प्रयागराज के पीवीआर सिनेमा का एक वीडियो इस समय सोशल मीडिया के फेसबुक पर काफी तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें साफ तौर पर प्रयागराज के पीवीआर सिनेमा में कुछ लोग द्वारा जबरन व्यक्ति को धक्का देते हुए बाहर किया जा रहा है.
वीडियो वायरल होने के साथ लिखा गया कि….
फिल्म का रिव्यू लेने पहुंचे बहुजन पत्रकारों को बाउंसरों और कर्मचारियों ने बेरहमी से पीट दिया. सामाजिक न्याय और बहुजन विचारधारा पर आधारित इस फिल्म को कवर करने पहुंचे पत्रकारों पर अचानक हमला बोल दिया गया. कैमरे छीने गए, धक्का-मुक्की हुई और कई पत्रकारों को गंभीर चोटें भी आईं.प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमला सुनियोजित था और पत्रकारों को टारगेट किया गया.इस हमले ने बहुजन समाज और पत्रकारिता जगत में उबाल ला दिया है. सवाल उठ रहा है कि क्या अब बहुजन मुद्दों पर बोलना या फिल्म रिव्यू करना भी खतरे से खाली नहीं? ये सिर्फ एक हमला नहीं, बल्कि अभिव्यक्ति की आज़ादी पर सीधा वार है. पीवीआर प्रशासन ने चुप्पी साध ली है, जबकि प्रशासन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाया है.सोशल मीडिया पर लोग इस हमले की कड़ी निंदा कर रहे हैं और न्याय की मांग कर रहे हैं.अब जरूरत है कि शासन-प्रशासन इस घटना पर तुरंत संज्ञान ले और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करे.बहुजन पत्रकारों की सुरक्षा और स्वतंत्रता सिर्फ उनकी नहीं, पूरे लोकतंत्र की गरिमा का सवाल है. अगर आवाज़ उठाना ही गुनाह बन गया है, तो फिर देश में अभिव्यक्ति की आज़ादी का क्या मतलब रह जाता है?
फुले फिल्म में क्या दिखाया गया है?
“फुले” फिल्म ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित एक बायोपिक है. यह फिल्म समाज सुधारक और दलित अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाले इस जोड़े की कहानी को दर्शाती है, जो 19वीं सदी के भारत में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे ज्योतिबा फुले ने शिक्षा और समानता के लिए संघर्ष किया, और कैसे उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने महिलाओं के शिक्षा के लिए एक क्रांतिकारी कदम उठाया.