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Lok Sabha Elections 2019 : मोदी के प्रस्तावक के रूप में नयी पहचान पाकर हर्षित हैं डोम राजा

नयी दिल्ली : स्कूलों में कोई उनके बच्चों के साथ नहीं खेलता. शादी ब्याह में उन्हें न्योता नहीं जाता. मंदिरों की नगरी काशी में मंदिर में उनका प्रवेश निषेध है. यह है वाराणसी की डोम बिरादरी, जिनके राजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा उम्मीदवारी के प्रस्तावक के रूप में नयी पहचान पाकर फूले नहीं समा […]

नयी दिल्ली : स्कूलों में कोई उनके बच्चों के साथ नहीं खेलता. शादी ब्याह में उन्हें न्योता नहीं जाता. मंदिरों की नगरी काशी में मंदिर में उनका प्रवेश निषेध है. यह है वाराणसी की डोम बिरादरी, जिनके राजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकसभा उम्मीदवारी के प्रस्तावक के रूप में नयी पहचान पाकर फूले नहीं समा रहे. वाराणसी से दूसरी बार नामांकन भरने वाले मोदी के प्रस्तावकों में डोम राजा जगदीश चौधरी भी शामिल हैं.

उन्होंने कहा, ‘पहली बार किसी राजनीतिक दल ने हमें यह पहचान दी है और वह भी खुद प्रधानमंत्री ने. हम बरसों से लानत झेलते आये हैं. हालात पहले से सुधरे जरूर हैं, लेकिन समाज में हमें पहचान नहीं मिली है. प्रधानमंत्री चाहेंगे, तो हमारी दशा जरूर बेहतर होगी.’ उन्होंने कहा, ‘नेता वोट मांगने आते हैं, लेकिन बाद में कोई सुध नहीं लेता.’

डोम बिरादरी का इतिहास काफी पुराना है. वाराणसी के हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट पर ‘राम नाम सत्य है’ का उद्घोष, धू-धू कर जलती चिताएं और दर्जनों की तादाद में डोम मानो यहां की पहचान बन गये हैं. पौराणिक गाथाओं के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र ने खुद को श्मशान में चिता जलाने वाले कालू डोम को बेच दिया था. उसके बाद से डोम बिरादरी का प्रमुख यहां डोम राजा कहलाता है. चिता को देने के लिए मुखाग्नि उसी से ली जाती है.

चौधरी ने बताया कि वाराणसी में हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाट में करीब 500-600 डोम रहते हैं, जबकि उनकी बिरादरी में पांच हजार से ज्यादा लोग हैं. चौधरी ने कहा, ‘दो घाट पर सभी डोम की बारी लगती है और कभी 10 दिन या 20 दिन में बारी आती है. बाकी दिन बेगारी. कोई स्थायी नौकरी नहीं है और कमाई भी इतनी नहीं कि बच्चों को अच्छी जिंदगी दे सकें.’

चौधरी के भाई विश्वनाथ ने कहा, ‘यह पूरी बिरादरी के लिए गर्व की बात है कि डोम राजा प्रधानमंत्री के प्रस्तावक बने. हम समाज में पहचान पाने को तरस गये हैं. उम्मीद है कि जीतने के बाद वह हमारी पीड़ा समझेंगे और हमें वह दर्जा समाज में दिलायेंगे, जिसकी शुरुआत आज हुई है.’

उन्होंने कहा, ‘हम बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, लेकिन स्कूल में जाति को लेकर उनका उपहास बनता है. कोई हमसे बात तक नहीं करता. लोग हमें छूते नहीं हैं और विश्वनाथ की नगरी में मंदिरों में हमें प्रवेश नहीं मिलता. शादी-ब्याह में हमें बुलाया नहीं जाता. बस मृत्यु के बाद संस्कार में ही हमारी कद्र होती है.’

Prabhat Khabar Digital Desk
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