हावड़ा. भवन की जर्जर हालत, नीचे मवेशियों का अड्डा और पास में रखी बिचाली तो इसी ओर इशारा करेंगे की यह कोई गोशाला हो, लेकिन यकीन मानिये यह गोशाला नहीं है. यह दृश्य आमता के भाटोरा स्वास्थ्य केंद्र का है. डॉक्टर नहीं होने के कारण यहां आनेवाले रोगी बिना इलाज के ही लाैट जाते हैं. बीच-बीच में कभी फर्माशिस्ट पहुंचते हैं तो कुछ रोगियों का इलाज हो जाता और बाकी समय सुनसान ही पड़ा रहता है. स्वास्थ्य केंद्र में दवाई की कोई व्यवस्था नहीं है.
गांव में कोई अचानक बीमार हो जाये, तो किसी भी परिस्थिति में इलाज संभव नहीं है, क्योंकि उलबेड़िया महकमा अस्पताल यहां से 50 किलोमीटर दूर है. साथ ही यह गांव मुंडेश्वरी व रूपनारायण नदियों से घिरा हुआ है. ग्रामीण हावड़ा के आमता दो नंबर ब्लॉक के घोड़ाबेड़िया-चितनान ग्राम पंचायत के तहत भाटोरा गांव स्थित है. यह गांव दो नदियों से घिरा हुआ है. यहां की आबादी करीब 70 हजार है. साल के तीन महीने यह गांव बाढ़ की चपेट में रहता है. यहां के आवागमन का एक मात्र साधन नाव है. शाम पांच के बाद नाव की सवारी भी बंद हो जाती है.
सबसे अधिक परेशानी रात को होती है. बारिश के मौसम में यहां सांप का कहर रहता है. कई बार सांप के काट लेने के बाद लोग इलाज के अभाव में ही दम तोड़ देते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि स्वास्थ्य केंद्र की हालत बेहद खराब है. रोगी को यहां से उलबेड़िया महकमा अस्पताल ले जाना बहुत मुश्किल है. रात को अगर कोई बीमार हो जाये, तो सुबह का इंतजार करना पड़ता है. एक डॉक्टर यहां उपलब्ध नहीं है. मामूली बीमारी के लिए यहां से उलबेड़िया जाना हम ग्रामीणों के लिए लगभग असंभव है. वाम सरकार के समय नदी पर पुल के निर्माण की घोषणा की गयी थी. आनन-फानन में शिलान्यास भी हुआ लेकिन पुल आज तक नहीं बना. नयी सरकार का गठन हुआ. उम्मीदें भी जगी. हमें लगा कि वर्तमान सरकार हम ग्रामीणों का दुख जरूर समझेगी. समय बीतने के साथ राज्य की तसवीर तो बदली लेकिन हम ग्रामीणों की तकदीर नहीं बदली. हमारी समस्या जस की तस रह गयी.