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दलितों को मिला शिव मंदिर में प्रवेश का अधिकार

मंदिर में प्रवेश के बाद प्रसन्नचित्त दलितों ने न्याय व्यवस्था, संविधान और खासकर संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के प्रति आभार प्रकट किया.

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पूर्व बर्दवान का मामला न्यायिक-प्रशासनिक हस्तक्षेप से खत्म हुईं सदियों पुरानी बंदिशें

मुकेश तिवारी, बर्दवान/पानागढ़.

जातियों में विभक्त भारतीय समाज में जब परंपराओं से अलग कुछ होता है, तो वह स्वाभाविक रूप से ध्यान खींचता है. पूर्व बर्दवान जिले के गिद्ध ग्राम के दासपाड़ा में भी हाल ही में ऐसा ही एक ऐतिहासिक क्षण सामने आया. मार्च महीने की 12 तारीख को यहां के प्राचीन शिव मंदिर में दलित ग्रामवासियों को, न्यायिक-प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद, पहली बार प्रवेश और पूजा करने का अवसर मिला. यह गांव के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था, क्योंकि इससे पहले तीन सौ वर्षों से चली आ रही सामाजिक व्यवस्था ने उन्हें इससे वंचित रखा था. मंदिर में प्रवेश के बाद प्रसन्नचित्त दलितों ने न्याय व्यवस्था, संविधान और खासकर संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के प्रति आभार प्रकट किया.

शिवरात्रि पर भी रोका गया था प्रवेश

फरवरी महीने में शिवरात्रि के अवसर पर भी दलित समुदाय मंदिर में पूजा करना चाहता था, पर परंपरा का हवाला देकर इसकी अनुमति नहीं दी गयी. अंततः उन्होंने प्रशासनिक और न्यायिक मदद का सहारा लिया. मामला न्याय व्यवस्था के सामने गया और कानूनी रूप से मजबूत होने के कारण दलितों के पक्ष में जल्दी ही निर्णय हो गया. जो लोग मंदिर के पास से भी भगा दिये जाते थे, उन्हें अब पूजा करने की अनुमति मिल गयी. गांव के शांतनु दास और अन्य दलितों ने बताया कि अतीत में कई बार उन्होंने मंदिर में पूजा की कोशिश की थी, लेकिन उन्हें हर बार रोक दिया गया. ””कानून और संविधान बड़ी चीज हैं”” गांव की पूजा दास का कहना है कि मंदिर में पूजा करने का अवसर पाकर वे अत्यंत प्रफुल्लित हैं. उन्हें अब समाज की मुख्यधारा से जुड़ाव महसूस हो रहा है. उनके अनुसार, यह अधिकार संविधान से मिला है और यह सुनिश्चित करना समाज की जिम्मेदारी है कि हर किसी को सम्मानपूर्वक जीने दिया जाये. षष्ठी दास और लक्खी दास ने भी इस कदम को बराबरी की दिशा में बड़ा परिवर्तन बताया. लक्खी दास ने कहा कि उन्हें पहली बार अपने गांव के मंदिर में शिवलिंग देखने का अनुभव हुआ और यह सिर्फ खुशी नहीं बल्कि नयी जिंदगी जैसा अहसास है.

स्थायी व्यवस्था को लेकर संशय भी

स्थानीय ग्रामीण संतोष दास ने आशंका जतायी कि आगे चल कर मंदिर में प्रवेश को लेकर फिर कोई अड़चन न आये. उन्होंने बताया कि प्रशासनिक दबाव के कारण ही गांव के प्रधान ने इस व्यवस्था को स्वीकार किया. अब देखना होगा कि यह दरवाजे स्थायी रूप से खुले रहते हैं या नहीं. वहीं मंदिर के संरक्षक मिंटू कुमार ने स्पष्ट किया कि अब दलितों को नियमित रूप से मंदिर में पूजा करने की अनुमति मिल गयी है. उनके अनुसार, जब पुरानी परंपरा एक बार टूट चुकी है, तो अब किसी प्रकार की बाधा नहीं होनी चाहिए.

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