लाख रुपये प्रति माह का पैकेज पानेवाले एक शिक्षक कहते हैं, ‘आज मुङो जो वेतन मिलता है, वह मेरी पिछली नौकरी में मिलनेवाली राशि से 3.5 लाख रुपये अधिक है. एक बार में इतनी बड़ी वेतन वृद्धि किसी और सेक्टर में संभव नहीं है. यही वजह है कि मैंने कोचिंग के क्षेत्र में आना कबूल किया.’
यहां बताना प्रासंगिक होगा कि राजस्थान के कोटा शहर को आइआइटी की तैयारी के लिए सबसे बढ़िया जगह माना जाता है. आइआइटी-जेइइ की परीक्षा में सबसे ज्यादा विद्यार्थी यहीं से पास होते हैं. कोटा ने वित्तीय वर्ष 2012-13 में 180 करोड़ रुपये सेवा कर दिये. इसमें 75.38 करोड़ का सर्विस टैक्स सिर्फ कोचिंग संस्थानों ने अदा किया. देश भर में मौजूद 16 आइआइटी और आइएसएम धनबाद में उपलब्ध 9,784 सीटों के लिए कोटा के सिर्फ पांच कोचिंग संस्थानों के जरिये एक लाख से अधिक विद्यार्थी तैयारी करते हैं.
कंपनियों से क्यों हुआ मोहभंग
मंदी के नाम पर कॉरपोरेट जगत में होनेवाली छंटनी के मद्देनजर आइआइटी से पढ़े-लिखे लोगों ने नया रास्ता चुना. कोचिंग संस्थानों को भी योग्य शिक्षकों को मोटा पैकेज देने में कोई आपत्ति नहीं होती. आइआइटी मद्रास से 1994 बैच में पास करनेवाले आरके वर्मा ने वर्ष 2001 में आइआइटी में कोचिंग के महत्व को समझा और रोसोनेंस एडुवेंचर्स प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की. वह कहते हैं कि आइआइटी से पास करनेवाले लोगों को पता होता है कि आइआइटी की परीक्षा कैसे पास कर सकते हैं. वह छात्रों को बेहतर मार्गदर्शन दे सकते हैं. यदि आइआइटी से पासआउट लोग पढ़ाते हैं, तो विद्यार्थियों का भी मनोबल ऊंचा रहता है.