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. . . जब सिलीगुड़ी की धरती पर पड़े थे बापू के पांव

सिलिगुड़ी : उत्तर बंगाल के इतिहास गवेषक शिवप्रसाद चटर्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सन 1925 में गांधीजी गंभीर रूप से बीमार देशबंधु चित्तरंजन दास को देखने दार्जीलिंग के स्टेप एसाइड नामक लॉज गये थे. वापसी में वे सिलीगुड़ी में शिवमंगल सिंह के यहां उनकी लकड़ी के मकान में ठहरे थे. अगले रोज […]

सिलिगुड़ी : उत्तर बंगाल के इतिहास गवेषक शिवप्रसाद चटर्जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि सन 1925 में गांधीजी गंभीर रूप से बीमार देशबंधु चित्तरंजन दास को देखने दार्जीलिंग के स्टेप एसाइड नामक लॉज गये थे. वापसी में वे सिलीगुड़ी में शिवमंगल सिंह के यहां उनकी लकड़ी के मकान में ठहरे थे. अगले रोज बापू ने आज के टेलिकॉम भवन के सामने सैन्य कैम्प जो बाद में तिलक मैदान के नाम से मशहूर हुआ, में जनसभा को संबोधित किया था.

सिलीगुड़ी के चर्चित समाजसेवी एसपी पांडेय के अनुसार जब बापू के दार्जिलिंग जाकर जनसभा करने की खबर फैली तो ब्रिटिश सरकार ने भयभीत होकर चौक बाज़ार में धारा 144 लागू कर दिया. इसके खिलाफ आम जनता ने हड़ताल की घोषणा कर दी. यह बात जैसे ही फ़ैली कि ब्रिटिश सरकार ने कलकत्ता से दार्जिलिंग में पुलिस बल भेज दिया. तब गांधीजी को आभास हो गया कि वहां गोली चलने की आशंका है.
उन्होंने हड़ताल को वापस लेने के लिए शहर के लोगों से अनुरोध किया और फिर प्रशासन से अनुमति लेकर एक छोटी सी सभा को सम्बोधित किया. गांधी जी के आगमन के कुछ समय बाद ही देशबंधु देशवासियों को रुलाकर दुनिया से विदा हो गए. दार्जिलिंग के स्टेप एसाइड में उन्होंने अंतिम सांस ली. जिसके बाद उनके पार्थिव शरीर को टॉय ट्रेन के पार्सल वैन से सिलीगुड़ी लाया गया. उस समय अपार जनसैलाब देशबंधु के अंतिम दर्शन के लिए शहर के रोड स्टेशन में जुट गया. रोड स्टेशन अब सफदर हाशमी चौक के नाम से जाना जाता है.
तत्कालीन रेलवे प्रशासन ने नॉर्थ बंगाल एक्सप्रेस में पार्सल वैन को जोड़ दिया. पार्सल वैन में देशबंधु की धर्म पत्नी बासंती देवी और उनके सहायक भी साथ हो लिए. अपने अंतिम दिनों में कवि गुरु रवींद्र नाथ ठाकुर ने भी पहाड़ भ्रमण किया था. वे डाक्टरों की सलाह की उपेक्षा कर अस्वस्थ शरीर के साथ पांचवी बार अपने प्रिय विश्राम स्थल मंगपू पहुंचे. वे 20 सितम्बर 1940 को मंगपू पहुंचे. उसके बाद 25 सितम्बर को कालिम्पोंग के गौरी भवन पहुंचने पर गंभीर रूप से बीमार पड़ गए.
लेकिन उनकी सेहत बिगड़ती चली गयी. कवि गुरु के रिश्तेदार और पेशे से डाक्टर डॉ गोपाल चंद्र दासगुप्ता की सलाह पर उन्हें कालिम्पोंग मिशन अस्पताल के डॉ क्रेग को दिखाया गया. जिन्होंने प्रोस्टेट के ऑपरेशन की सलाह दी. हालांकि बहू प्रतिमा देवी और मैत्रेयी देवी ने आपरेशन के लिए हामी नहीं भरी और उन्हें वापस कलकत्ता ले जाने की व्यवस्था कराई. 27 सितम्बर को परिजन उन्हें लेकर कलकत्ता के लिए रवाना हुए. रात नौ बजे सभी सिलीगुड़ी के टाउन स्टेशन पहुंचे. इसके अगले साल ही विश्व कवि इस दुनिया से सदा के लिए चले गए.
22 अक्तूबर 1954 को देशरत्न और देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद सिलीगुड़ी जंक्शन पहुंचे. जहां अपार जन समूह उनके स्वागत के लिए उमड़ पड़ा था. उसी साल देश के प्रथम प्रधान मंत्री पं जवाहरलाल नेहरु तीन नवम्बर को सिलीगुड़ी पहुंचे. बागडोगरा हवाई अड्डे से वे सीधे खुली जीप में दार्जिलिंग मोड़ होते हुए दार्जिलिंग के लिए रवाना हुए. उनके साथ थीं देश की प्रखर महिला प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी. उस समय सेवक रोड की दोनों और बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ ने उनका अभिवादन किया था.
सन 1956 में चीन ने तिब्बत पर हमला कर उसे अपने राज्य में मिला लिया जिसके बाद वहां के धर्म गुरु और शासक 14वें दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ विपुल धन सम्पदा के साथ भारत आ गए. उस समय सेवक रोड पर अपार जन समुदाय ने उन लोगों का स्वागत किया. जिसका दलाई लामा और उनके बौद्ध भिक्षुओं ने स्वीकार किया. इस तरह से असंख्य महापुरुष सिलीगुड़ी की धरती से होते हुए दार्जिलिंग गए. जिनमें स्वामी विवेकानंद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के अलावा कई महापुरुषों ने दार्जिलिंग और कालिम्पोंग की यात्रा की.

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