केएलओ के इस फरमान पर एनएलएफटी और पीडीसीके जैसे अन्य उग्रवादी संगठनों ने भी सुर में सुर मिलाया है. इन तीनों आतंकी संगठनों के इस फरमान के बाद शासन-प्रशासन में हड़कंप है. वहीं, प्रेस-विज्ञप्ति के नीचे केएलओ चीफ जीवन सिंह कोच, एनएलएफटी सुप्रीमो सेंगफूई बराक और पीडीसीके सुप्रीमो जेके लिजांग के हस्ताक्षर भी हैं.
दो पेज की प्रेस-विज्ञप्ति में उग्रवादी संगठनों ने यह भी उल्लेख किया है कि अगर 31 मार्च तक बांग्ला और हिंदीभाषियों ने तीनों राज्य नहीं छोड़ा, तो इसका खामियाजा भी भुगतने के लिए तैयार रहें. तीनों संगठनों ने दावा किया है कि 1949 साल में कूचबिहार, असम के कार्वी आवलंग जिला और त्रिपुरा का भारतमुक्ति समझौता अवैध तरीके से हुआ था. साथ ही तीनों राज्य के मूल जाति कोच और राजवंशियों की दूरदशा के लिए केंद्र और राज्य सरकारें ही जिम्मेदार हैं. हालांकि तीनों संगठनों के इस फरमान पर जिला पुलिस की ओर से कोई भी अधिकारी टिप्पणी नहीं कर रहे.