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जंगल महल में माओवादी फिर हुए सक्रिय

कोलकाता : राज्य से वाममोर्चा सरकार को हटाने में कभी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को माओवादियों के एक धड़े का खूब समर्थन मिला था. हालांकि बदले हालात में अब माओवादियों का झुकाव राज्य में भाजपा की ओर होता दिखायी देता है. अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव को हथियार बनाकर माओवादी अब खुद को […]

कोलकाता : राज्य से वाममोर्चा सरकार को हटाने में कभी तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी को माओवादियों के एक धड़े का खूब समर्थन मिला था. हालांकि बदले हालात में अब माओवादियों का झुकाव राज्य में भाजपा की ओर होता दिखायी देता है. अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव को हथियार बनाकर माओवादी अब खुद को मजबूत करने की कोशिश में जुट गये हैं.
गौरतलब है कि सिंगूर और नंदीग्राम जमीन आंदोलन के वक्त माओवादियों के आला नेतृत्व का पूरा समर्थन तृणमूल कांग्रेस की ओर था. इस संबंध में माओवादी नेता किशनजी के बयान भी खूब आते थे. लालगढ़ आंदोलन के प्रमुख छत्रधर महतो का साथ भी तृणमूल को मिला था. हालांकि वर्ष 2011 में शीर्ष माओवादी नेता किशनजी की मौत के बाद बंगाल में एक तरह से माओवादियों का सफाया हो गया.
छत्रधर महतो को अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट(यूएपीए) के तहत जेल में डाल दिया गया. माओवादियों का आला नेतृत्व ध्वस्त कर दिया गया था और उसके बाकी बचे कैडर इधर-उधर बिखर गये थे. लेकिन जानकारी के मुताबिक, माओवादी फिर एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं. सूचना के मुताबिक, जुलाई महीने से माओवादी एक बार फिर एकजुट होने का प्रयास कर रहे हैं.
इसके लिए माओवादियों द्वारा परचे बांटे जा रहे हैं. दूसरी ओर, नेतृत्व के संकट और जमीनी स्तर पर कैडरों की कमी से निपटने के लिए भाकपा (माओवादी) अब शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं के अलावा दलितों और आदिवासियों को संगठन में शामिल करने का प्रयास कर रही है.
बदलता राजनीतिक समीकरण
कभी तृणमूल कांग्रेस का साथ देने वाले माओवादियों का झुकाव अब राज्य में भाजपा की ओर हो रहा है. माना जा रहा है कि माओवादी इलाके में बन रहे नये राजनीतिक समीकरणों का फायदा उठाने की कोशिश में हैं. जहां एक तरफ राज्य सरकार द्वारा छत्रधर महतो को छोड़े जाने की अटकलें लग रही हैं वहीं भाजपा नेता मुकुल राय ने छत्रधर महतो की पत्नी से मुलाकात की है.
अपुष्ट खबरों के मुताबिक, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी छत्रधर महतो को रिहा करना चाहती हैं. उन्हें माओवादियों के नये झुकाव का अंदाजा हो चला है. हालिया पंचायत चुनाव में आदिवासी बहुल इलाकों में भाजपा के बढ़ते कदम ने उन्हें चिंता में डाल दिया है. इसी वर्ष मई में हुए पंचायत चुनावों में इन इलाकों में भाजपा को काफी कामयाबी मिली थी. उसके बाद इलाके में तृणमूल कांग्रेस और भाजपा के बीच हिंसक संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं. इलाके में भाजपा के दो कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है. जानकारों का मानना है कि झाड़ग्राम व पुरुलिया पर सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस की पकड़ धीरे-धीरे कमजोर हो रही है.
विशेषज्ञों के मुताबिक, 90 के दशक के आखिरी दौर में भी आदिवासी बहुल इलाकों में इसी तरह के राजनीतिक फेरबदल की वजह से माओवादियों को अपने पांव जमाने में सहायता मिली थी. वर्ष 2010-11 के दौरान तो किशनजी के नेतृत्व में माओवादियों ने झाड़ग्राम के अलावा पुरुलिया, बांकुड़ा व पश्चिमी मेदिनीपुर के ज्यादातर हिस्सों पर अपनी पकड़ बना ली थी. किशनजी की मौत के बाद रातोंरात माओवादी संगठन बिखर गया था. उसके बाद राज्य समिति का वजूद ही खत्म हो गया था. बाकी सदस्यों ने या तो हथियार डाल दिये थे या फिर पकड़े गये थे.
