कोलकाता. ऑल इंडिया ऑर्गनाइजेशन ऑफ केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स (एआइओसीडी) के अंतर्गत बंगाल केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एसोसिएशन (बीसीडीए) ने पश्चिम बंगाल और देश में नकली दवाओं के बढ़ती उपलब्धता पर गहरी चिंता व्यक्त की है. बीसीडीए की ओर से कोलकाता प्रेस क्लब में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में महासचिव पृथ्वी बोस, आधिकारिक प्रवक्ता शंखा राय चौधरी, अध्यक्ष प्रणब घोष, संगठन सचिव देबाशीष गुहा, प्रशासनिक सचिव प्रद्योत बनर्जी और कोषाध्यक्ष मोहम्मद इरफान खान लोधी उपस्थित थे. जहां नकली और मिलावटी दवाओं के प्रति जागरूकता फैलाना पर जोर दिया गया. देश में केमिस्ट्स और ड्रगिस्ट्स का एक प्रमुख संगठन है. जिसकी बंगाल में 40,000 से अधिक सदस्य हैं. बीसीडीए के महासचिव पृथ्वी बोस ने कहा, “नकली दवाओं का प्रसार एक टाइम बम की तरह है. हम इसके खिलाफ कार्रवाई करने में देर नहीं कर सकते. हम सरकार से विनियामक उपायों को मजबूत करने, प्रवर्तन बढ़ाने और इस खतरे के खिलाफ जनता में जागरूकता बढ़ाने का आग्रह करते हैं.”” उन्होंने आगे कहा कि “बीसीडीए एक बहु-हितधारक दृष्टिकोण की मांग कर रहा है, जिसमें नियामक एजेंसियों, कानून प्रवर्तन, स्वास्थ्य पेशेवरों और आम जनता के सहयोग की आवश्यकता है. बीसीडीए मानता है कि अधिक छूट (डिस्काउंट) का लालच पश्चिम बंगाल में नकली दवाओं की बढ़ती संख्या का एक प्रमुख कारण है. बीसीडीए ने हाल ही में कई शहरों की पहचान की है] जहां नकली और मिलावटी दवाओं का उत्पादन अत्यधिक बढ़ रहा है. ये अवैध दवाएं अक्सर बिना लाइसेंस वाले व्यक्तियों द्वारा बनायी जाती हैं, जबकि कुछ मामलों में लाइसेंस प्राप्त निर्माता भी इसमें शामिल हो सकते हैं. राज्य की कमजोर नियामक व्यवस्था, अपर्याप्त परीक्षण सुविधाएं, व्हिसल-ब्लोअर योजना की कमी, कम जागरूकता और विशेष अदालतों की अनुपस्थिति नकली दवाओं के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई में बड़ी बाधाएं हैं. बीसीडीए राज्य और केंद्र सरकार दोनों से आग्रह करता है कि वे इस मुद्दे पर तत्काल कार्रवाई करें और विशेष रूप से पहचाने गये हॉट स्पॉट शहरों में सतर्कता बढ़ाएं, ताकि नकली दवाओं के उत्पादन और वितरण को रोका जा सके. बीसीडीए के प्रवक्ता शंखा राय चौधरी ने कहा, “नकली दवाओं का मुद्दा बेहद गंभीर है, जो न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि देश के फार्मास्युटिकल उद्योग की साख को भी नुकसान पहुंचाता है. इस समस्या का शीघ्र समाधान आवश्यक है. उन्होंने विश्व स्वास्थ्य संगठन (ड्ब्ल्यूएचओ) के एक अनुमान का हलावा देते हुए बताया कि कुछ वर्ष पहले निम्न और मध्यम आय वाले देशों में कम से कम 10 % दवाएं नकली थीं. पिछले कुछ वर्षों में यह संख्या लगभग 47% बढ़ गयी है और अब अनुमान लगाया जा रहा है कि बाजार में उपलब्ध कुल दवाओं में से लगभग 15% नकली, अवैध या मिलावटी हैं. यह बढ़ोतरी सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है.
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