कोलकाता.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने पहले ही मामलों की सुनवाई के दौरान वर्चुअल माध्यम से पेशी को मंजूरी दे दी थी. इसके बावजूद आधारभूत सुविधाओं की कमी के कारण अब तक यह नियम लागू नहीं हो सका है. इस पर नाराजगी जताते हुए न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीदी की खंडपीठ ने राज्य के मुख्य सचिव से रिपोर्ट तलब की थी. बुधवार को सुनवाई के दौरान राज्य के मुख्य सचिव मनोज पंत सिलीगुड़ी से वर्चुअल माध्यम से अदालत में पेश हुए. इस दौरान सभी जिला न्यायाधीशों ने अदालत को सूचित किया कि उन्हें जेलों और अदालतों के बीच वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा स्थापित करने के लिए राज्य सरकार से फंड नहीं मिल रहे हैं. इस पर न्यायाधीशों ने मुख्य सचिव से पूछा कि अदालत के आदेश का पालन क्यों नहीं किया जा रहा है. जवाब में मुख्य सचिव ने कहा कि उन्हें हाइकोर्ट द्वारा पारित आदेश की जानकारी ही नहीं है. इस पर न्यायाधीशों ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, “हमें बताइये, हमारे आदेश आपको समझाने या आप तक पहुंचाने की प्रक्रिया क्या है?” हाइकोर्ट ने मुख्य सचिव को गुरुवार तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है और साथ ही दोपहर दो बजे अगली सुनवाई में उपस्थित रहने को भी कहा है. इससे पहले खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि यदि राज्य सरकार की पहल की कमी या धन आवंटन न होने के कारण आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं हो पातीं, तो उच्च न्यायालय राज्य के समेकित कोष को अटैच कर आवश्यक कार्यों के लिए धन उपलब्ध कराने पर विचार करेगा. गौरतलब रहे कि देश में न्यायिक प्रक्रिया को गति देने के उद्देश्य से पिछले जुलाई में लागू हुई भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (आइएनपीसी) की धारा 254(2) में डॉक्टरों, मजिस्ट्रेटों, फॉरेंसिक विशेषज्ञों और पुलिस अधिकारियों जैसे सरकारी अधिकारियों को वर्चुअल माध्यम से पेशी या गवाही देने की व्यवस्था की गयी है. लेकिन पश्चिम बंगाल में यह प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो सकी है, जिस पर हाइकोर्ट ने राज्य सरकार से जवाबदेही मांगी है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

