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सिलीगुड़ी : 11 दिनों बाद भी जांच टीम के हाथ खाली

नहीं मिल रहे विवादित स्टॉलों के दस्तावेज अधिकारी के कब्जे में होने का गहराया संदेह सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट (एसआरएमसी) में स्टॉलों के आवंटन या हस्तांतरण में हुए घोटाले व फर्जीवाड़े के मास्टरमाइंड की तलाश चेयरपर्सन सह दार्जिलिंग जिला शासक व सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कर रही हैं. लेकिन मामला सामने आने के बाद भी […]

  • नहीं मिल रहे विवादित स्टॉलों के दस्तावेज
  • अधिकारी के कब्जे में होने का गहराया संदेह
सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी रेगुलेटेड मार्केट (एसआरएमसी) में स्टॉलों के आवंटन या हस्तांतरण में हुए घोटाले व फर्जीवाड़े के मास्टरमाइंड की तलाश चेयरपर्सन सह दार्जिलिंग जिला शासक व सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कर रही हैं.
लेकिन मामला सामने आने के बाद भी प्रशासन के हाथ खाली है. बल्कि आवंटन व हस्तांतरण से जुड़े उन 62 स्टॉलों के दस्तावेज भी एसआरएमसी के कार्यालय में नहीं मिल रहे हैं. मिलें भी कैसे? विवादित दस्तावेजों को एसआरएमसी के एक आला अधिकारी ने कार्यालय से अपने कब्जे में ले रखा है.
बीते 11 दिनों से घोटाला व फर्जीवाड़े का परत दर परत खुलासा करने के बाद एक सवाल व्यवसायी सहित सभी को परेशान कर रहा है कि आखिरकार यह सब हुआ कैसे? प्राप्त जानकारी के अनुसार घटनाक्रम की शुरूआत 29 सितंबर 2018 को हुआ. बीते वर्ष जून महीने में एसआरएमसी के सचिव का पदभार संभाले देवज्योति सरकार 29 सितंबर को चेयरपर्सन सह जिला शासक से एक दरख्वास्त की.
जिसमें उन्होंने एसआरएमसी की चेयरपर्सन को सुझाया कि मार्केट के कई स्टॉल का किराया बकाया है, कई के कागजात अपडेट नहीं है. बल्कि रिकॉर्ड में दर्ज कई स्टॉल के वास्तविक मालिक के स्थान पर भिन्न लोग व्यवसाय चला रहा हैं. एक सरकारी वकील के परामर्श व एलए कलेक्टरेट दार्जिलिंग के स्वीकृति अनुसार स्टॉलों के वर्तमान कब्जेदार बकाया किराया सहित पचास हजार की नन-रिफंडेबल सलामी अदा कर स्टॉल का मालिकाना लेने को भी तैयार हैं.
इससे एसआरएमसी को राजस्व का लाभ होगा. उस अपील के साथ सचिव ने चुनिंदा कुछ स्टॉलों को चिह्नित कर बनायी एक लिस्ट भी चेयरपर्सन के समक्ष पेश की. अपील से पहले ही सचिव बकाया किराया वाले स्टॉलों में ताला जड़ चुके थे. संभवत: ताला लगाये गये स्टॉलों की ही तालिका चेयरपर्सन को दी गयी.
चेयरपर्सन ने सचिव के अपील को स्वीकार कर एक ऑर्डर पास किया. जिसमें उन्होंने कहा कि यदि चिन्हित स्टॉल पिछले पांच या उससे अधिक समय से वर्तमान काबिज के कब्जे में हैं.
और वह उसका प्रमाण दिखा सकते हैं तो स्टॉल का मालिकाना उनके नाम पर हस्तांतरण कर दिया जायेगा. इसके लिए उन्हें एलए कलेक्टरेट के अनुसार स्टॉल का किराया व सलामी जमा करानी होगी. चेयरपर्सन के इस निर्देश को सचिव ने कार्यकारी करते हुए 5 अक्तूबर 2018 को कोषाध्यक्ष से रकम जमा लेकर फाइल बनाने का निर्देश जारी किया.
इसी के अनुसार 62 या उससे भी अधिक स्टॉलों का आवंटन या हस्तांतरण 1 अक्तूबर 2018 से लेकर 16 जनवरी 2019 के बीच हुयी है.
जबकि स्टेट मार्केटिंग बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देशों के बिना आवंटन नहीं किया जा सकता. बल्कि यदि किसी स्टॉल का किराया बकाया हो, या मालिक व्यवसाय नहीं करता हो तो वह स्टॉल स्टेट मार्केटिंग बोर्ड के समक्ष सुपुर्द करना होगा. फिर बोर्ड की स्वीकृति व दिशा-निर्देशों के आधार पर नये आवेदक को स्टॉल आवंटित किया जाना चाहिए. जबकि जारी डीड में मूल मालिक व वर्तमान काबिज के बीच साझेदारी, फिर उस साझेदारी को खंडित कर स्टॉल का मालिकाना वर्तमान कब्जेदार को सौंपा गया है. जबकि भीतर की कहानी इससे भिन्न है.
विश्वस्त सूत्रों के मूताबिक मूल मालिक व वर्तमान कब्जेदार के बीच कोई साझेदारी थी ही नहीं, जिसे खंडित करने का जिक्र विवादित डीड में किया गया है. बल्कि मूल मालिक ने लाखों रुपये के एवज में स्टॉल दूसरे को बेचा. इसके बाद स्टेट मार्केटिंग बोर्ड को नजरअंदाज कर यह कारनामा किया गया. स्टॉलों की खरीद-बिक्री की बात को एसआरएमसी के चेयरपर्सन और सचिव ने भी स्वीकार किया है.
बल्कि 30 सितंबर 2018 को फोसिन के साथ हुई बैठक में एसआरएमसी के चेयरपर्सन ने स्वयं स्टॉलों का किराया बढ़ाने की बात की. उन्होंने स्टॉल का किराया 1 रुपये प्रति वर्गफुट से बढ़ाकर 12 से 15 रुपया प्रति वर्गफुट करने की बात कही थी. सचिव ने भी सरकारी निर्देशानुसार किराया बढ़ाने की बात को स्वीकार किया है.
यदि किराया बढ़ाना ही था फिर 1 अक्तूबर 2018 से जारी किये गये इन विवादित स्टॉलों के आवंटन या हस्तांतरण के डीड में वहीं पुराना एक से दो रुपया प्रति वर्गफुट के हिसाब से किराया कैसे तय किया गया है. प्राप्त दस्तावेज व सूत्रों की मानें तो उसी अपील व ऑर्डर के अनुसार यह सभी हस्तांतरण की डीड जारी की गयी. फिर भी इन विवादित स्टॉल हस्तांतरण के डीड पर अंकित खुद के ही दस्तखत को चेयरपर्सन व सचिव फर्जी करार दे चुके हैं.
यदि डीड पर अंकित उनके हस्ताक्षर फर्जी हैं फिर विवादित सभी डीड फर्जी होना चाहिए. जबकि डीड के अनुसार, नये पट्टेदारों ने नन रिफंडेबल सलामी भी जमा करायी है. बल्कि पिछला बकाया व अब तक का किराया जमा कराने का भी दावा कर रहे हैं. इन विवादित 62 डीड के अनुसार जमा कराये गये नन रिफंडेबल सलामी की मनी रसीद में चेयरपर्सन व सचिव के 1 अक्तूबर 2018 के ऑर्डर व 5 अक्तूबर 2018 को बनायी वर्तमान काबिज तालिका का जिक्र किया गया है.
सूत्रों की माने को 29 सितंबर के ही ऑर्डर को 1 अक्तूबर का ऑर्डर बताया जा रहा है. जबकि 29 सितंबर को सचिव के अपील में जिक्र वर्तमान काबिज की तालिका व 5 अक्तूबर को बनायी तालिका का हिसाब सबकी समझ के परे है.
आशंका जतायी जा रही है कि 29 सितंबर को अपील के साथ चेयरपर्सन को दी गयी वर्तमान काबिज की तालिका को ही जोड़-तोड़ कर 1 अक्तूबर को डीड जारी किया गया और 5 अक्तूबर से 16 जनवरी 2019 तक नन रिफंडेबल सलामी जमा करायी गयी है.
सबसे बड़ा सवाल यह है कि मामला सामने आते ही 8 फरवरी को एसआरएमसी की चेयरपर्सन सह दार्जिलिंग जिला शासक जयसी दासगुप्ता ने सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट के साईबर क्राइम थाने में उनके व सचिव के दस्तखत के साथ जालसाजी का मामला दर्ज कराया.
साइबर थाने की टीम मामले की छानबीन शुरू की और कार्यालय से कुछ दस्तावेज भी अपने कब्जे में लिया. लेकिन विवादित 62 डीड में से अधिकांश नहीं मिल रहे है. प्राप्त दस्तावेज व सूत्रों के मुताबिक विवादित अधिकांश दस्तावेज एसआरएमसी के आला अधिकारी ने कार्यालय से अपने कब्जे में ले रखा है.

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