22.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

यूपी-बिहार, हिंदी प्रदेशों में नाट्य विद्यालयों की जरूरत

अमितेश, रंगकर्म समीक्षक सुबह-सुबह पटना में आप प्रेमचंद रंगशाला पहुंचिये या शाम में ही और प्रेक्षागृह के चारों ओर एक चक्कर लगाइये, थोड़े-थोड़े अंतराल पर रंग समूह पूर्वाभ्यास करते हुए मिल जायेंगे. ये यहां रोज मिलते-सीखते हैं और कभी-कभी कोई बाहर से आकर कार्यशाला कराता है, तो उसमें सीखते हैं या नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित […]

अमितेश, रंगकर्म समीक्षक
सुबह-सुबह पटना में आप प्रेमचंद रंगशाला पहुंचिये या शाम में ही और प्रेक्षागृह के चारों ओर एक चक्कर लगाइये, थोड़े-थोड़े अंतराल पर रंग समूह पूर्वाभ्यास करते हुए मिल जायेंगे. ये यहां रोज मिलते-सीखते हैं और कभी-कभी कोई बाहर से आकर कार्यशाला कराता है, तो उसमें सीखते हैं या नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित होकर वापस आये रंगकर्मियों के साथ काम करके सीखते हैं. जो महत्वपूर्ण है, वह सीखने और विपरीत परिस्थितियों में भी रंगकर्म करने का जज्बा, अपना नुकसान करके भी.
क्योंकि बिहार और अन्य हिंदी प्रदेश में अभी रंगकर्म ऐसा नहीं है, जिसमें सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आमदनी हो सके, सामाजिक तंज और उपेक्षा भी साथ चलती है. युवाओं के बीच रंगमंच का आकर्षण बढ़ा है, इसका एक कारण यह भी है कि दृश्य माध्यमों के डिजिटल और सिनेमाई स्वरूप में जाकर प्रसिद्धि और धन अर्जित करने योग्य बनने में रंगमंच बुनियादी तैयारी दे देता है. हिंदी प्रदेश के देशी अभिनेताओं की सफलता और उनका रंगकर्मी होना भी इस आकर्षण को बढ़ाता है.
छोटे शहरों में रंगकर्म कार्यशालाओं और उनमें सीखने के लिए आनेवाले लोगों की संख्या बढ़ी है. बिहार में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (रानावि) और मध्य प्रदेश ड्रामा स्कूल (एमपीएसडी) के स्नातक दूर-दराज के इलाकों में कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं. एमपीएसडी के स्नातक जहांगीर ने छपरा में सात दिन की कार्यशाला की. इससे पहले जहांगीर पूर्वी चंपारण के गांव पजिअरवा से ग्रामीण अभिनेताओं के बीच काम करके लौटे थे. जहांगीर पटना में नियमित तौर पर आशा रेपर्टरी के नाम से रंग समूह चलाते हैं. सब रंगकर्म और सिनेमा में कैरियर बनाने को इच्छुक तो थे ही, गहन प्रशिक्षण के लिए किसी नाट्य प्रशिक्षण संस्थान में भी जाना चाहते थे. यह अकारण नहीं है कि बिहार से इस वर्ष रानावि में पांच रंगकर्मियों का चयन हुआ, जिसमें तीन लड़कियां थीं. कुछ लोग एमपीएसडी में भी चयनित हुए.
हिंदी प्रदेश में लंबे अरसे से रानावि जैसे या उससे बेहतर रंग प्रशिक्षण संस्थान की मांग की जा रही है. उत्तर प्रदेश में भारतेंदु नाट्य संस्थान है, जिसने एक समय में अच्छा काम किया था, लेकिन अभी संकटग्रस्त है. हाल ही में रानावि ने बनारस में शास्त्रीय नाट्य प्रशिक्षण का केंद्र खोला है, उसकी पहले से एक सीमा तय है. झारखंड में केंद्रीय विवि में नाट्य प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम है. बिहार में भी नाट्य प्रशिक्षण का पाठ्यक्रम ललित नारायण मिथिला विवि में चलता है, लेकिन वह बिहार के रंगकर्मियों की आकांक्षाओं पर खरा नहीं उतरता.
मध्य प्रदेश का उदाहरण देखा जा सकता है, जहां प्रशिक्षण विद्यालय खुलने के सात सालों के दरम्यान ही प्रदेश की रंग संस्कृति में एक बदलाव आया है. यहां के प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम, प्रस्तुतियों और उत्तीर्ण स्नातकों ने देश का ध्यान खींचा और स्थानीय लोककला में आधुनिक नवाचार हुआ. एमपीएसडी को सात सालों में राष्ट्रीय फलक पर लानेवाले संजय उपाध्याय एमपीएसडी की जिम्मेदारी से मुक्त हो आजकल बिहार में सक्रिय हैं.
बिहार में रंगमंच और लोककलाओं की समृद्ध परंपरा है. लेकिन लौंडा नाच, आल्हा, बृजाभार, कीर्तनिया, सलहेस इत्यादि नाट्य-कलाएं विलुप्त होने के कगार पर हैं.
यहां ग्रामीण रंगमंच की भी विशद परंपरा रही है. बिहार के अधिकांश आधुनिक रंगकर्मी ग्रामीण रंगमंच से निकले हैं. सांस्कृतिक संपन्नता के बावजूद बिहार की कोई सांस्कृतिक छवि नहीं है, जबकि रंगकर्मियों ने सीमित संसाधनों में बिहार के रंगमंच की राष्ट्रीय पहचान बनाने की कोशिश की है. बिहार सरकार ने बिहार म्यूजियम, बिहार प्रवेश द्वार और ज्ञान भवन बनवाया है और बिहार के रंगकर्मी अरसे से एक नाट्य विद्यालय की मांग कर रहे हैं, ताकि रंगकर्मियों को प्रशिक्षण के लिए दूसरे प्रदेशों में न जाना पड़े. बिहार में अभी कई ऐसे रंगकर्मी हैं, जिनके अनुभव का लाभ बिहार सरकार ले सकती है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें