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इन्होंने दी मोदी को जनकल्याण की शिक्षा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अध्यात्मिक गुरु स्वामी आत्मस्थानंद का रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है. नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसे अपनी व्यक्तिगत क्षति बताया है. नरेंद्र मोदी को कौन सी किताब देना चाहते हैं लोग? बाबा रामदेव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया ‘राष्ट्रऋषि’ उन्होंने ट्वीट किया, "स्वामी आत्मस्थानंद का […]

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अध्यात्मिक गुरु स्वामी आत्मस्थानंद का रविवार को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है.

नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर इसे अपनी व्यक्तिगत क्षति बताया है.

नरेंद्र मोदी को कौन सी किताब देना चाहते हैं लोग?

बाबा रामदेव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बताया ‘राष्ट्रऋषि’

उन्होंने ट्वीट किया, "स्वामी आत्मस्थानंद का निधन मेरा व्यक्तिगत नुकसान है. मैं अपनी ज़िंदगी के महत्वपूर्ण क्षणों में उनके साथ रहा था."

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स्वामी आत्मस्थानंद फरवरी 2015 से रामकृष्ण आश्रम के सेवा प्रतिष्ठान अस्पताल में बीमारी की वजह से भर्ती थे.

उनका जन्म बांग्लादेश की राजधानी ढाका के सबजपूर में मई, 1919 में हुआ था.

सत्मकृष्ण भट्टाचार्या बेलुर मठ से जुड़े

सन्यास लेने से पहले स्वामी आत्मस्थानंद का नाम सत्यकृष्ण भट्टाचार्या था.

कॉलेज के जमाने से ही वो रामकृष्ण मठ से जुड़ गए थे.

स्वामी विज्ञानानंद महाराज ने उन्हें साल 1938 में मंत्र दीक्षा दी थी और वो बेलुर मठ से 22 साल की उम्र में 3 जनवरी 1941 को जुड़ गए थे.

स्वामी विज्ञानानंद स्वामी विवेकानंद के साथ स्वामी रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे.

इसके बाद साल 1945 में स्वामी बृजानंद महाराज ने उन्हें ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी थी और 1 मार्च 1949 को स्वामी बृजानंद महाराज ने उन्हें सन्यास की दीक्षा दी.

इसके बाद से उनका नाम स्वामी आत्मस्थानंद हो गया.

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रामकृष्ण के शिष्यों से दीक्षा लेने वाले स्वामी आत्मस्थानंद आखिरी सन्यासी थे.

बेलुर मठ में आने से पहले वो रांची, राजकोट और रंगून के आश्रम में भी रामकृष्ण मिशन की ओर से जा चुके थे.

1952 में वो रांची के टीबी सैनोटोरियम ब्रांच में असिस्टेंट सेक्रेटरी के तौर पर गए थे.

1958 में रंगून के आश्रम में वो बतौर सेक्रेट्री गए थे. उन्होंने वहां सेवाश्रम अस्पताल का निर्माण किया था जो जल्दी ही बर्मा (वर्तमान म्यांमार) का सबसे मशहूर अस्पताल बन गया.

1966 में उन्हें मिशन की ओर से राजकोट के आश्रम में मुखिया के तौर पर भेजा गया था. राजकोट आश्रम में रामकृष्ण का खूबसूरत मंदिर उन्हीं के कार्यकाल में बनाया गया था.

जब वो राजकोट के आश्रम में थे तभी नरेंद्र मोदी ने उनसे दीक्षा लेने की इच्छा जताई थी लेकिन स्वामी आत्मस्थानंद ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया था कि वो बिना दीक्षा लिए ही जन कल्याण के लिए काम करते रहें.

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इसके बाद 1970 में वो बेलुर मठ लौट आए थे. 1973 में बेलुर मठ के ट्रस्टीशिप में वो शामिल हो गए थे.

1992 में वो रामकृष्ण मिशन के महासचिव बने और पांच सालों तक महासचिव रहने के बाद 1997 में मिशन के उपाध्यक्ष बने.

आख़िरकार 2007 में वो रामकृष्ण मिशन के अध्यक्ष भी बने और अब तक मिशन के अध्यक्ष थे.

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