वाशिंगटनः पाकिस्तान को अमेरिका की आेर से अब आसानी से आर्थिक मदद मिलना आसान नहीं लगता दिखार्इ दे रहा है. इसका कारण यह है कि अमेरिकी संसद का एक शीर्ष पैनल एक प्रस्ताव पर विचार करले वाला है, जो पाकिस्तान को दी जानी वाली असैन्य एवं सैन्य सहायता पर कड़ी शर्तें लगा सकता है. वह ऐसी सहायता मिलने की स्थिति में इस्लामाबाद पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में संतोषजनक प्रगति दिखाने की शर्त लगा सकता है. हाउस एप्रोप्रिएशन कमेटी ने 2018 स्टेट एंड फॉरेन ऑपरेशंस एप्रोप्रिएशंस मसौदा विधेयक पर विचार करेगी, जिसमें पाकिस्तान के लिए कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है. इस विधेयक के तहत कुल 47.4 अरब डॉलर राशि का प्रावधान है.
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कमेटी के अध्यक्ष रोड़ने फ्रेलिंगुयसेन ने कहा कि उत्तर कोरिया के हालिया मिसाइल परीक्षण जैसी अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों एवं खतरों के मद्देनजर यह अधिक महत्वपूर्ण है कि अमेरिका हमारे देश एवं हमारे सहयोगियों की सुरक्षा और विश्व में स्थिरता सुनिश्चित के राजनयिक एवं वैश्विक प्रयासों को मजबूत बनाने में निवेश करे. उन्होंने कहा कि इस विधेयक के तहत उन कार्यों के लिए वित्तीय मदद दिये जाने की बात की गयी है, जहां इसकी सर्वाधिक आवश्यकता है.
हाउस एप्रोप्रिएशंस कमेटी के सदस्यों को वितरित किये गये इस मसौदा प्रस्ताव में कहा गया है कि पाकिस्तान सरकार की मदद करने के लिए ‘फॉरेन मिलिटरी फाइनेंसिंग प्रोग्राम ‘, ‘इकनॉमिक सपोर्ट फंड ‘ और ‘इंटरनेशनल नार्कोटिक्स कंट्रोल एंड लॉ इनफोर्समेंट’ के तहत इस कानून द्वारा मुहैया कराया जाने वाला कोई भी फंड तब तक नहीं दिया जायेगा, जब तक विदेश मंत्री यह सत्यापित नहीं करते और समिति को यह नहीं बताते कि इस्लामाबाद आतंकवादी संगठनों के खिलाफ कदम उठा रहा है. विदेश मंत्री को यह भी सत्यापित करने की आवश्कयता होगी कि पाकिस्तान अमेरिका या अफगानिस्तान में गठबंधन बलों के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को समर्थन नहीं दे रहा है.