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मालदा के थर्मोकोल कारीगरों की बढ़ी परेशानी
मालदा : मिट्टी से मां दुर्गा की प्रतिमा बनने के बाद थर्मोकोल से बनाये गये गहनों से देवी को सजाया जाता है. देवी प्रतिमा को नया रूप देने में थर्मोकोल कारीगरों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन आज वे ही समाज में सबसे उपेक्षित हैं. आर्थिक तंगी के बीच आज भी वे लाख […]
मालदा : मिट्टी से मां दुर्गा की प्रतिमा बनने के बाद थर्मोकोल से बनाये गये गहनों से देवी को सजाया जाता है. देवी प्रतिमा को नया रूप देने में थर्मोकोल कारीगरों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, लेकिन आज वे ही समाज में सबसे उपेक्षित हैं. आर्थिक तंगी के बीच आज भी वे लाख कष्ट सह कर थर्मोकोल पर कारीगरी का काम कर देवी के गहने, साज सज्जा के सामान आदि बनाने का काम रहे हैं. एक समय था, जब मालदा शहर के कई कलाकार इस क्षेत्र से जुड़े थे. जिनके लिए पूजा का मौसम मतलब खुशी व रोजगार का महीना था.
वर्तमान बाजार में रेडिमेड चाइनीज गहने आ गये हैं और देवी दुर्गा की प्रतिमा को सजाने में चाइनीज गहनों का उपयोग बढ़ गया है. इसकी वजह से थार्मोकल कारीगरों की कद्र कम हो गयी है. अब कुछेक कारीगर ही ये काम करते हैं. इस पेशे से जुड़े कारीगरों के बच्चे दूसरे पेशे से जुड़ते जा रहे हैं. इन कलकारों का कहना है कि वर्तमान बाजार में थर्मोकोल के साज की कीमत भी बढ़ गयी है, लेकिन ज्यादातर लोग रेडिमेड चाइनीज साज सज्जा के प्रति आकर्षित हो रहे हैं. जिस कारण व्यवसाय की स्थिति काफी खराब हो गयी है. इनलोगों के समाने रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है. संसार चलाना मुश्किल हो गया है. मालदा शहर के कुतुबपुर, कालीतला, मालंचपल्ली, कोतवाली इलाके में 10 से 15 थर्मोकोल कारीगर हैं. एक दशक पहले इन कारीगरों की संख्या करीब 150 थी. पूजा का मौसम आते ही इन इलाकों की पुरुष व महिलाएं थर्मोकोल से देव-देवियों के गहनें बनाने में जुट जाती हैं. गले के माला से लेकर, कान की बालियां, मुकुट आदि बनाने में व्यस्त हो जाते हैं.
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