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मैकलॉडगंज की पांच बेहतरीन जगहें

डॉ कायनात काजी सोलो ट्रेवेलर हिमाचल प्रदेश को आप हिमालय का पैरहन कह सकते हैं. हिमालय की नयी पहाड़ियों को खुद में समेटे हुए यह राज्य 55,673 वर्ग किमी में फैला हुआ है. हिमाचल प्रदेश नैसर्गिक सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक है. ऐसा प्रदेश, जहां वर्ष में किसी भी समय जाया जा सकता है. हिमाचल […]

डॉ कायनात काजी
सोलो ट्रेवेलर
हिमाचल प्रदेश को आप हिमालय का पैरहन कह सकते हैं. हिमालय की नयी पहाड़ियों को खुद में समेटे हुए यह राज्य 55,673 वर्ग किमी में फैला हुआ है. हिमाचल प्रदेश नैसर्गिक सौंदर्य और समृद्धि का प्रतीक है. ऐसा प्रदेश, जहां वर्ष में किसी भी समय जाया जा सकता है. हिमाचल इतनी विविधता लिये हुए है कि इसे एक बार में पूरा नहीं देखा जा सकता.
मैकलॉडगंज धर्मशाला से लगा हुआ कस्बा है. यह हिमाचल के कांगड़ा जनपद में आता है. हमने जैसे ही हिमाचल में प्रवेश किया, दूर-दूर तक फैले देवदार के पेड़ों, हिमालय पर्वत शृंखला की ऊंची-नीची चोटियां और उनके ऊपर पिघल चुकी बर्फ के निशानों ने हमारा स्वागत किया. बड़े-बड़े चट्टानों पर फैले चीड़ और देवदार के हरे-भरे जंगल सबका मन मोह लेते हैं.
धर्मशाला से नौ किमी दूर, समुद्र तल से 1,830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मैकलॉडगंज एक छोटा-सा कस्बा है. यहां हर जगह आपको तिब्बती लोग मिल जायेंगे. तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा का वर्तमान में निवास यहीं है. इसलिए भी शायद इस जगह को ‘मिनी ल्हासा’ कहा जाता है. यहां दुकानें, रेस्तरां, होटल और सड़क किनारे लगनेवाले बाजार सब कुछ हैं. गर्मी के मौसम में भी यहां खासी ठंडक रहती है.
दलाई लामा मंदिर : यहां का सबसे प्रमुख आकर्षण दलाई लामा का मंदिर है, जहां शाक्य मुनि, अवलोकितेश्वर एवं पद्मसंभव की मूर्तियां विराजमान हैं. यह मंदिर मुख्य बाजार से थोड़ी-सी दूरी पर ही है. ऊंचाई पर बना यह मंदिर हमेशा सैलानियों से भरा रहता है. यहां अंदर कैमरा ले जाने की मनाही है. हमने मंदिर के बहार से ही घाटी की तस्वीरें खींची.
देवदार के जंगल नीचे दूर तक फैले हुए थे, जिनके आगे बादल भी छोटे जान पड़ते थे. दलाई लामा के मंदिर से सनसेट का नजारा देखना अद्भुत होता है. यह दृश्य देखने के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं. यहां आनेवाले सैलानी शाम के समय तक जरूर रुकते हैं. यहां से धौलाधार पीक का नजारा भी बहुत शानदार दिखता है.
भागसूनाग मंदिर और झरना : मैकलॉडगंज के आस-पास बने मंदिर लोगों को खासे आकर्षित करते हैं. यहां से लगभग 10 किमी की दूरी पर स्थित है भागसूनाग मंदिर. यह भव्य तो नहीं, लेकिन प्रसिद्ध जरूर है. मंदिर के आगे एक पतला रास्ता भागसूनाग झरने की ओर जाता है.
उस रास्ते पर चलते हुए हम एक घाटी में पहुंच गये, जहां दूर एक सुंदर झरना बह रहा था. उस झरने तक पहुंचने के लिए पहाड़ को काट कर पतली पगडंडी बनायी गयी है. इसका पानी एकदम निर्मल और ठंडक भरा होता है. यहां लोग घंटों पत्थरों पर बैठकर झरने की फुहारों का आनंद लेते हैं. नजदीक में ही एक चाय की दुकान है. ठंडी फुहार के साथ चाय की चुस्कियों का अपना अलग ही आनंद है.
ग्युटो तांत्रिक मॉनेस्ट्री: ग्युटो तांत्रिक मॉनेस्ट्री मैकलॉडगंज से 16 किमी पहले पड़ती है. यहां भारत और तिब्बत की संस्कृतियों का संगम देखने को मिलता है. यहां तिब्बती संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करता एक पुस्तकालय भी स्थित है. इस मॉनेस्ट्री में महात्मा बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा है.
सेंट जॉन चर्च: मैकलॉडगंज के रस्ते में पड़नेवाला सेंट जॉन चर्च सन् 1852 में बना था. काले पत्थर की बनी नियो गोथिक स्टाइल की बिल्डिंग इतनी मजबूत है कि भूकंप भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है.
यहां बहुत शांति फैली हुई होती है. यहां घूमने के लिए दो-तीन दिन का समय निकालकर जरूर आएं, ताकि आप प्रकृति की गोद में बैठकर शांति का अनुभव कर सकें. दूर-दूर तक फैली हरियाली और पहाड़ियों के बीच बने पतले, ऊंचे-नीचे व घुमावदार रास्ते ट्रैकिंग के लिए आकर्षित करते हैं. यहां पास ही बहुत सरे ट्रैकिंग स्पॉट्स हैं. लोग एडवेंचर स्पोर्ट्स जैसे पैराग्लाइडिंग, पैरासेलिंग आदि के लिए यहां के बीड नामक स्थान पर आते हैं. पहाड़ी रास्तों पर बाइकिंग का मजा लेना चाहते हैं, तो आपको यहां किराये पर मोटर साइकिल मिल जायेगी.
मैकलॉडगंज मुख्य बाजार : अगर आप शॉपिंग के शौकीन हैं, तो मैकलॉडगंज के मुख्य बाजार जरूर जाएं. यहां बहुत सारे तिब्बती हाथ के बने गर्म कपड़े बेचते हैं. कैंपिंग और ट्रैकिंग का सामान भी मिल जाता है. इस बाजार में कुछ बेहतरीन कैफे भी हैं, जहां आप तिब्बतियन खाने का मजा उठा सकते हैं.
कब जाएं: मार्च से जून के दौरान या फिर सितंबर से नवंबर के बीच.
कहां ठहरें : यहां हर बजट के होटल और गेस्ट हाउस हैं. पर्यटन विकास निगम के होटलों में भी बुकिंग करायी जा सकती है. लेकिन हां, गर्मी के मौसम में कमरों का किराया कुछ बढ़ जाता है.

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