सिलीगुड़ी: विधानसभा परिसर में जनता के चुने हुये प्रतिनिधि वहां एक संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करने गये. वहां एक विधायक ने पहाड़ के तीनों विधायकों को वापस पहाड़ जाने के लिए कहा गया. विधायकों पर ऐसी अपमानजनक, अभद्र और अनावश्यक टिप्पणी सही नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि हम कौन से कालखंड में खड़े हैं. ये बातें सिलीगुड़ी के प्रमुख कारोबारी तथा समाजसेवी आलोक शर्मा ने कही. वह हमारे ‘प्रभात मेहमान’ कॉलम के मेहमान थे.
यह जो व्यवस्था की गयी उसमें सेंध लगाने की भूल आज राज्य सरकार के गले की फांस बन गयी है. राज्य सरकार ब्रिटिश राजनीति का सहारा लेकर प्रत्येक जाति के लिए अलग बोर्ड का गठन करके अपने दल की पैठ बनाने में सफल तो हो गयी, पर परिस्थिति का आकलन करने में हुई चूक भारी पड़ गयी. एक अलग गोरखालैंड राज्य राजनैतिक रूप से सही हो सकता है, मगर व्यावहारिक रूप से नहीं.
इसलिए जब-जब इस समस्या के समाधान की कोशिश की गयी तो यह फेल हो गया. श्री शर्मा ने कहा कि अलग राज्य की मांग का मकसद उस क्षेत्र और जनता का विकास होना चाहिए. लेकिन ऐसा होता नहीं है. प्रशासन से जुड़े लोग पद का लाभ लेते हैं. हर बार नुकसान जनता का ही होता है.उन्होंने कहा कि मांगना जायज है. क्या मांगा ये बाद का विषय है.किसी के मांग से किसी का अधिकार न घटता है न बढ़ता है. भारत के संघीय ढांचे में केन्द्र और राज्य सरकारों का अधिकार क्षेत्र और सीमाएं साफ तौर पर वर्णित हैं. विवाद के हालात में फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट है.
ऐसे में जनता के एक चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा ही एक अन्य चुने गए जन प्रतिनिधियों पर इस प्रकार कटाक्ष करना सर्वथा अनुचित है. आज हम पहाड़ पर जाने को कह रहे हैं. कल कुछ भेजने से रोक रहे थे, परसों पहाड़वालों को कह दिया जाएगा जो बाहर के हैं वो वही चले जाएं. यह सही नहीं है. वह लोग तो पहाड़ पर वापस चले गए हैं, मगर समस्या वहीं की वहीं खड़ी हैं.यहां बता दें कि पिछले दिनों राष्ट्रपति चुनाव के समय कोलकाता में जब विधायक मतदान कर रहे थे तब एक तृणमूल कांग्रेस के विधायक ने पहाड़ के तीनों गोजमुमो विधायकों को पहाड़ पर वापस चले जाने के लिए कहा था.