कभी इन इलाकों में पांच सौ से ज्यादा माओवादी सक्रिय थे. वर्ष 2008 से 2011 के बीच माओवादियों द्वारा लगभग सात सौ लोगों की हत्या किये जाने का आरोप है. आकाश की अगुवाई वाला दस्ता दोबारा राज्य समिति के गठन का प्रयास कर रहा है. वह अब अपने पुराने नेटवर्क को दोबारा बहाल करने में भी जुटा है.
अर्बन नक्सल पर नजर
सरकारी सूत्रों के मुताबिक, माओवादी संगठन फिलहाल नेतृत्व और कैडरों की कमी से जूझ रहा है. इसे पूरा करने के लिए माओवादी अब शहरी और बुद्धिजीवी युवाओं के अलावा दलितों और आदिवासियों को संगठन में शामिल करने का प्रयास कर रहे हैं. अर्बन नक्सल के मुद्दे पर तेज होती बहस के बीच संगठन के नेता बुद्धिजीवी युवाओं की तलाश में जुट गए हैं. संगठन के पोलित ब्यूरो सदस्य और पूर्वी क्षेत्र के प्रमुख प्रशांत बोस उर्फ किशनदा ने भी इसकी पुष्टि की है.
बोस ने पार्टी के मुखपत्र लालचिंगारीप्रकाशन में अपने ताजा लेख में कहा है कि संगठन में शिक्षित युवकों की कमी के चलते नेतृत्व की दूसरी कतार नहीं पनप सकी है. बोस ने अपने लेख में कहा है कि नेतृत्व की दूसरी कतार तैयार करना फिलहाल संगठन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. इससे पहले बीते साल संगठन ने बूढ़े और शारीरिक रूप से अनफिट नेताओं के लिए एक रिटायरमेंट योजना तैयार की थी. इसके तहत ऐसे लोगों को भूमिगत गतिविधियों से मुक्त कर उनको संगठन के पुनर्गठन के काम में लगाया जाना था.
बोस ने लिखा है कि बंगाल के अलावा असम, बिहार और झारखंड में संगठन ने दलितों, आदिवासियों और गरीबों के बीच खासी पैठ बनाने में कामयाबी हासिल की है. शिक्षित युवाओं की कमी पूरी करने के लिए संगठन को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है.
राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनावों को माओवादी खुद को फिर से मजबूत करने के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं. तृणमूल कांग्रेस से उनका मोहभंग हो चुका है. उनका झुकाव अब भाजपा की ओर हो रहा है. माओवादियों की ताजा गतिविधियां सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं. प्रशासन इस संबंध में अवगत है. इसी वजह से बंगाल और झारखंड पुलिस इन गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए सीमावर्ती इलाकों में साझा अभियान चलाने पर विचार कर रही हैं.
सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ी
पश्चिम बंगाल के झारखंड से सटे इलाकों में नये सिरे से तेज होती माओवादी गतिविधियों ने पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों की चिंता बढ़ा दी है. भूमिगत संगठन भाकपा (माओवादी) के पश्चिम बंगाल समिति के सचिव असीम मंडल उर्फ आकाश की अगुवाई में एक सशस्त्र गिरोह के विभिन्न इलाकों में देखे जाने के बाद खतरे की घंटी बजने लगी है.
इसी साल जून और जुलाई में झारखंड में सुरक्षा बल के सात जवानों की हत्या के बाद वहां माओवादियों के खिलाफ अभियान तेज होने के बाद इस गिरोह के बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में शरण लेने का अंदेशा है. हाल ही में इलाके का दौरा करने वाले केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानदिशेक राजीव राय भटनागर ने बताया कि राज्य के पश्चिमी इलाकों में माओवादी गतिविधियां तेज हुई हैं.
झाड़ग्राम में माओवादियों के दोबारा संगठित होने की खबरें भी मिल रही हैं. पहले राज्य के चार जिले माओवाद-प्रभावित जिलों की सूची में थे, लेकिन केंद्र की ओर से जारी ताजा सूची में सिर्फ झाड़ग्राम का ही नाम है.

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