कमिश्नर पर टिकीं निगाहें
सिलीगुड़ी : सिलीगुड़ी नगर निगम का भविष्य आनेवाले दिनों में क्या होगा, इसी पर यहां सबकी निगाहें टिकी हुई हैं. सिलीगुड़ी शहर में इन दिनों लोग बस दो ही बातों को लेकर चर्चा कर रहे हैं. एक तो लोकसभा चुनाव परिणाम की और दूसरा सिलीगुड़ी नगर निगम के भविष्य की. आमलोगों का यह भी कहना है कि नगर निगम में जिस तरह से राजनैतिक उठा पठक की स्थिति है, इससे तो अच्छा है, यहां जल्द से जल्द चुनाव ही हो जाये.
ऐसे भी वर्तमान बोर्ड की स्थिति अच्छी नहीं है. सिलीगुड़ी नगर निगम का चुनाव वर्ष 2009 में हुआ था और इस वर्ष ही यहां चुनाव भी होना है. जाहिर है यदि वर्तमान बोर्ड को विश्वास मत हासिल नहीं होता है तो बोर्ड को भंग कर यहां चुनाव का रास्ता साफ किया जाना चाहिए. यहां उल्लेखनीय है कि पिछले माह 29 तारीख को सिलीगुड़ी नगर निगम के बोर्ड बैठक में जम कर हंगामा हुआ था.
इसी बैठक में तृणमूल कांग्रेस ने मेयर गंगोत्री दत्ता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया है. हांलाकि कांग्रेस इसे गलत तरीके से लाया गया अविश्वास प्रस्ताव बता रही है,लेकिन सच्चई यह है कि चेयरमैन अरिंदम मित्र ने इसे स्वीकार कर लिया है. उन्होंने ना केवल इसे स्वीकार किया है अपितु इसे कार्यवाही के लिए के लिए सिलीगुड़ी नगर निगम के कमिश्नर को भेज दिया है.
नियम क्या है
राजनैतिक विश्लेषकों के अनुसार अब आगे की कार्यवाही राज्य सरकार पर निर्भर है. सिलीगुड़ी नगर निगम के कमिश्नर अपनी रिपोर्ट राज्य सरकार के नगपलिका सचिव को भेजेंगे. यह अब उनपर निर्भर करता है कि वह मेयर के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान कराएंगे या फिर नगर निगम में चुनाव तक किसी प्रशासक की नियुक्ति करेंगे. राजनैतिक विश्लेषकों का आगे कहना है कि राज्य में तृणमूल कांग्रेस की सरकार इन दिनों किसी भी तरह से विपक्ष के कब्जे वाली नगर पालिका,नगर निगम या फिर पंचायतों पर से उनका कब्जा खत्म कराना चाहती है.
ऐसे में सिलीगुड़ी नगर निगम के वर्तमान राजनैतिक हालात का फायदा उठाते हुए राज्य सरकार कांग्रेस के कब्जे वाली वर्तमान बोर्ड को चलता करना चाहेगी. अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान में अगर गंगोत्री दत्ता हारती हैं तो राज्य सरकार के लिए यहां चुनाव तक प्रशासक नियुक्त करने का रास्ता साफ हो जायेगा.
काम काज पर प्रभाव
सिलीगुड़ी नगर निगम में राजनैतिक घमासान के कारण नगर निगम के कामकाज पर भारी प्रभाव पड़ रहा है. किसी भी नई परियोजनाओं की शुरआत नहीं हो रही है. मेया सहित तमाम मेयर पार्षद भी असमंजस में हैं कि उन्हें क्या करना है. नगर निगम के अस्थायी कर्मचारियों के वेतन भत्ते को लेकर भी असमंजस बनी हुयी है.