दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग गोरखालैंड राज्य की मांग में जारी आंदोलन ने न केवल समतल क्षेत्र सिलीगुड़ी को प्रभावित किया है, बल्कि पड़ोसी राज्य सिक्किम के अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी तोड़ दी है. 80 के दशक में गोरखालैंड आंदोलन की शुरूआत हुई और तब से लेकर अब तक करीब 32 वर्षों में इस आंदोलन ने सिक्किम को भी बुरी तरह से प्रभावित किया है.
सिलीगुड़ी: पिछले 24 दिनों से दार्जिलिंग पहाड़ पर नये सिरे से गोरखालैंड आंदोलन जारी है और इसका असर सिक्किम पर पड़ रहा है. राज्य में जनजीवन पर इसका सीधा असर पड़ा है. पिछले दिनों हालत इतनी बिगड़ गई कि सिक्किम के गंगतोक और सिलीगुड़ी के बीच वाहनों की आवाजाही बंद कर देनी पड़ी थी. सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग ने गोरखालैंड की मांग का समर्थन किया है. कुछ सप्ताह पहले उन्होंने केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी चिट्ठी लिखी थी और अलग गोरखालैंड राज्य की मांग का समर्थन किया था. उसके बाद से सिलीगुड़ी के लोगों में सिक्किम के प्रति उबाल है. सिक्किम नंबर के वाहनों में तोड़फोड़ की घटनाएं हुई हैं और वहां के लोगों के साथ मारपीट भी की गई. आये दिन विभिन्न खाद्य सामग्रियों को लेकर सिक्किम जाने वाले वाहनों को रोकने की घटनाएं घट रही हैं. सिलीगुड़ी में इस प्रतिक्रिया का असर सिक्किम में भी देखने को मिल रहा है. वहां के लोगों में भी पश्चिम बंगाल के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है.
राज्य सरकार की माने तो गोरखालैंड आंदोलन से सिक्किम को अब तक 60 हजार करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हो चुका है. सिक्किम को सिलीगुड़ी से जोड़ने के लिए एकमात्र सड़क एनएच-10 है. इसे सिक्किम की जीवन रेखा भी कहा जा सकता है. यही एनएच-10 इन दिनों प्रमुख राजनीतिक अखाड़ा बना हुआ है. यह सड़क दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र के कालिम्पोंग थाना अंतर्गत होते हुए भी सिक्किम जाती है. इसी इलाके में गोरखालैंड आंदोलनकारी उत्पात मचाते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने बंद के दौरान इस सड़क को डिस्टर्व नहीं करने का स्पष्ट आदेश दिया है. उसके बाद भी आंदोलनकारी बाज नहीं आ रहे हैं. गोरखालैंड आंदोलन का सिक्किम पर असर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 32 वर्षों के आंदोलन के दौरान सिक्किम नंबर के पांच हजार वाहनों में तोड़फोड़ की गई. इसके अलावा दर्जनों वाहनों को आग के हवाले कर दिया गया. सिक्किम के लोगों का मानना है कि यह आंदोलन पश्चिम बंगाल में हो रहा है और वहां की सरकार को ही इससे निपटना चाहिए. पश्चिम बंगाल में चल रहे आंदोलन का खामियाजा भला सिक्किम के लोग क्यों भुगतेंगे.
इधर, मुख्यमंत्री पवन चामलिंग ने भी इस आंदोलन की वजह से सिक्किम को हो रहे नुकसान पर अपनी गहरी नाराजगी जतायी है. उन्होंने इस मामले में केन्द्र सरकार से हस्तक्षेप की मांग की है. उन्होंने केन्द्र सरकार को लिखी चिट्ठी में कहा है कि पश्चिम बंगाल के आंतरिक मामले में वह हस्तक्षेप नहीं करना चाहते. लेकिन गोरखालैंड आंदोलन से सिक्किम को परेशानी हो रही है. केन्द्र सरकार को तत्काल इस मामले में हस्तक्षेप कर समस्या का समाधान करना चाहिए. ऐसा नहीं करने पर उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने की भी धमकी दी.
क्या कहते हैं मुख्यमंत्री
सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग का कहना है कि सिक्किम जनमत संग्रह के बाद भारत में शामिल हुआ था. भारत में शामिल होने के बाद यहां के लोग पूरी तरह से भारतीय हो गये हैं और देश की एकता एवं अखंडता के लिए काम कर रहे हैं. जिस समय सिक्किम को 22वें राज्य के रूप में भारत में शामिल किया गया, उस समय जनमत संग्रह आंदोलन में वह भी शरीक हुए थे. सिक्किम के 98 प्रतिशत लोगों ने सिक्किम को भारत में शामिल करने का निर्णय लिया था. मात्र दो प्रतिशत लोग ही इसके विरोधी थे. इससे जाहिर है कि सिक्किम के लोगों में देश के प्रति कितनी आस्था है. केन्द्र सरकार को भी इसका ध्यान रखना चाहिए.
सुरक्षा को भी खतरा
श्री चामलिंग ने आगे कहा है कि सिक्किम की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अशांति का असर सीधे देश की सुरक्षा व्यवस्था पर पड़ेगा. सिक्किम की सीमा नेपाल तथा भूटान के साथ चीन से भी लगती है. राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जरूरी है कि इस क्षेत्र में शांति बनी रहे. गोरखालैंड आंदोलन की वजह से राज्य को आर्थिक नुकसान हो रहा है और यहां के लोग प्रभावित हो रहे हैं. केन्द्र सरकार को बंगाल सरकार के साथ बातचीत कर इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए.