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सिलीगुड़ी : गुरु छिंतरमल सालासर बाबा के साथ-साथ जन की सेवा को ही मानते हैं पूजा

सिलीगुड़ी : श्री सालासर दरबार (धाम) के संस्थापक गुरुजी छिंतरमल शर्मा व उनका पूरा परिवार ही सालासरवाले बालाजी की सेवा व जनसेवा को समर्पित हो चुका है. मूल रूप से राजस्थान के फतेहपुर शेखावटी निवासी गुरुजी का बचपन से ही पूजा-पाठ, पठन-पाठन में गहरी रुचि रखते थे. ये संत शिरोमणि आलूसिंहजी के विशवस्त शिष्य हैं. […]

सिलीगुड़ी : श्री सालासर दरबार (धाम) के संस्थापक गुरुजी छिंतरमल शर्मा व उनका पूरा परिवार ही सालासरवाले बालाजी की सेवा व जनसेवा को समर्पित हो चुका है. मूल रूप से राजस्थान के फतेहपुर शेखावटी निवासी गुरुजी का बचपन से ही पूजा-पाठ, पठन-पाठन में गहरी रुचि रखते थे. ये संत शिरोमणि आलूसिंहजी के विशवस्त शिष्य हैं.

उन्हीं के सान्निध्य में रहकर गुरुजी ने श्री सालासर हनुमान जी की पूजा-अर्चना व सेवा शुरू की. सालासरवाले हनुमान जी की अपने परमभक्त पर ऐसी कृपा बरसी कि आज गुरुजी के पास अनेक लोग अपना परेशानियां व समस्याएं लेकर आते हैं और संतुष्ट होकर जाते हैं.

23 फरवरी 1990 में गुरुजी ने सिलीगुड़ी के संतोषी नगर में श्री सालासर दरबार की नींव डाली. गुरुजी कहते हैं, ‘मंदिर स्थापना के 29 वर्ष होने चला, बाबा के दर पर जो भी भक्त पूरे सच्चे मन से अपनी समस्या लेकर आया, वह खाली हाथ नहीं लौटा.
सच्चे मन से मन्नतें करनेवालों को बाबा कभी निराश नहीं करते. यहीं वजह है हरेक मंगलवार व शनिवार को सिलीगुड़ी ही नहीं] बल्कि सिक्किम, असम, बिहार देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा पड़ोसी राज्य नेपाल, भूटान से भी भारी तादाद में भक्त बाबा के दर पर हाजिरी लगाते हैं .’
उन्होंने बताया कि बाबा के दरबार में यूं तो वर्ष भर ही विविध धार्मिक व जन सेवा के कार्यक्रम आयोजित होते रहते हैं. लेकिन चैतसुदी पूर्णिमा में हनुमान जयंती व आश्विनसुदी पूर्णिमा में हनुमान महोत्सव, सावन में महhना भर ही महारुद्राभिषेक विराट स्तर पर आयोजित होता है. मंदिर में एक समय सावन महीने में नौ दिनों का नवाह्न पारायण का भव्य आयोजन होता था, जिसे अब महीनेभर के महारुद्राभिषेक में तब्दील कर दिया गया है.
दरबार में बालाजी के अलावा भगवान शंकर, दुर्गामाता, भौमियाजी, अंजनी मां, श्री राम दरबार, पंचमुखी बालाजी व अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी स्थापित हैं. उन्होंने बताया कि देश-दुनिया से आने वाले बाबा के भक्तों व मुसाफिरों के ठहरने आदि के लिए मंदिर से सटा ही चार मंजिला धर्मशाला भी बनवाया गया है.
इस धर्मशाला में 16 कमरे और एक हॉलघर के साथ ही मुसाफिरों के ठहराव का पूरा इंतजाम है.धाम की ही संस्था ‘श्री सालासर भजन मंडल’ के परिचालन में हरेक साल गरीब कन्याओं का विवाह, गरीब बच्चों को शिक्षा प्रदान खासतौर पर ग्रामीण क्षेत्र की लड़कियों को शिक्षित करना, योग शिक्षा, कंप्यूटर शिक्षा, योग शिक्षा, गोरक्षा, चिकित्सा सेवा व लोगों को धर्म के प्रति जाग्रत करने का काम भी वर्ष भर किया जाता है. इतना ही नहीं किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा के समय भी सालासर दरबार के सभी भक्त हमेशा सहयोग के लिए पीड़ितों की सेवा तत्पर रहते हैं.
दरबार में कई महान विभूतियां लगा चुकी हैं हाजिरी
सालासरवाले बाबा के सिलीगुड़ी दरबार में पुरी के गोवर्द्धन पीठाधीश्वर जगद्गुरु श‍ंकराचार्य, स्वामी अवधेशानंद महाराज, स्वामी प्रियाधरण महाराज, कथावाचक शंभुशरण, भूतपूर्व राष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत जैसे महान विभूतियां हाजिरी लगा चुकी हैं. श्री सालासर दरबार व भजन मंडल के प्रवक्ता कैलाश शर्मा ने बताया कि राजस्थानी शिल्प के अनुसार बाबा के दरबार को नया रूप दिया जा रहा है.
राजस्थान के मकराना से आये कारीगर संगमरमर पर कलाकृतियां बनाने का काम युद्धस्तर पर कर रहे हैं. दरबार का जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण चैतसुदी पूर्णिमा से पहले कर लिया जायेगा और हनुमान जयंती पर इसका उद्घाटन भी कर दिया जायेगा.
सालासर से आयी अखंड ज्योति आज भी ज्वलंत
कैलाश शर्मा ने बताया कि राजस्थान के सालासर धाम से आयी अखंड ज्योति आज भी ज्वलंत है. इस अखंड ज्योति को लाने के लिए सिलीगुड़ी से गुरुजी छिंतरमल शर्मा के सान्निध्य में बाबा के भक्त कैलाश शर्मा, विक्रम प्रसाद (मास्टरजी), बजरंग लाल बंसल, कमल बंसल, श्याम सुंदर केजड़ीवाल, गोपाल प्रसाद अग्रवाल (ठाकुरगंजवाले), मनोज कुमार सिंघी, रमेश कुमार शर्मा व शंकर लाल अग्रवाल 11 दिसंबर 2001 को राजस्थान के सालासर धाम पहुंचे.
अखंड ज्योति लेकर सिलीगुड़ी के लिए बाबा के सभी भक्तों ने ‘संकटमोचन ज्योति रथयात्रा’ शुरू की. 45 दिनों तक राजस्थान से से सिलीगुड़ी की पदयात्रा करके बाबा के भक्त संतोषीनगर स्थित सालासर दरबार पहुंचे और मोहनदास जी की अखंड ज्योति को दरबार में स्थापित किया, जो आज भी ज्वलंत है. गोपाल अग्रवाल ने बताया कि रथयात्रा देश के जिस शहर-गांव-कस्बे से गुजरी, हर जगह की रथयात्रा का भव्य स्वागत किया गया.

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