करोड़ों का बैंक बैलेंस बंगाल के चार निजी मेडिकल कॉलेजों व दो लोगों के हैं
फर्जी तरीके से एनआरआइ कोटे के तहत प्रत्येक एमबीबीएस सीट में दाखिले के लिए एक से 1.5 करोड़ रुपये और एमडी व एमएस सीट के लिए तीन से चार करोड़ रुपये लिये गये
इस मामले में अब तक करीब 23.67 करोड़ रुपये की अपराध आय (पीओसी) की पहचान हुई है
कोलकाता. निजी मेडिकल कॉलेजों में अनिवासी भारतीय (एनआरआइ) कोटे के तहत दाखिलों में कथित अनियमितताओं की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (इडी), कोलकाता क्षेत्रीय कार्यालय ने धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (पीएमएलए) के तहत पश्चिम बंगाल के चार निजी निजी मेडिकल कॉलेजों और दो लोगों के करीब 12.33 करोड़ रुपये के बैंक बैलेंस को अस्थायी रूप से कुर्क किया है. इडी की ओर से इस बात की जानकारी गुरुवार को दी गयी है. केंद्रीय जांच एजेंसी पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी के आधार पर मामले की जांच कर रही है. मामले की तफ्तीश के तहत इसी महीने पश्चिम बंगाल और ओड़िशा स्थित कुछ निजी मेडिकल कॉलेजों के विभिन्न परिसरों और उनसे जुड़े कुछ लोगों, एजेंटों और मामले से संबंधित अन्य व्यक्तियों के आवासों पर छापेमारी की गयी थी. तलाशी के दौरान, एनआरआइ कोटे के तहत मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए यूएसए में नोटरी के नकली टिकट, नकली एनआरआइ प्रमाण पत्र आदि सहित कई आपत्तिजनक सबूत बरामद किये गये. निजी मेडिकल कॉलेजों के ट्रस्टियों और प्रमुख व्यक्तियों, एजेंटों और अन्य संबंधित व्यक्तियों के बयान भी दर्ज किये गये हैं. इडी की जांच में पता चला है कि निजी मेडिकल कॉलेजों में एनआरआइ कोटे के तहत प्रवेश के लिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित दिशानिर्देशों का इन निजी मेडिकल कॉलेजों ने उल्लंघन किया है. नियम के अनुसार, एनआरआइ प्रायोजक को प्रथम और द्वितीय डिग्री का रक्त संबंधी रिश्तेदार होना चाहिए. तफ्तीश में यह पाया गया है कि जांच के दायरे में शामिल निजी मेडिकल कॉलेजों और उनके प्रबंधन व प्रमुख प्रबंधकीय व्यक्तियों ने एजेंटों के साथ मिलीभगत करके, उम्मीदवारों को लालच दिया और एनआरआइ कोटे के तहत प्रवेश के लिए एनआरआइ के फर्जी प्रमाण पत्र बनाने में लिप्त रहे. जांच में यह भी पता चला है कि एजेंट मेडिकल कॉलेजों के इशारे पर फर्जी दस्तावेज तैयार कर रहे थे. ये निजी मेडिकल कॉलेज फर्जी दस्तावेज तैयार करने के लिए एजेंटों को भुगतान कर रहे थे. जांच के दायरे में आने वाले निजी मेडिकल कॉलेजों पर आरोप है कि फर्जी तरीके से एनआरआइ कोटे के तहत प्रत्येक एमबीबीएस सीट में दाखिले के लिए एक से 1.5 करोड़ रुपये और प्रत्येक एमडी व एमएस सीट के लिए तीन से चार करोड़ रुपये लिये गये. एजेंटों ने पैसे देकर कई एनआरआइ से संपर्क किया, जिनके किसी भी संबंधी को मेडिकल कॉलेजों में दाखिले की जरूरत नहीं थी. उनसे उनके प्रमाण-पत्र प्राप्त किये गये और इन प्रमाण-पत्रों का उपयोग फर्जी दस्तावेज तैयार करने के लिए किया गया, जिसमें इन असंबंधित एनआरआइ लोगों को अभ्यर्थियों के प्रायोजक के रूप में पेश किया गया.
कुछ मामलों में, एजेंटों और निजी मेडिकल कॉलेजों ने दो-तीन अलग-अलग और असंबंधित उम्मीदवारों के लिए एनआरआइ प्रायोजक दस्तावेजों के एक ही सेट का इस्तेमाल किया. इडी की जांच में यह भी पता चला है कि स्थानीय राज्य प्राधिकरण के पत्र के जवाब में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रदान की गयी कुछ एनआरआइ प्रायोजकों के मामले में जालसाजी की स्पष्ट जानकारी के बावजूद, संबंधित अधिकारियों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की गयी है. अब तक, इस मामले में करीब 23.67 करोड़ रुपये की अपराध आय (पीओसी) की पहचान की गयी है. केंद्रीय जांच एजेंसी यह भी पता लगाने की कोशिश कर रही है कि कितने स्थानीय भारतीय छात्रों को ओडिशा के भुवनेश्वर और राउरकेला स्थित मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिलाने के लिए फर्जी दस्तावेज तैयार करके उन्हें गलत तरीके से एनआरआइ दिखाया गया था.
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