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ऐतिहासिक विचित्रा सिनेमा बंद

मालदा: मालदा के सिनेमा प्रेमियों के लिए एक बुरी खबर है. यहां के ऐतिहासिक विचित्रा सिनेमा को बंद कर दिया गया है. इस सिनेमा हॉल में काम करने वाले कर्मचारियों तथा प्रबंधन के बीच पिछले कई दिनों से विवाद की स्थिति चल रही थी. कर्मचारी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे. उसके […]

मालदा: मालदा के सिनेमा प्रेमियों के लिए एक बुरी खबर है. यहां के ऐतिहासिक विचित्रा सिनेमा को बंद कर दिया गया है. इस सिनेमा हॉल में काम करने वाले कर्मचारियों तथा प्रबंधन के बीच पिछले कई दिनों से विवाद की स्थिति चल रही थी. कर्मचारी अपनी विभिन्न मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे थे.

उसके बाद ही 10 जनवरी को सिनेमा प्रबंधन ने सस्पेंशन ऑफ वर्क नोटिस लगाकर सिनेमा हॉल को बंद कर दिया. सिनेमा हॉल को फिर से खोलने को लेकर श्रम विभाग ने एक त्रिपक्षीय बैठक भी बुलायी थी. उसमें भी कोई फैसला नहीं हो सका. उसके बाद से ही यह तय हो गया है कि विचित्रा सिनेमा हॉल के दोबारा चालू होने की कोई संभावना नहीं है.

आंदोलनरत कर्मचारी भी इस बात को मान रहे हैं. उल्लेखनीय है कि इस सिनेमा हॉल की स्थापना 1960 में पूर्व सांसद तथा विधायक दिनेश जोआरदार ने भाइयों के साथ मिलकर की थी. किसी जमाने में यहां मालदा सिनेमा क्लब की भी स्थापना की गई थी. बीच-बीच में बच्चों तथा किशोरों के लिए बहुत कम टिकट पर विशेष सिनेमा प्रदर्शनी का भी आयोजन होता था. इतना ही नहीं, विख्यात कलाकार गिरजा देवी, अनूप जलोटा, पीयूष कांति सरकार, हेमंत मुखर्जी आदि ने भी इस विचित्रा सिनेमा में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत किया था. इसी वजह से इस सिनेमा हॉल की अपनी एक ऐतिहासिक महत्ता है. अब इसके बंदी की खबर से सिनेमा एवं संस्कृति जगत के लोग काफी निराश हैं. सिनेमा हॉल प्रबंधन की ओर से देवाशीष जोआरदार ने बताया है कि लगातार घाटे की वजह से सिनेमा हॉल को आगे चला पाना संभव नहीं है. 30 प्रतिशत सीटें भी यदि भर जाती, तो वह लोग सिनेमा हॉल को आगे भी चलाते. काफी कम दर्शक यहां सिनेमा देखने के लिए आते हैं. साल के 52 सप्ताह में एक तरह से कहें तो रविवार के दिन 12 सप्ताह ही दर्शकों की यहां भीड़ होती है. बाकी दिन बहुत कम दर्शक आते हैं. श्री जोआरदार ने आगे कहा कि इस सिनेमा हॉल के ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए वह आगे भी इसको चालू रखना चाहते थे. वाम आंदोलन की वजह से सिनेमा हॉल को चालू रख पाना संभव नहीं है. पिछले डेढ़ महीने से दर्शकों ने यहां आना करीब-करीब बंद कर दिया है.

सिनेमा हॉल को चलाने में हर महीने एक लाख 25 हजार रुपये खर्च होते हैं. जबकि आय मात्र 50 हजार रुपये ही है. ऐसे में कर्मचारियों की वेतन वृद्धि की मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं है. वह सिनेमा हॉल का आधुनिकीकरण भी नहीं करना चाहते. इससे भी कोई लाभ नहीं होगा. दर्शकों की संख्या बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर है. दूसरी तरफ आंदोलनकारी श्रमिक कर्मचारी संगठन के नेता तरुण दास ने बताया है कि इस सिनेमा हॉल में 10 स्थायी तथा 5 अस्थायी कर्मचारी हैं. राज्य सरकार के नियमानुसार इन लोगों को न्यूनतम वेतनमान की सुविधा भी सिनेमा हॉल मालिक नहीं दे रहे हैं. मालिक घाटा होने की बात कह कर कर्मचारियों को वेतन देने से बचना चाहते हैं.

यदि सिनेमा हॉल की परिस्थिति इतनी ही खराब है, तो हॉल मालिकों को कर्मचारियों का बकाया वेतन देकर बंद कर देना चाहिए. दूसरी तरफ श्रम विभाग के डिप्टी लेबर कमिश्नर का कहना है कि मालिकों ने सात दिनों का समय मांगा है. श्रमिकों से भी आंदोलन के रूप में नरमी लाने के लिए कहा है. यदि दोनों पक्ष एक मत से सिनेमा हॉल बंद करना चाहते हैं तो इसमें वह क्या कर सकते हैं.

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