सभी कर रहे जीत के दावे,क्रेडिट लेने की होड़
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चुनाव परिणाम आने से पहले ही भाजपा में अंतर्द्वंद्व चरम पर
सभी कर रहे जीत के दावे,क्रेडिट लेने की होड़ आरएसएस और विहिप के पदाधिकारी भी पीछे नहीं पार्टी के वर्तमान नेतृत्व को नहीं देना चाहते कोई क्रेडिट माकपा और कांग्रेस की भूमिका से बढ़ी भाजपा की ताकत सिलीगुड़ी : 17वें लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण समाप्त हो गया है. लेकिन सिलीगुड़ी समेत पूरे उत्तर बंगाल […]
आरएसएस और विहिप के पदाधिकारी भी पीछे नहीं
पार्टी के वर्तमान नेतृत्व को नहीं देना चाहते कोई क्रेडिट
माकपा और कांग्रेस की भूमिका से बढ़ी भाजपा की ताकत
सिलीगुड़ी : 17वें लोकसभा चुनाव का तीसरा चरण समाप्त हो गया है. लेकिन सिलीगुड़ी समेत पूरे उत्तर बंगाल में भाजपा में अंतर्द्वंद समाप्त होने का नाम नहीं ले रहा. जबकि इस बार के लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल में भाजपा द्वारा अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा रही है.
खासकर दार्जिलिंग लोकसभा सीट एक बार फिर से जीतने का दावा भाजपा के हर नेता कर रहे हैं. बस समस्या यहीं से शुरू हो जाती है. पार्टी चुनाव जीती भी नहीं है कि सभी नेता अभी से ही क्रेडिट लेने में लगे हुए हैं. यदि भाजपा यह सीट जीत जायेगी तो पार्टी के अंदर अंतर्द्वंद का क्या आलम होगा,इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है.
ऐसे भाजपा के सहयोगी संगठनों के नेता और पदाधिकारी भी अभी से ही दार्जिलिंग सीट के लिए की गयी मेहनत को गिनाने में लगे हैं. इनका भी कहना है कि यदि दार्जिलिंग लोकसभा सीट भाजपा जीतती है तो उसके पीछे भाजपा के वर्तमान जिला नेतृत्व का योगदान नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) व विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और उनके अन्य विभिन्न विंगों का योगदान होगा.
आरएसएस व विहिप के नेता तथा पदाधिकारी तकरीबन सात-आठ महीने पहले से ही लोकसभा चुनाव प्रचार शुरु कर चुके थे. इनके प्रचारक व कार्यकर्ता गांव-गांव, घर-घर जाकर भाजपा को जीतने के लिए दिनरात एक किये हुए थे. सिलीगुड़ी सहित पूरे उत्तर बंगाल में भाजपा को स्थापित करने और सांगठनिक रुप से मजबूत करने में सक्रिय योगदान करनेवाले एक वरिष्ठ नेता ने अपना नाम न प्रकाशित करने के शर्त पर कहा कि आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की सक्रियता से ही भाजपा की ताकत बढ़ी.उन्होने आगे कहा कि यदि इस बार ना केवल दार्जिलिंग बल्कि पूरे उत्तर बंगाल में भाजपा बेहतर प्रदर्शन करती है तो विरोधी पार्टियों की भी मुख्य भूमिका रहेगी.
माकपा व कांग्रेस ने बंगाल में अपनी स्थिति कमजोर देख राज्य से तृणमूल कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए अघोषित रुप से भाजपा को समर्थन किया है. चुनाव के दिन अधिकांश मतदान केंद्रों के बाहर माकपा और कांग्रेस के नेता मतदाताओं को भाजपा को वोट देने का इशारा करते देखे गये. इतना ही नहीं विरोधी दलों के कई कार्यकर्ताओं को भाजपा के लिए पोलिंग एजेंट तक का भी कार्य संभालते देखा गया. इस तरह की भूमिकाओं में तृणमूल कांग्रेस (तृकां) के नेता-कार्यकर्ता भी कई जगहों पर नजर आये.
भाजपा के अन्य पुराने नेताओं का मानना है कि 2014 में जब मोदी लहर में भाजपा दार्जिलिंग लोकसभा सीट जीती थी, तब तत्कालीन सांसद एसएस अहलूवालिया व केंद्रीय नेतृत्व के बूते बंगाल में तृकां, कांग्रेस व अन्य विरोधी दलों से भारी तादाद में नेता और कार्यकर्ता भाजपा में शामिल हुए. आज पार्टी की कमान भी विरोधी दलों से आये नेता-कार्यकर्ता ही संभाल रहे हैं, जिन्हें पार्टी का आदर्श, नीति-सिद्धांतों से कोई लेना-देना नहीं है और पार्टी के पुराने नेता-कार्यकर्ताओं को हाशिये पर रख दिया गया है, जो काफी अपमानजनक है. यहीं वजह है कि उत्तर बंगाल के अधिकांश पुराने नेताओं ने पार्टी छोड़ने और सन्यास लेने का सिद्धांत ले लिया है तो कई नेता-कार्यकर्ता चुनाव नतीजे की बाट जोह रहे हैं. उनका कहना है कि अगर भाजपा जीतती है तो उसी दिन से वे लोग भाजपा की जीत की खास वजहों का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से शुरु कर देंगें. पार्टी में नये तरीके से उभरे इस अंतर्द्वंद पर भाजपा के सचिव कन्हैया पाठक ने कहा कि यह कोई नयी बात नहीं है.
इस तरह के विरोधाभास पार्टी के अंदर पहले भी उठे चुके हैं. अच्छे-बुरे नेता-कार्यकर्ता प्राय: सभी राजनैतिक पार्टियों में मौजूद रहते हैं. ऐसे लोग पार्टी के लिए दीमक जैसा काम करते हैं. इन्हें पार्टी के लिए नहीं बल्कि हमेशा पद व स्वार्थ की चिंता रहती है. सेवाभाव से काम करनेवालों के लिए पार्टी से ऊपर कुछ नहीं होता.
जो जनता-समाज व पार्टी के लिए काम करेगा, वहीं पार्टी में मौजूद भी रहेगा. श्री पाठक ने एक आंकड़े के जरिये विरोधियों पर पलटवार करते हुए कहा कि 2005 को छोड़ दें तो 2008-09 में बंगाल में वोट प्रतिशत में भाजपा की हिस्सेदारी मात्र पांच फीसदी थी. 2014-15 में यह बढ़कर 17 फीसदी हो गयी और अब 29 फीसदी से भी अधिक हो चुकी है. लगातार यह बढ़ता आंकड़ा बंगाल में भाजपा के प्रति जनता का प्यार ही है.
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