सिलीगुड़ी : पूरे देश के साथ-साथ इस राज्य में भी लोकसभा चुनाव प्रचार अपने पूरे उफान पर है. वोटिंग की शुरुआत भी हो चुकी है. पहले चरण में उत्तर बंगाल के दो सीटों कूचबिहार एवं अलीपुरद्वार में मतदान संपन्न हो चुका है.अब दूसरे चरण में मालदा जिले के दो सीटों मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण के अलावा दार्जिलिंग एवं रायगंज संसदीय क्षेत्र में 18 तारीख को मतदान होना है. बहरहाल हम यहां मालदा दक्षिण सीट की चर्चा कर रहे हैं. मालदा जिला शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है.
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तीसरी बार संसद पहुंचने की जुगत में अबु हासेम
सिलीगुड़ी : पूरे देश के साथ-साथ इस राज्य में भी लोकसभा चुनाव प्रचार अपने पूरे उफान पर है. वोटिंग की शुरुआत भी हो चुकी है. पहले चरण में उत्तर बंगाल के दो सीटों कूचबिहार एवं अलीपुरद्वार में मतदान संपन्न हो चुका है.अब दूसरे चरण में मालदा जिले के दो सीटों मालदा उत्तर, मालदा दक्षिण के […]
कांग्रेस के बाद इस जिले में वाममोर्चा की तूती बोलती रही है, जबकि राज्य में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस एवं भाजपा के लिए शुरू से ही मालदा जिला एक कठिन चुनौती है. पिछले चुनाव नतीजों पर यदि विचार करें तो मालदा जिले की दोनों सीटों पर कांग्रेस के अलावा किसी की नहीं चलती. जिले के लोग अभी भी कांग्रेस के पूर्व नेता अब्दुल गनीखान चौधरी के नाम पर वोट देते हैं. यही कारण है कि पिछले दो लोकसभा चुनावों से मालदा जिले की दोनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा होता रहा है. दक्षिण मालदा सीट से अभी भी अबु हासेम खान चौधरी सांसद हैं.
अबु हासेम खान चौधरी अब्दुल गनीखान चौधरी के भाई हैं. वह लगातार दो बार इस सीट से संसद पहुंच चुके हैं. अब 2019 के चुनाव में वह तीसरी बार संसद पहुंचने की जुगत लगा रहे हैं. हालांकि इस बार उन्हें न केवल विरोधी तृणमूल कांग्रेस, बल्कि भाजपा से भी कड़ी चुनौती मिल रही है. पिछले दो चुनावों में भाजपा की भी ताकत यहां काफी बढ़ चुकी है. वर्ष 2009 के चुनाव में भाजपा कहीं नहीं टिकी थी. लेकिन तब से लेकर अब तक राजनीति में काफी उतार-चढ़ाव आया है. भाजपा की ताकत दक्षिण मालदा सीट पर तेजी से बढ़ी है. वर्ष 2009 के चुनाव में भाजपा के दीपक कुमार चौधरी मात्र 5.30 प्रतिशत यानि 43 हजार 997 वोट ही ला पाये थे, जबकि 2014 के चुनाव में स्थिति काफी बदल गई.
जो भाजपा 2009 में मात्र कुछ हजार वोट लाने में सफल रही थी, वही भाजपा वर्ष 2014 के चुनाव में दो लाख 16 हजार 181 वोट ले आयी. भाजपा का मत प्रतिशत पांच प्रतिशत से बढ़कर 19.79 प्रतिशत हो गया. इस बार के चुनाव में भी भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. भाजपा के टार्गेट में इस बार मालदा जिला भी है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह स्वयं यहां रैली कर चुके हैं. वर्ष 2009 के चुनाव परिणाम की यदि बात करें तो पहली बार अब्दुल गनीखान चौधरी के भाई अबु हासेम खान चौधरी चुनाव लड़े थे. गनीखान चौधरी के नाम पर इन्हें भारी समर्थन हासिल हुआ. तब उन्होंने 53.45 प्रतिशत वोट लाकर बाजी मार ली.
अबु हासेम खान चौधरी ने वाममोर्चा समर्थित माकपा उम्मीदवार अब्दुल रज्जाक को करीब सवा लाख मतों से पराजित किया था. अबु हासेम खान चौधरी के खाते में चार लाख 43 हजार 377 तो अब्दुल रज्जाक के खाते में तीन लाख 7 हजार 97 वोट आये थे. उस समय तृणमूल का कोई अस्तित्व नहीं था. मुख्य मुकाबला इन्हीं दोनों उम्मीदवारों के बीच था. भाजपा के दीपक कुमार चौधरी चुनाव तो लड़ रहे थे, लेकिन कोई चुनौती नहीं दे पाये. वह मात्र 43 हजार 997 वोट ही पा सके थे. वर्ष 2014 के चुनाव मालदा दक्षिण सीट की स्थिति बदल गई थी.
तब तक न केवल तृणमूल कांग्रेस अस्तित्व में आ गई थी, बल्कि वाममोर्चा के 34 वर्षों के शासनकाल का अंत कर राज्य में सत्तारूढ़ भी हो चुकी थी. पूरे राज्य में तृणमूल सुप्रीमो तथा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चल रही थी. 2014 के चुनाव में जहां पूरे राज्य में ममता बनर्जी की जय-जयकार रही, वहीं मालदा जिले में उनकी एक नहीं चली. तृणमूल उम्मीदवार मालदा जिले की दोनों सीटों पर न केवल चुनाव हार गये, बल्कि मुकाबले में ही नहीं रहे. दक्षिण मालदा सीट पर मुख्य मुकाबला कांग्रेस के अबु हासेम खान चौधरी, भाजपा के विष्णुपद राय तथा माकपा के अब्दुल हसनद खान के बीच हुआ.
तृणमूल कांग्रेस के मोअज्जम हुसैन चौथे स्थान पर रहे. वह मात्र एक लाख 92 हजार 632 वोट ही पा सके, जबकि अबु हासेम खान चौधरी तीन लाख 80 हजार 291 वोट लेकर चुनाव जीत गये थे. उन्होंने भाजपा के विष्णुपद राय को हराया. विष्णुपद राय दो लाख 16 हजार 181 वोट पा सके थे, जबकि माकपा के अब्दुल हसनद खान चौधरी दो लाख 9 हजार 480 वोट लेकर तीसरे स्थान पर रहे थे.
इस बार के चुनाव में दक्षिण मालदा सीट पर दिलचस्प मुकाबला है. जो माकपा बार-बार यहां कांग्रेस को टक्कर देती थी उसका इस बार उम्मीदवार ही मैदान में नहीं है. यहां अबु हासेम खान चौधरी का मुकाबला भाजपा की श्रीरूपा मित्र चौधरी तथा तृणमूल कांग्रेस के मोअज्जम हुसैन से है. 2014 के चुनाव में मोअज्जम हुसैन भले ही चौथे स्थान पर रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर से उन पर भरोसा जताया है. अब अंत में जीत किसकी होती है इसका पता तो 23 मई को चलेगा जब चुनाव परिणामों की घोषणा होगी.
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