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बंगाल से बांग्लादेश के रास्ते साउथ एशिया के कई देशों में पहुंचाये जाते हैं भारतीय कछुए

सात से आठ गुना फायदे के लिए तस्करों की पसंद हैं भारतीय कछुए कछुओं का इस्तेमाल होता है सूप दवा और चिप्स बनाने के लिए बांग्लादेश में भी भारतीय कछुओं की तस्करी पर अंकुश के लिए अभियान जारी कोलकाता : बीते कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल कछुओं की तस्करी का हब बना गया है, जिसके […]

सात से आठ गुना फायदे के लिए तस्करों की पसंद हैं भारतीय कछुए

कछुओं का इस्तेमाल होता है सूप दवा और चिप्स बनाने के लिए
बांग्लादेश में भी भारतीय कछुओं की तस्करी पर अंकुश के लिए अभियान जारी
कोलकाता : बीते कुछ वर्षों में पश्चिम बंगाल कछुओं की तस्करी का हब बना गया है, जिसके तार उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश से होते हुए बांग्लादेश तक जुड़े हुए हैं. सूत्रों के अनुसार भारत-बांग्लादेश के पेट्रापोल-बेनापोल सीमा से कछुओं की तस्करी के कई मामले प्रकाश में आये हैं.
इसी रास्ते कछुओं को बांग्लादेश के ढाका ले जाया जाता है और वहां से भारतीय कछुए सिंगापुर, थाइलैंड जैसे देशों में पहुंचा दिये जाते हैं. बांग्लादेशी तस्करों को भारत के विभिन्न प्रजाति के कछुए इसलिये पसंद हैं, क्योंकि उन्हें करीब सात-आठ गुना फायदा मिलता है.
हड्डी और खोल की मांग ज्यादा :
सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) साउथ बंगाल फ्रंटियर के एक अधिकारी का कहना है कि कछुए के खोल और हड्डी की काफी मांग होती है, क्योंकि इससे दवा भी बनाया जाता है. तस्करी की घटनाओं पर अंकुश के लिए बीएसएफ का अभियान जारी है. कई मामलों में सफलता भी हाथ लगी है. जानकारी के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक किलोग्राम सूखे कछुए की कीमत 120-160 डॉलर तक है. भारत में कछुओं की करीब 28 प्रजातियां हैं, जिसमें स्पोडिड पोंड टर्टल जैसे दुर्लभ जाति के कछुए भी पाये जाते हैं.
बांग्लादेश व एशिया के अन्य देशों में भारत के निलसोनिया, गैंगटिस, चित्रा, इंडिका, सुंदरी प्रजाति के कछुओं की मांग ज्यादा है. ऐसे प्रजाति के कछुए मांसाहारी होते हैं. इनके निचली सतह में रीच प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है. ऐसे कछुओं की स्किन को उबाल कर प्रोटीन बनायी जाती है, जिसका इस्तेमाल सूप के तौर पर किया जाता है. सूत्रों के अनुसार प्रति किलोग्राम सूप की कीमत भी काफी ज्यादा होती है.

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