सीमा की सुरक्षा के लिये संविधान ने सेना, और देशकी अंदरूनी सुरक्षा के लिये पुलिस की व्यवस्था की है. पुलिस को समाज का दुश्मन नहीं बल्कि मित्र बताया जाता है. जबकि आमलोग पुलिस से डर कर दूर भागते हैं. कईयों का तो यह भी कहना है कि व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए मामले में उलट-फेर करना आदि तो पुलिस के लिए आम बात है. उसके बाद भी आमलोगों के साथ संबंध सुधारने के लिये पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी समय-समय पर कुछ अनोखा कदम उठाते रहते हैं. युग बदलने के साथ-साथ अपराधिक मामलों की संख्या भी समाज में बढ़ रही है. पारिवारिक कलह, जमीन, बच्चों के झगड़े आदि को लेकर पड़ोसी के साथ विवाद, मारपीट, लापता, मोबाइल व अन्य इलेक्ट्रानिक गैजेट की चोरी, बाइक व गाड़ियों की चोरी आदि की घटनाएं साधारण सी बात हो गयी है. इन सभी गतिविधियों के खिलाफ पुलिस थानों में एफआइआर, शिकायत, डायरी या मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करायी जाती है. साक्षर समाज में छोटे-मोटे विवाद प्राय: कम होते हैं जबकि बस्ती या ग्रामीण इलाकों में आपसी विवाद का मामला अधिक होता है. पढ़े-लिखे लोग तो अपनी शिकायत स्वयं लिखकर दर्ज कराते हैं, लेकिन निरक्षर लोगों के लिए यह एक बड़ी समस्या है.
समस्या होने के साथ ही महिलाएं व निम्न वर्ग के लोग रोते-बिखलते अपनी शिकायत लेकर पुलिस थाने पहुंच जाते हैं. लिखित शिकायत ना होने से ड्यूटी ऑफिसर की डांट सुनकर अपनी परेशानी छोड़कर शिकायत लिखवाने के लिए भटकने लगते हैं. जिसका फायदा कुछ दलाल उठाने लगे हैं. पिता के लापता होने की शिकायत लिखने के लिए 50 रूपये, पत्नी के लापता होने की शिकायत लिखने के लिए 150 रूपये, मोबाइल, गाड़ी व अन्य चोरी की शिकायत लिखने के लिए 100 रूपए, कुछ अन्य मामलों की शिकायत लिखने के लिए 300 रूपये तक लिए जाते हैं. वास्तव में पुलिस थाने के अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर दलाल अपना राज चला रहे हैं.
लोगों की इसी समस्या को दूर करने के लिए वर्षों पहले शहर के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर जगमोहन ने लोगों की सहायता के लिये कमिश्नरेट के अंतर्गत सभी थानों में हेल्प डेस्क की व्यस्था की थी. इस डेस्क पर एक पुलिस कर्मी को लोगों की सहायता करने के लिये रखा गया था. यहां एफआईआर, शिकायत सहित समस्या से जुड़े समाधान आदि की जानकारिया दी जाती थी. पुलिस वाले शिकायत दर्ज कराने में सहयोग करते थे. लेकिन कमिश्नर जगमोहन का तबादला होते ही थानों के हेल्प डेस्क ध्वस्त हो गये हैं.
सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट के अंतर्गत कुल छह थाने हैं. इन सभी थानों में पुलिस हेल्प डेस्क का बोर्ड लगा हुआ है. लेकिन उसकी स्थिति खराब है. इनमें से अधिकांश थानों के बाहर शिकायत लिखने वाले दलालों का डेरा जमा हुआ है. जबकि शिकायत लिखना भी पुलिस का ही काम है. लापता होने का मामला काफी संवेदनशील होता है. लापता हुए बच्चे या व्यक्ति की फोटो व अन्य जानकारियां फौरन सभी थानों में देनी होती है. मिसिंग डायरी दर्ज करने के लिए सिलीगुड़ी मेट्रोपोलिटन पुलिस कमिश्नरेट ने एक विशेष फॉर्मेट तैयार कर रखा है. लेकिन यह पुलिस थानों में नहीं बल्कि दलालों के पास मिलता है. आरोप है कि मिसिंग डायरी दर्ज कराने वाले लोगों को पुलिस अधिकारी ही दलाल के पास तक भेजते हैं. जेरॉक्स कॉफी होने के बाद भी दुकानों में इस फॉर्मेट की कीमत 10 या 20 रूपए है. फॉर्मेट में मांगी गयी जानकारी भरने में भी लोगों को परेशानी होती है.