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Friday, March 29, 2024

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Video : छऊ नृत्य में झलकती है झारखंडी परम्परा और संस्कृति

यह नृत्य शैली छऊ जो आज भी झारखंड, ओडिशा और बंगाल की गलियों में जीवित है.

करीब 250-300 वर्ष पुरानी एक नृत्य शैली छऊ जो आज भी झारखंड, ओडिशा और बंगाल की गलियों में जीवित है. जितनी प्राचिन यह नृत्य शैली है उतनी ही मेहनत और सलीके से इसे अब बचाए रखने का प्रयास निरंतर चल रहा है. एक वक्त था जब अपनी इस प्राचिनतम नृत्य शैली के चलते झारखंड की एक अलग पहचान थी. फिर धीरे-धीरे मंच और अर्थ के अभाव में छउ नृत्य के कलाकार और कला दोनों ही विलुत्त होने के कगार पर आ गए थे. लेकिन वक्त रहते ऐतिहासिक लोक कला को बचा लिया गया. अब झारखंड का कोई भी सरकारी कार्यक्रम हो जाए यह किसी भी मुख्य अतिथि का स्वागत ही क्यों न करना हो आपको ये छउ नृत्य की मनोरम पेशकश देखने को मिल ही जाती है.

बात अगर छउ नृत्य के ऐतिहासिक महत्व की करें तो छऊ संस्कृत शब्द छैया या छाया से आया है तो कुछ का मानना है कि पहले राजा की छावनी में यह नृत्य होता था, इसलिए इसका नाम छऊ नृत्य पड़ा.परम्परा और संस्कृति से जुड़े इस नृत्य की तीन शैली-सरायकेला, पुरुलिया और मयूरभंज है. झारखंड के सरायकेला और पश्चिम बंगाल के पुरुलिया की शैली में मुखौटा अनिवार्य है, जबकि ओडिशा के मयूरभंज में नहीं. नर्तकों की वेशभूषा और विविधता काफी हद तक उनके द्वारा चित्रित पात्रों पर निर्भर करती है. छउ नृत्य में आक्रामकता, आत्मसमर्पण, खुशी और दु:ख जैसे विभिन्न भाव जुड़े हैं. इसमें मार्शल आर्ट, अर्ध शास्त्रीय नृत्य, कलाबाजी और कहानी सबकुछ है. अपनी उत्कृष्ट शैली के चलते इस नृत्य ने देश ही नहीं विदेश के रंगमंच पर भी अपनी छाप छोड़ी है.

इसमें नर्तक विभिन्न लोक, पौराणिक कथाओं रामायण और महाभारत के प्रकरण को नृत्य के जरिए प्रस्तुत करते हैं. देश में सबसे प्रसिद्ध नृत्य रूपों में से एक इस नृत्य में बिना कुछ बोले सिर्फ भावभंगिमा से कला प्रदर्शित करने की शक्ति है. यह नृत्य देखने में आपको चाहे मजा आ रहा हो लेकिन यह नृत्य आसान नहीं है, क्योंकि इसमें भारी मुखौटा पहनना पड़ता है. भारी मुखौटा पहनने ये कलाकार किसी भी मंच पर इसी तरह से पौराणिक कथा का मंचन करते हैं. आमतौर पर ये कलाकार शारीरिक रूप से मजबूत, चुस्त और फुर्तीले होते हैं. उनको अपनी सांसों पर बेहतर तरीके से नियंत्रण करना पड़ता है. छऊ नृत्य की ज्यादातर धुनें पारम्परिक और लोक हैं. देसी वाद्ययंत्रों धम्सा, शहनाई तथा अन्य का उपयोग होता है.

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