कोलकाता. भारत की राजनीति में परिवारवाद का बढ़ना ठीक नहीं. परिवारवाद की स्थिति जितनी मजबूत होगी, लोकतंत्र उतना ही कमजोर होगा. लोकतांत्रिक शासन पद्धति में परिवारवाद का जगह बना लेना किसी भी दृष्टि से लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है. पर, यही स्थिति देश में जहां-तहां दिख रही है. बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड और अन्य कई राज्यों में भी देखा जा सकता है कि शासन की बागडोर थाम चुके लोगों कैसे राजनीति में आमलोगों की जगह अपने परिजनों, खास कर बेटे-बेटियों को तरजीह दी है. यह सब देखने-सुनने के बाद भी अगर आम लोग ऐसे नेताओं या उनके दलों का समर्थन करते हैं, तो यह अपने ही लोकतंत्र का माखौल उड़ाने और उसे जीर्ण-शीर्ण करने जैसा है. ये बातें युवा चेतना के राष्ट्रीय संयोजक रोहित कुमार सिंह ने कहीं. श्री सिंह ने कहा कि वे लोग परिवारवादी शक्तियों के ख़िलाफ संघर्ष कर रहे हैं. बाबा साहब डॉ भीम राव अंबेडकर ने संविधान की भावनाओं का कैसे सम्मान बचे, इसके लिए सचेष्ट हैं. संविधान कहता है कि लोकतंत्र में सत्ता और शासन में सबका अधिकार बराबर का होगा. राजा-रानी की कोख से जन्म ले लेना ही पर्याप्त नहीं हो सकता. परंतु कांग्रेस के संरक्षण में ठीक इसका विपरीत परिणाम दिखा. उनके मुताबिक, कांग्रेस के साथ संपूर्ण विपक्ष परिवारवाद के संरक्षण के लिए समर्पित भाव से काम कर रहा है. यह भला आमलोगों या देश के हित में कैसे हो सकता है ? श्री सिंह ने कहा कि आम परिवार में जन्मे नौजवानों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उम्मीद की एक चमचमाती किरण हैं. श्री सिंह ने आरोप लगाया कि लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी देश को जाति-धर्म की आग में झोंकने के चक्कर में हैं. इसे हम हर हाल में रोकेंगे, होने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि देश की जनता जानना चाहती है की सत्ता में रहने के दौरान नेहरू-गांधी परिवार ने देश का सर्वोच्च सम्मान बाबा साहब आंबेडकर को क्यों नहीं दिया ?
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