स्थानीय पार्टी कार्यालय में पत्रकारों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि कुछ दिन पहले अरूप विश्वास ने कर्सियांग की सांगठनिक सभा में दार्जिलिंग को कोलकता बनाने की बात कही थी. लेकिन सोचने की बात यह है की दार्जिलिंग और कोलकाता में क्या मेल? भूगोल से लेकर जलवायु तक सब अलग है. दार्जिलिंग में चाय की खेती होती है, कोलकता में नहीं होती. कोलकाता में बड़ी-बड़ी इमारतें हैं, पर दार्जिलिंग में नहीं हैं. चाहकर भी दार्जिलिंग को कोलकाता जैसा नहीं बनाया जा सकता. फिर मंत्रीजी के मुंह में यह बात आयी कहां से?
श्री छेत्री ने कहा, दार्जिलिंग की 80 प्रतिशत जमीन पर चाय की खेती है. राज्य के मंत्री बार-बार दार्जिलिंग आते हैं, पंरतु चाय बागानों में कार्यरत श्रमिकों की समस्याओं के बारे में कभी मुंह नहीं खोलते. सिन्कोना बागान श्रमिकों की भी मंत्री खबर नहीं लेते. अगर मंत्रीजी ने दार्जिलिंग को विकास के क्षेत्र में कोलकाता बनाने की बात कही है, तो राज्य सरकार ने ही विकास के लिए जीटीए का गठन किया है. लेकिन राज्य सरकार खुद ही जीटीए समझौते का उल्लंघन कर जीटीए संचालन करने में बाधा डाल रही है.
श्री छेत्री ने कहा कि गोरखालैंड गोरखाओं की धड़कन है. इसी गोरखालैंड रूपी धड़कन को हमेशा के लिए खतम करना है. इसके लिए जरूरी है कि दार्जिलिंग को कोलकता बनाया जाये और गोरखा समुदाय को अल्पसंख्यक कर दिया जाये. इसी मकसद से अरूप विश्वास ने इस तरह का बयान दिया है.