खोलाईबस्ती निवासी नूर हसन बचपन से है पोलियो का शिकार
ट्राइ साइकिल से घूम-घूम कर बेचता है गुब्बारे-खिलौने
सिलीगुड़ी : अगर स्वाभिमान से जीने का हौसला और जज्बा हो तो शारीरिक विकलांगता कभी भी बाधक नहीं बनती है. कुछ ऐसा ही किस्सा है मोहम्मद नूर हसन का. बचपन से ही नूर हसन दोनों पैरों से लाचार है. नूर हसन का बचपन गरीबी और अभाव में बीता है. इसके बावजूद आज वह पूरे स्वाभिमान के साथ जिंदगी जी रहा है. नूरहसन किसी के सामने हाथ फैलाना अपनी तौहीन समझता है. दिन भर फेरी का काम करके नूर अपना और अपने पूरे परिवार का किसी तरह भरण-पोषण करता है.
सिलीगुड़ी के झंकार मोड़ से माटीगाड़ा की तरफ जानेवाले खोलाईबस्ती का रहनेवाला है नूर हसन. नूर के अब्बा का नाम मोहम्मद सुवेब है. वे दिहाड़ी मजदूरी और वैन चला कर बड़ी मुश्किल से परिवार के जीविकोपार्जन में आर्थिक सहयोग कर पाते हैं. नूर की अम्मी का नाम समीना खातून है. नूर की पत्नी का नाम सबा खातून, बेटा मोहम्मद सद्दाम व बेटी मुस्कान है. नूर का कहना है कि उसके फेरी के काम को पूरा परिवार तो सपोर्ट करता ही है, लेकिन पत्नी हमेशा उसका हमेशा हौसला बढ़ाती है. पत्नी से मिले हौसले व साहस की वजह से ही वह पूरे जोश व जज्बे के साथ फेरी का काम कर पाता है.
दोनों घुटनों व हाथों के बल चलनेवाला नूर अपनी ट्राइ साइकिल में घूम-घूम कर गुब्बारे-खिलौने बेचता है. अपने ट्राइ साइकिल के जरिये केवल सिलीगुड़ी शहर ही नहीं, बल्कि आस-पास के इलाके माटीगाड़ा, रांगापानी, फांसीदेवा, फूलबारी, शिवमंदिर, बागडोगरा, सालबाड़ी, सुकना, चंपासारी, देवीडांगा, मिलनमोड़, पाथरघाटा, सालूगाड़ा आदि इलाकों में दिनभर गुब्बारे व विभिन्न तरह के खिलौने आदि बेचकर जहां किसी तरह अपना परिवार चला रहा है. वहीं दिनभर होने वाले मुनाफे में से कुछ रुपये बचा अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए थोड़ी-थोड़ी पूंजी भी जमा करने की कोशिश कर रहा है. नूर ने बताया कि वह 13 साल पहले गैस वाले गुब्बारे से फेरी का काम शुरू किया था.
नूर का छोटा भाई अली हुसैन भी जन्म से ही पोलियो का शिकार है. नूर खुद अनपढ़ है, लेकिन भाई को पढ़ाने-लिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. खालपाड़ा स्थित समसिया मदरसा हाइ स्कूल में अली ने पढ़ाई करने के बाद बड़े भाई से प्रेरित होकर उसने भी फेरी का काम करना शुरू कर दिया. वो भी परिवार के भरण-पोषण में नूर हसन को आर्थिक सहयोग करता है.
नूर के बुलंद जज्बे की सराहना उसके पड़ोसी भी करते हैं. नूर को अच्छी तरह से पहचानने वाले समाजसेवी मनोज सिंह, प्रशांत चटर्जी, दिनेश प्रसाद का कहना है कि भले ही वो शारीरिक रूप से लाचार व अनपढ़ है, लेकिन उसके हिम्मत व जज्बे की जितनी तारीफ की जाये, वो कम है. मनोज सिंह ने कहा कि वे नूर को काफी वर्षों से पहचानते हैं और उसके स्वाभिमानी व्यक्तित्व के कायल हैं.
नूर का कहना है कि शारीरिक रूप से कमजोर दिव्यांग के लिए केंद्र व राज्य सरकार से कई सरकारी सुविधाओं व सामाजिक सुरक्षा जैसी योजनाएं लागू है. अधिकांश दिव्यांगों को यह सुविधा मुहैया भी करायी गयी है. लेकिन उसे एक सरकारी कार्यक्रम के जरिये केवल यह ट्राइ साइकिल प्राप्त हुई और आज-तक अन्य कोई सुविधाएं नहीं मिली. नूर को इस बात का काफी मलाल है. इसके बावजूद उसमें स्वाभिमान के साथ जीवन जीने की लालसा बरकरार है.