उसके बाद ही 10 जनवरी को सिनेमा प्रबंधन ने सस्पेंशन ऑफ वर्क नोटिस लगाकर सिनेमा हॉल को बंद कर दिया. सिनेमा हॉल को फिर से खोलने को लेकर श्रम विभाग ने एक त्रिपक्षीय बैठक भी बुलायी थी. उसमें भी कोई फैसला नहीं हो सका. उसके बाद से ही यह तय हो गया है कि विचित्रा सिनेमा हॉल के दोबारा चालू होने की कोई संभावना नहीं है.
सिनेमा हॉल को चलाने में हर महीने एक लाख 25 हजार रुपये खर्च होते हैं. जबकि आय मात्र 50 हजार रुपये ही है. ऐसे में कर्मचारियों की वेतन वृद्धि की मांग को पूरा कर पाना संभव नहीं है. वह सिनेमा हॉल का आधुनिकीकरण भी नहीं करना चाहते. इससे भी कोई लाभ नहीं होगा. दर्शकों की संख्या बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर है. दूसरी तरफ आंदोलनकारी श्रमिक कर्मचारी संगठन के नेता तरुण दास ने बताया है कि इस सिनेमा हॉल में 10 स्थायी तथा 5 अस्थायी कर्मचारी हैं. राज्य सरकार के नियमानुसार इन लोगों को न्यूनतम वेतनमान की सुविधा भी सिनेमा हॉल मालिक नहीं दे रहे हैं. मालिक घाटा होने की बात कह कर कर्मचारियों को वेतन देने से बचना चाहते हैं.
यदि सिनेमा हॉल की परिस्थिति इतनी ही खराब है, तो हॉल मालिकों को कर्मचारियों का बकाया वेतन देकर बंद कर देना चाहिए. दूसरी तरफ श्रम विभाग के डिप्टी लेबर कमिश्नर का कहना है कि मालिकों ने सात दिनों का समय मांगा है. श्रमिकों से भी आंदोलन के रूप में नरमी लाने के लिए कहा है. यदि दोनों पक्ष एक मत से सिनेमा हॉल बंद करना चाहते हैं तो इसमें वह क्या कर सकते हैं.