बातचीत के दौरान श्री चौधरी ने बताया कि किसी भी व्यक्ति को इलाज कराने से पहले डॉक्टर की योग्यता के संबंध में अच्छी तरह से जानकारी हासिल कर लेनी चाहिए. सिलीगुड़ी के बाजार में डॉक्टर का चोला ओढ़े कई लोग लूटने को तैयार बैठे हैं. अपनी दर्द भरी कहानी बयां करते हुए उन्होंने बताया कि वर्ष 2011 में उनकी पत्नी के घुटने में दर्द शुरू हुआ. इलाज के लिए उन्होंने डॉ कौशिक सम्मादार से संपर्क किया. उनके इलाज से अधिक फायदा नहीं हुआ.
फिर वर्ष 2012 में उनकी पत्नी संचिता चौधरी को ठंड लग जाने की वजह से सर्दी और बुखार ने जकड़ लिया. श्री चौधरी पत्नी के इलाज के लिए फिर से डॉ कौशिक के पास पहुंचे. डॉक्टर ने सिर्फ एक जांच कराकर इलाज शुरू किया. सुधार ना होने पर विकास बाबू ने कई बार डॉ कौशिक से अन्य रोगों की जांच करने का प्रस्ताव दिया. लेकिन डॉक्टर साहब ने सभी सलाह को नजरअंदाज करते हुए किसी अन्य विशेषज्ञ से संपर्क करने से भी मना कर दिया.अंत में विकास किशोर चौधरी की पत्नी की हालत और खराब हो गयी. अप्रैल महीने में उन्होंने पत्नी को एक निजी अस्पताल में भरती कराया, जहां उन्हें मालूम हुआ कि जुकाम की वजह से उनकी पत्नी का फेफड़ा और किडनी खराब हो गया है, जिसका कोई इलाज नहीं है. 10 मई 2012 को संचिता चौधरी की मौत हो गयी. इसके बाद श्री चौधरी ने डॉ कौशिक सम्मादार पर इलाज में लापरवाही बरतने का आरोप लगाकर उपभोक्ता विषयक व मेडिकल काउंसिल ऑफ पश्चिम बंगाल में मामला दर्ज कराया.