प्रणव कुमार बैरागी, बांकुड़ा
देव सेनापति कार्तिक ठाकुर की पूजा सोमवार को है, लेकिन कार्तिक ठाकुर की मूर्ति को दूसरे के घर के सामने रखने की पुरानी लोक परंपरा लगभग समाप्त होने के कारण जिले के बुजुर्ग मायूस हैं. रविवार को जिले के बाजारों में कार्तिक मूर्तियां तो बिकती दिखीं, लेकिन घर-घर कार्तिक ठाकुर न रखे जाने से बिक्री में लगातार गिरावट आयी है. चौकबाजार में नमो अंचुरी से मूर्तियां बेचने आए हराधन कुंभकार ने बताया कि वह इस बार केवल 57 कार्तिक लाये. दोपहर तक लगभग आधी मूर्तियां ही बिक सकीं. उनके अनुसार पहले कई गुना अधिक बिक्री होती थी. लालबाजार में भादुल से आए गौतम कुंभकार भी बताते हैं कि कार्तिक ठाकुर रखने की परंपरा लगभग समाप्त होने से कुम्हार समुदाय प्रभावित हुआ है.लोक प्रथा और उसका महत्व
ग्रामीण बंगाल में कार्तिक ठाकुर दूसरों के घर के सामने रखना एक लोकप्रिय परंपरा रही है. मान्यता है कि यदि नवविवाहित या निःसंतान दंपत्ति कार्तिक पूजा करते हैं, तो उनके परिवार में कार्तिक जैसा पुत्र जन्म लेता है. इसी विश्वास के चलते कार्तिक पूजा से एक रात पहले कार्तिक मूर्तियां खरीदकर चुपचाप ऐसे घरों के दरवाजे पर रख दिया जाता था.सुबह परिवार वाले मूर्ति पाकर कार्तिक पूजा करते और प्रसन्न मन से तलाशते कि किसने मूर्ति रखी. जुनबेड़िया के 60 वर्षीय सनातन दत्ता बताते हैं कि यह परंपरा उनके बचपन की सबसे बड़ी खुशियों में से एक थी. वे अपने दोस्तों के साथ नवविवाहित और निःसंतान दंपत्तियों की सूची बनाकर मूर्तियां खरीदते और पूजा से एक रात पहले हर घर के सामने रख देते थे. मनकनाली के अशोक संतरा और निमाई कर्मकार भी इसका समर्थन करते हैं.
परंपरा क्यों हुई कमजोर
स्थानीय लोगों के अनुसार कार्तिक पूजा का खर्च बढ़ना, गलत घरों में मूर्ति फेंके जाने से परिवारों की नाराजगी और परंपरा के दुरुपयोग जैसे कारणों ने इसे कमजोर किया. सविता नस्कर कहती हैं कि “जब से दरवाजे पर कार्तिक रखना बंद हुआ है, तब से उससे जुड़े तुकबंदी गीत भी खत्म हो गए हैं. ” अब कुछ जगहों पर लोग परिवार की सहमति से ही कार्तिक ठाकुर रखते हैं.
पूजा की तैयारियां जारी
इधर, बांकुड़ा जिले के कई इलाकों में कार्तिक पूजा की तैयारियां अंतिम चरण में हैं और सोमवार को पूजा बड़े उत्साह से मनायी जायेगी.
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