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गारूई नदी की जमीन का लगातार अतिक्रमण ही बनाता है इसे उग्र

उपरी हिस्से में ग्रामीण, निचले हिस्से में शहरी इलाकों में है घनी आबादी नदी के पानी के बीच से बन रहे कंक्रीट निर्माण, घट रही जल धारण क्षमता जिला प्रशासन, नगर निगम तथा एडीडीए को लेनी होगी इस दिशा में पहल आसनसोल : आसनसोल नगर निगम के आसनसोल रेलपार इलाकों में विनाशक बनती जा रही […]

उपरी हिस्से में ग्रामीण, निचले हिस्से में शहरी इलाकों में है घनी आबादी
नदी के पानी के बीच से बन रहे कंक्रीट निर्माण, घट रही जल धारण क्षमता
जिला प्रशासन, नगर निगम तथा एडीडीए को लेनी होगी इस दिशा में पहल
आसनसोल : आसनसोल नगर निगम के आसनसोल रेलपार इलाकों में विनाशक बनती जा रही गारूई नदी के मुद्दे पर नगर निगम प्रशासन, जिला प्रशासन तथा राज्य सरकार यदि गंभीर नहीं हुयी तो भविष्य में लगातार चुनौतियां बढ़ती जायेगी. इसी माह भारी बारिश के कारण आयी बाढ़ से करोड़ों रूपये मूल्य की क्षति हुयी. इस नदी के बारे में आसनसोल निवासी तथा हाई स्कूल में भूगोल के शिक्षक सुरजीत भट्टाचार्या ने गहन अध्ययन किया है. उन्होंने दावाकिया है कि इस मुद्दे पर हो रही लापरवाही बड़ी परेशानी का कारण बन सकती है.
शिक्षक श्री भट्टाचार्या ने कहा कि गारूई नदी की खास विशेषता है. उसक ा ऊंचा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्र से गुजरता है तथा निचला हिस्सा आसनसोल नगर निगम क्षेत्र में घनी आबादी वाले क्षेत्र से गुजरता है. इस कारण इस नदी के किनारे रहनेवाले के संपर्क तथा विकास अलग-अलग हैं. भूमिगत जल स्तर तथआ आंचलिक जल निकासी व्यवस्था को देखते हुए जिला परिषद के साथ-साथ नगर निगम प्रशासन को एक-दूसरे के साथ सहयोग करना होगा.
इसमें आसनसोल दुर्गापुर विकास प्राधिकार (एडीडीए) की भूमिका अत्यंत प्रभावी हो सकती है. यह अलग बात है कि नदी से जुड़ी गंभीर समस्याओं के समाधान की दिशा में संस्था गंभीर नहीं है. उन्होंने कहा कि शांत बहनेवाली नदी यदि विनाशक होने लगी है तो उसके साथ छेड़छाड़ होने लगी है. इसके प्रति सबको सचेत होना होगा.
उन्होंने कहा कि मुख्य समस्याएं कई हैं. उन्होंने कहा कि कहीं-कहीं नदी इतनी छोटी है या उसका जल प्रवाह इतना कम है कि अधिकांश स्थलों पर उसकी जमीन का अतिक्रमण किया जा रहा है. नदी के जल से सट कर सख्त क्रंक्रीट की दीवारे तथा चारदीवारियां बनायी गयी है, जिसे तोड़ना इस छोटी नदी के लिए संभव नहीं है. इसके साथ ही नदी के किनारे नदी की खाली पड़ी जमीन का भी अतिक्रमण किया जा रहा है.
कई खाली पड़ी रैयती जमीनों पर भी निर्माण हो रहा है. अतिक्रमण के साथ ही रैयती जमीन पर भी हो रहे निर्माण किसी न किसी रूप में नदी के लिए अहितकर है. श्री भट्टाचार्या ने कहा कि गारूई नदी में मिलनेवाली जो उपधाराएं या उपनदी है, बरसात को छोड़ कर अधिकांश समय वे लुप्त प्राय: रहती है. इस कारण उनकी जमीन पर निर्माण होने, खदान या कारखाना बनने के कारण उनकी धारामुड़ जाती है. आनेवाले समय में यह काफी हानिकारक होगा. जल धाराएं इन निर्माण तथा कारखानों को ही क्षतिग्रस्त करेगी.
हाल ही में डाबर कोलियरी कार्यालय का एजेंट कार्यालय का निचला हिस्सा पानी में डूब गया था. इससे काफ ी क्षति हुयी थी. नदियों का रूख बदलना हमेशा खतरनाक ही होता है. उन्होंने कहाकि भूमिगत जल स्तर घटने से मिट्टी की दृढ़ता कमजोर होती है. जमीन की सतह धीरे-धीरे नीचे जाने लगती है. बाद मेंइसका आकलन करना तथा इसका डैमेज कंट्रोल करना मुश्किल हो जाता है.
उन्होंने कहा कि नदी के किनारे घास तथा पेड़ों की संख्या कम होने के कारण मिट्टी का क्षरण हो रहा है. शहरी इलाकों की समस्याओं की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि निचले इलाकों में उपरी इलाके से आ रही मिट्टी जमा होती है. इस कारण उसकी जल धारण क्षमता लगातार घट रही है. इसके साथ ही आसनसोल शहर की कूड़ा कई स्थानों पर इस नदी के किनारे जमा होता है. वह भी नदी में गिरता है.
शहर के चार मुख्य हाई ड्रेन का प्रदूषित पानी इसमें गिरता है. विभिन्न कारखानों का रसायनिक परित्यक्त भी इसी नदी में गिरता है. कसाई मोहल्ला में लगातार विस्तार हो रहा है तथा नये निर्माण हो रहे हैं. वे असुरक्षित माहौल में रहने को वेवश है तथा इस मोहल्ले में अक्सरहां बाढ़ कीस्थिति बन जाती है. महुआडंगाल के पास नदी के पानी से सट तक निर्माण किये जा रहे हैं. इन सब इलाकों का कचड़ा इसी नदी में जमा होता है. रामकृष्ण डंगाल में भी यही स्थिति है.
नदी की तलहटी से निर्माण किया गया है. इस इलाके से निकलने के बाद नही का विस्तार सिमटता जाता है. इस इलाके में सब्जी की फसल होती है. इस खेती के कारण भी नदी संकरी होती जाती है. फलस्वरूप उपरी इलाकों में जल जमाव बढ़ने लगता है. उन्होंने दावा किया कि इस नदी के बेसिन इलाके में जितना अव्यवस्थित व गैरयोजनाबद्ध तरीके से विकास होगा, भविष्य में समस्याएं और भी बढ़ती जायेगी.

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