धीरे-धीरे लोग वापस कैश लेन-देन को ही तवज्जो देने लगे हैं. लोगों का कहना है कि जब नगद रूपये की समस्या दूर हो गयी है तो बेवजह डिजिटल लेन-देन कर जोखिम क्यों उठाना. विधान मार्केट के एक सब्जी विक्रेता संतोष साहनी का कहना है कि नोटबंदी के दौरान नगद रूपये के अभाव की वजह से उन्होंने भी अपने यहां पेटीएम की सुविधा शुरु कर दी थी और इसके जरिये खरीदारों ने लेन-देन भी शुरु कर दिया था. इसके अलावा संतोष ने स्वाइप मशीन लगाने का भी मन बना लिया था. लेकिन जैसे ही लोगों के पास नगद रूपये की किल्लत दूर हो गयी. उन्होंने स्वाइप मशीन खरीदने की तो दूर की बात अब पेटीएम का भी इस्तेमाल बंद कर दिया है. एक कपड़ा दुकानदार दीपक अग्रवाल का कहना है कि डिजिटल लेन-देन कई बार लोगों के सामने बड़ी समस्या भी खड़ी कर देता है. डिजिटल लेन-देन के दौरान अगर जरा भी चूक हुई तो किसी अन्य के एकाउंट में रूपये जमा हो जाता है. इसके अलावा यदि हैकरों का अटैक हुआ है तो खरीदार और दुकानदार दोनों के एकाउंट से रूपये गायब हो जाते हैं. ऐसे अधिकांश मामलों में रूपये पीड़ित व्यक्ति को वापस मिलते ही नहीं. अगर मिलते भी हैं तो कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
प्रधाननगर शाखा हो या विधानरोड, हिलकार्ट रोड शाखा या फिर सिलीगुड़ी के कचहरी रोड स्थित मुख्य डाकघर . सभी की बानगी एक ही जैसी है. इस बाबत उत्तर बंगाल-सिक्किम क्षेत्र के पोस्ट मास्टर जनरल (पीएमजी) ललितेंदु प्रधान को कोई जानकारी ही नहीं है. उनके मोबाइल फोन पर संपर्क करने पर उन्हें कैशलेस लेन-देन को लेकर के उपभोक्तों की शिकायतों की जानकारी दी और उनसे डाकघरों में डीजिटल सुविधा न होने का सवाल किया गया तो उन्होंने साफ-साफ कह दिया कि उन्हें इस बाबत कोई जानकारी नहीं है.