संयुक्त राष्ट्र: भारत ने मौत की सजा के इस्तेमाल पर संयुक्त राष्ट्र महासभा में पेश एक मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. उसने कहा कि यह देश के वैधानिक कानून के खिलाफ जाता है, जहां इस तरह की सजा ‘दुर्लभतम’ मामलों में दी जाती है.
महासभा की तीसरी कमेटी (सामाजिक, मानवीय, सांस्कृतिक) में पेश कियेगये इस मसौदा प्रस्ताव के पक्ष में 123, खिलाफ में 36 मत पड़े. 30 सदस्यों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया. इसी के साथ यह मसौदा प्रस्ताव स्वीकृत कर लिया गया.
भारत उन देशों में शामिल था, जिसने प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया. इस प्रस्ताव में महासभा ने सभी सदस्य देशों से मौत की सजा पाने वाले व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित अंतरराष्ट्रीय मानकों का सम्मान करने और यह सुनिश्चित करने का आह्वान किया कि इसे पक्षपाती कानूनों के आधार पर या कानून के भेदभावपूर्ण या मनमाने इस्तेमाल के परिणाम स्वरूप लागू नहीं किया जाये.
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन में प्रथम सचिव पॉलोमी त्रिपाठी ने देश के मत पर सफाई देते हुए कहा कि प्रस्ताव मौत की सजा को खत्म करने के मकसद से फांसी की सजा पर रोक लगाने को बढ़ावा देने की बात करता है.
उन्होंने कहा, ‘मेरे शिष्टमंडल ने इस पूरे प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया है, क्योंकि यह भारत के वैधानिक कानून के खिलाफ जाता है.’
त्रिपाठी ने कहा, ‘भारत में मौत की सजा ‘दुर्लभतम’ मामलों में दी जाती है, जहां अपराध इतना जघन्य होता है कि पूरे समाज को झकझोर देता है. भारतीय कानून स्वतंत्र अदालत द्वारा निष्पक्ष सुनवाई, दोष साबित होने तक निर्दोष माने जाने की धारणा, बचाव के लिए न्यूनतम गारंटी और ऊपरी अदालत द्वारा समीक्षा के अधिकार समेत सभी अपेक्षित प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का प्रावधान करता है.’
मसौदा प्रस्ताव पारित होने से पहले इस पर बहुत गहन चर्चा हुई थी और सिंगापुर ने 34 देशों की ओर से एक संशोधन पेश किया था, जिसमें देशों के पास अपना खुद का कानूनी तंत्र स्थापित करने के स्वायत्त अधिकार की पुन: पुष्टि की गयी थी.
कमेटी ने इसके पक्ष में पड़े 96 मतों के साथ संशोधन को स्वीकार कर लिया था. भारत ने संशोधन के पक्ष में वोट डाला था.