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24 को उत्तरकन्या अभियान, मांगेंगे हक

राज्य सरकार पर मालिकों के साथ मिलीभगत का आरोप पहाड़ के श्रमिकों को वर्ष 2016 का अब तक नहीं मिला बोनस चाय उद्योग के खिलाफ एक बड़ी साजिश की सबने जतायी आशंका सिलीगुड़ी : वर्ष 2018 की शुरुआत से ही चाय श्रमिक संगठनों ने राज्य सरकार के खिलाफ आक्रमक रुख अपना लिया है. न्यूनतम मजदूरी […]

राज्य सरकार पर मालिकों के साथ मिलीभगत का आरोप

पहाड़ के श्रमिकों को वर्ष 2016 का अब तक नहीं मिला बोनस
चाय उद्योग के खिलाफ एक बड़ी साजिश की सबने जतायी आशंका
सिलीगुड़ी : वर्ष 2018 की शुरुआत से ही चाय श्रमिक संगठनों ने राज्य सरकार के खिलाफ आक्रमक रुख अपना लिया है. न्यूनतम मजदूरी व राशन की मांग को लेकर उत्तर बंगाल के सभी चाय बागान के श्रमिकों को एकजुट किया जा रहा है. 24 जनवरी को बागान श्रमिकों के साथ सिलीगुड़ी स्थित राज्य मिनी सचिवालय उत्तरकन्या का घेराव किया जायेगा. उक्त जानकारी देते हुए चाय श्रमिक संगठन ज्वाइंट फोरम के संयोजक जिया उल आलम ने कहा कि मुख्यमंत्री की उपस्थिति में डुआर्स के दो चाय बागान बंद हो गये, लेकिन उनके मुंह से इस संबंध में दो शब्द नहीं निकले.
उल्लेखनीय है कि चाय बागान श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी व राशन आदि की मांग को लेकर 11 जनवरी को उत्तरकन्या में एक बैठक राज्य सरकार की ओर से बुलायी गयी थी. उस बैठक को टाल दिया गया है. अब बैठक 17 जनवरी को आयोजित कराने की बात राज्य सरकार ने कही है. आज की बैठक स्थगित करने से श्रमिक संगठन बौखला गये हैं. गुरूवार दोपहर सिलीगुड़ी जंक्शन इलाके में स्थित कांग्रेस समर्थित श्रमिक संगठन इंटक कार्यालय किसान भवन में ज्वाइंट फोरम की आपातकालीन बैठक बुलायी गयी. इस बैठक में ज्वाइंट फोरम के संयोजक व चाय श्रमिक नेता जियाउल आलम, आलोक चक्रवर्ती, मणि कुमार दर्नाल, समन पाठक सहित पहाड़ व तराई-डुआर्स के श्रमिक नेता उपस्थित थे. इस बैठक में 24 जनवरी को उत्तरकन्या अभियान पर मुहर लगाई गयी है. पहाड़ व तराई-डुआर्स चाय बागान श्रमिक हाथ में झोला लेकर उत्तरकन्या पहुंच कर न्यूनतम मजदूरी व राशन की मांग करेगे. इससे पहले भी कई आंदोलन कार्यक्रम का निर्णय लिया गया है. जियाउल आलम ने बताया कि चाय बागान श्रमिको के हित में तृणमूल राज्य सरकार की भूमिका निष्क्रिय है. केंद्र की ओर से भी कोई कदम नहीं उठाया गया है. जिसकी वजह से चाय बागान मालिकों की मनमानी काफी बढ़ी है, जिसका भुगतान श्रमिक व उनके परिवारों को करना पड़ा रहा है. वर्ष 2015 के समझौते के अनुसार श्रमिक न्यूनतम मजदूरी पाने की कागार पर खड़े हैं. सभी कानूनी जटिलता समाप्त होने के बाद भी राज्य सरकार घोषणा करने से कतरा रही है. बल्कि पंचायत चुनाव के मद्देनजर वोट बैंक की राजनीति करते हुए 17 रूपया 50 पैसा अंतरिम राहत देने की घोषण की है. जिसका कोई आधार नहीं है. उन्होंने राज्य सरकार के इस निर्णय को तानाशाही करार दिया. ज्वाइंट फोरम ने इस अंतरिम मुआवजे का विरोध किया है. चाय श्रमिकों की वर्तमान मजदूरी 132 रूपये है जिसमें राशन का 26 रूपया भी शामिल है. जबकि श्रमिकों को कुछ वर्षों से राशन नहीं मिल रहा है. इसीलिए 26 रूपये अलग से देने की मांग की जा रही है. श्री आलम ने कहा कि उत्तर बंगाल के करीब 32 चाय बागान बंद हैं. पहाड़ के करीब 80 चाय बागानों के श्रमिकों को वर्ष 2016 का पूजा बोनस अब तक नहीं मिला है. जबकि पहाड़ पर सरकार की मध्यस्तता में त्रिपक्षीय बोनस समझौता हुआ था. फिर किससे समर्थन से पहाड़ के मालिकों में इतनी हिम्मत आयी है कि श्रमिकों को बोनस नहीं दे रहे हैं. लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि तृणमूल समर्थित चाय श्रमिक संगठनो ने इस अंतरिम मुआवजे का विरोध नहीं किया है. तत्काल रूपया मिलने की वजह कुछ श्रमिक भी इसे स्वीकार कर सकते हैं. ऐसी परिस्थिति में सभी चाय बागानों में द्वंद की स्थिति पैदा होगी. इस संबंध में जियाउल आलम ने कहा कि इस स्थिति से निपटने के लिए ज्वाइंट फोरम तैयार है. तृणमूल शुरू से ही विभाजन की राजनीति करती आ रही है.
जमीन हड़पने की साजिश
श्री आलम ने चाय बागानों के खिलाफ राज्य सरकार की नीति देख कर किसी बड़े षड्यंत्र की आशंका प्रकट की. उन्होंने कहा कि उत्तर बंगाल के सबसे बड़े उद्योग को बंद करा कर लाखों एकड़ जमीन हड़पने की साजिश को कभी भी सच होने नहीं दिया जायेगा. समस्या के समाधान के लिए मालिक पक्ष के साथ त्रिपक्षीय बैठक करने के बजाये सरकार उनका प्रतिनिधित्व कर रही है. अंतरिम मुआवजे में बागान के अन्य ग्रेड के श्रमिकों का ध्यान नहीं रखा गया है. इसके अतिरिक्त 17.50 रुपये का आधार भी स्पष्ट नहीं किया गया है. 17 जनवरी को होनेवाली बैठक को लेकर उन्होंने कहा कि आंदोलन श्रमिकों के हित में किया जाता है. हमारी नीति साफ है. 17 की बैठक में सरकार की ओर से मांगे पूरी की जाती है, तो फिर आगे विचार किया जायेगा.

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